- मेरी कौनसी आदत मेरी उन्नति में बाधक है और मुझे आगे बढ़ने से रोकती है?
- में जिनसे मिलता हूँ,वो मेरी उन्नति में साधक हैं या बाधक ?
- क्या में सेवा करता हूँ? प्रश्न लिखो अपनी डाइरी में की क्या में दिल से सेवा करता हूँ। अगर सेवा मन लगाकर की जाये तो सेवा भक्ति है। भगवान् को सेवा बहुत जल्दी स्वीकार होती है। दुखियों की, रोगिओं की, जीव जंतुओं की जैसे भगवान् कृष्ण ने भी अनेक सेवा कार्य किये।
- प्रार्थना में शब्दों से करता हूँ या दिल से। दिल से की गयी प्रार्थना ही परमात्मा तक पहुँचती है।
- क्या आप दूसरों के गुणों की तारीफ़ करते हैं,क्या ईमानदारी से करते हैं। किसी की अच्छाई की तारीफ़ अगर आप ईमानदारी से करते हैं तो आप ईमानदार ह्रदय वाले व्यक्ति हैं और ऐसे व्यक्ति को परमात्मा भी पसंद करता है। चापलूस या वैर वाला व्यक्ति भगवान् की कृपाओं से वंचित रहता है।
- आप किसीका स्वागत करते हैं तो क्या दिल से खुश होकर करते हैं?
- जब आप कोई निष्चय करते हैं तो क्या उस में ढील देते हैं या द्रिड निष्चय रहता है ? अगर द्रिड निष्चय वाले हैं तो आपकी सफलता संभव है। अगर ढील देने वाले हैं तो किनारे पर ही रुके रहोगे। अगर ज़िन्दगी में आगे जाना है तो एक बार पक्का इरादा करलो और फिर ढील नहीं देना क्योंकिआपको नया बनना है।
- क्या आप अपने जीवन में अपने कर्म को और अपनी गति को करते समय योजना बनाकर चलते हैं , अनुशासित जीवन जीते हैं, क्या आपके जीवन में नियम संयम है? यदि हाँ, तो आने वाला समय आपकी सफलता का है। यदि नहीं तो सफलता में बाधा जरूर आएगी।
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श्रेष्ठ वचन । आत्मचिंतन एवम सुधार हेतु सुंदर मार्गदर्शन। धन्य हुए गुरुदेव। हरि ॐ जी गुरुदेव।