तुम सब से मेरे अनेक जन्मों के रिश्ते हैं ! गुरु शिष्य का यह रिश्ता सभी रिश्तों की सीमा से पार का रिश्ता है। बहुत करीब का, अति निकटता का, सम्पूर्ण अपनत्व से भरा, अत्यधिक आत्मीय सम्बन्धों वाला है यह हमारे आपके बीच का रिश्ता। इसे अधिक गहरा, अपनत्वपूर्ण बनाना है। तुम्हारे हमारे बीच यह स्थूल रिश्ता बना है, तभी से हमारा परस्पर संबंध नहीं है, अपितु सूक्ष्म रूप से इसके बहुत पहले कई जन्मों से हम आपको सम्हालते, बचाते और आप की आत्मा को ऊंचा उठाते आये हैं! आगे भी आनन्द, शांति, प्रेम, ज्ञान, विश्वास, श्रद्धा की ओर तुम्हें लेकर जाना हैं।
फिर भी ध्यान रहे रिश्ते में कितनी भी मधुरता क्यों न हो, पर जब अपनापन खो जाता है, अपनत्व की डोर ढीली पड़ जाती है, तो नीरसता आने लगती है। एक छत के नीचे रहने वालों में आत्मीयता न बचे, तो जीवन बोझिल हो उठता है। हां किसी समझौते के तहत जीवन का निर्वाह तो चल जायेगा ! लेकिन जीवन बुझा-बुझा ही होगा, जगमगाहट नहीं होगी। क्योंकि आत्मीयता का अभाव जो आ गया है! ऐसी स्थिति में व्यक्ति सबकुछ बांट देना चाहता है, सब कुछ अलग कर लेना चाहता है।
जैसे एक घरेलू जीवन में अपनत्व वाले वातावरण की जरूरत चाहिए ! जिसमें गहरी आत्मीयता पैदा हो सके। ऐसा ही हर संबंध में आवश्यक है। फिर गुरु और शिष्य के बीच अगाध गहराई का आधार तो श्रद्धाभरा अपनत्व है। श्रद्धा-विश्वास दोनों को जन्मों तक के लिए एक-दूसरे को बांध देते हैं। अभी तो सद्गुरु की अग्नि से आपको अपनी अग्नि उत्पन्न करनी है, सदगुरु की कृपा से अपने आपको प्रकाशित करना है। प्रेम, हर्ष और उमंग से भरपूर करना है, इसी प्रकार प्रकाश से भरे अपने वास्तविक निजआत्म घर में लौटना है! जहां सच्ची शांति, सच्चा सुख और सच्चा प्रेम बहता है! इसी से जन्मों के अपनत्व को जगा पायेंगे।
ध्यान रहे! अच्छे मार्ग पर चलते-चलते राह में आने वाले चौराहे से जीवन लक्ष्य के लिए रास्ता निकालना, उचित व सही रास्ते का निर्णय कराना, सही दिशा में उठे कदम के साथ तुम्हें मंजिल के करीब तक लाना, निर्णय करने वाली बुद्धि ठीक रहे इसके लिए संसार के स्वामी से सतत प्रार्थना करना जैसे अनेक कार्य हम आपके लिए जन्मों से करते आये हैं। इस जन्म में भी भ्रम-संशय, निराशा और पतन की ओर तुम्हें खींचने वाले आकर्षणों से सम्हालने का कार्य हमें ही करना है और लगातार कर भी रहे हैं!
इसीलिए कहता हूं तुम्हारा गुरु तुम्हारा परम सखा है! वह तुम्हें तुमसे मिलाना चाहता है, वह उस खजाने की चाबी तुम्हें देना चाहता है, जिसके मालिक आप स्वयं हो! पर तुम्हें भी अपनी आंतरिक दैवीय अमीरी को याद करना है, अपनी कंगाली से बाहर निकलना होगा। साथ ही गहरी श्रद्धा और विश्वास बनाये रखना होगा, तब तुम और हम इस स्थूल जीवन में सुख-शांति पर चलते हुए, परब्रह्म की पगडंडी पर भी साथ-साथ चल सकेंगे। क्योंकि यही मानव जीवन का लक्ष्य है। लक्ष्य तक पहुचाये बिना हम रुक नहीं सकते हैं, भले कितने जन्म क्यों न इसी तरह चलना पड़े।