दान-सहयोग, यज्ञ-अनुष्ठान से उत्तरोत्तर उन्नति प्राप्ति के पर्व – लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

दान-सहयोग, यज्ञ-अनुष्ठान से उत्तरोत्तर उन्नति प्राप्ति के पर्व – लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

उन्नति प्राप्ति के पर्व - लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

दान-सहयोग, यज्ञ-अनुष्ठान से उत्तरोत्तर उन्नति प्राप्ति के पर्व –
लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल

जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रस्थान करता है तो सूर्य के इस राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करना ‘‘मकर संक्राति’’ कहलाता है। इसी दिन भगवान सूर्य नारायण दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण को देवी-देवताओं का प्रभात काल भी कहा जाता है। वर्ष में 24 पक्ष, 12 माह, छः ट्टतुएं एवं दक्षिण आयन तथा उत्तर आयन के अनुसार दो आयन परिमाण के रूप में कहे गए हैं। सूर्य भगवान दोनों आयनों में क्रमशः गतिमान रहकर इस दुनिया को अपने दिव्य सविता रूप से प्रकाशित करते हुए ऊर्जा प्रदान करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण आयन की पुष्टि करते हुए कहते हैं किµअग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्। गीता 8/24 उत्तरायण काल अग्नि की प्रधानता वाला है। अतः इस समय में पृथ्वी के समस्त भागों में रहने वाले मनुष्यों में यज्ञकर्म अर्थात् दिव्यकर्म सम्पादन, ज्ञान-विज्ञान, तप, स्वाध्याय, आयुष्य, आरोग्य, सद्बुद्धि, सद्विचार की प्रमुखता रहती है। वे आत्मोत्थान के साधनों से सम्पन्न होने के प्रयासों में तत्पर हो जाते हैं।

उत्तरायण का मार्ग शुक्लमार्ग, देवमार्ग, ब्रह्मपथ आदि नामों से शास्त्रें में चर्चित है। इस देवलोक के पथप्रदर्शक काल में अग्नि तथा सूर्यदेवता का अधिकार विशेष रूप से रहता है। जिससे सद्विवेक व सद्बुद्धि का अभ्युदय अपने आधिपत्य के साथ समस्त भूभाग में असर स्थापित करता है।
सूर्य की अपेक्षा अग्नि कमतर शक्ति वाला है अतः रात्रि के अन्धकार में अपना प्रकाश फैलाने में समर्थ हो पाता है। जो एक सीमित क्षेत्र तक ही रह पाता है और उस भाग के अन्धकार को हटा पाने में समर्थ होता है। अग्नि सूर्य के प्रकाश के रहते हुए कम प्रकाशमान हो पाता है, जबकि सूर्य का प्रकाश स्थाई रहने वाला होता है, जिसके रहते संसार के लोग संचरणशील रहते हैं तथा विविध प्रकार के रचनात्मक कार्यों से सृष्टि को समृद्ध करते हैं। जहां संचरण होता है वहां उद्देश्य का संवरण हो जाता है।

मकर राशि पर सूर्य के संक्रान्त होने पर ‘‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत’’ अर्थात् उद्यम, जो विज्ञान से संयुक्त करके श्रेष्ठजनों के निर्देशन में सफल होता है, संचरित व प्रसारित होने लगता है। उत्तरायण का आरम्भ मानव को रचनात्मक कलाओं के धारण करने की योग्यता से परिपूर्ण बनाता है। मकर संक्रान्ति उत्तरायण को जन्म देती है जिसे देवों का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। भारतवर्ष का सम्बुद्ध ट्टषि जीवन के प्रत्येक क्षण को पर्व की तरह उत्साह एवं आनन्दमय ढंग से व्यतीत करने की पुष्टि करता है। परमपूज्य सद्गुरुदेव श्रीसुधांशुजी महाराज का कथनµमस्त रहो, व्यस्त रहो, अस्त-व्यस्त मत रहो’’ हमारे जीवन को आनन्द प्रदान करता है। न जाने कितने भक्त इस अमृतविन्दु को अपनी मधुर वाणी की कुमुद पंखुड़ी पर नचाते रहते हैं। सदा दिवाली सन्त की आठ पहर वसन्त।। जीवन को पर्वों से सजाने की कला का उपदेश सन्त महापुरुष करते हैं और शास्त्रें के पन्ने अनेक उदाहरणों से भरे पड़े हैं।

मकर संक्रान्ति का महान पर्व सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपने-आप रीति-रिवाजों के आधार पर विविध प्रकार से उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। आकाश व पृथ्वी के स्वच्छ वातावरण में सूर्य भगवान पवित्रता के मूल केन्द्र बन जाते हैं। इस पवित्र काल में धर्मानुरागी लोग अपनी-अपनी कामना-भावना के अनुरूप धर्मानुष्ठान, दान, अध्यात्म चर्चा, पुण्य आदि शुभ कर्मों का आरम्भ कर देते हैं। उत्तर दिशा देवों की मूल होने से तदाभिमुख सूर्य की प्रवृत्ति होते ही प्रकृति विशेष रूप में सात्विकता से परिपूर्ण हो जाती है। जिससे मानव के मनोभावों में सरलता, शुभता, उदारता, दानशीलता, गम्भीरता द्वारा मन शिवसंकल्प वाला हो जाता है। इसमें स्थूल से सूक्ष्म, निन्दा से स्तुति, विषाद से प्रसाद, अज्ञान से ज्ञान एवं मृत्यु से अमरत्व की सुदृढ़ सीढी को जीव सहजरूप में प्राप्त कर लेने की योग्यता से युक्त होता है। यह मकर-संक्रान्ति पर्व मनुष्य मात्र के आत्मोदय का सिद्ध शुभमुहूर्त है।

इस पर्व पर पूरे भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रें, देशों, प्रान्तों से आकर भक्त गण एक मास तक गंगा के क्षेत्र में घास-फूंस की झोपड़ियों में कल्प वास करते हुए विविध यज्ञ, पूजन, दान, गंगा स्नान, सन्त महापुरुषों के दर्शन, अभिवादन, व्रत- उपवास, ईश्वर आराधना, भजन से स्वयं को कृतकृत्य करते हैं। अपने द्वारा किए गए ज्ञात अशुभ अपराधों का अघमर्षण व प्रायश्चित करते हैं। अपने भाग्य का परिमार्जन करके सौभाग्य में परिणत करते हैं। पवित्रता व समता की पराकाष्ठा होने से देवलोक से देवता भी मानवरूप धारणकर तीर्थ का आनन्द लेते हैं। स्नान, दान करते हैं। ऐसा शास्त्रें में विभिन्न स्थलों में वर्णित किया गया है।

पुराणों में इस महान संक्रान्ति को पितरों का उद्धारक पर्व बताया गया है। राजा सगर के साठ हजार पुत्र जो कपिल मुनि जी के श्राप के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। उनके उद्धार के लिए भगीरथ जी का अनुगमन करती हुई गंगा जी कपिलजी के आश्रम में अपने पवित्र जल का स्पर्श देकर सागर में मिल गईं। उस स्थान को आज गंगा सागर के नाम से जाना जाता है। जहां आज प्रति वर्ष चौदह जनवरी को मकर संक्रान्ति के पवित्र पर्व पर गंगा स्नान करके लाखों करोड़ों की संख्या में भक्त गण पुण्य लाभ करते हैं। वहां पर स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व शास्त्रें में बताया गया है।

मकर संक्रान्ति पर्व रात्रि के परिमाण का संकोचक तथा दिन के परिमाण का संवर्धक है। अतः दिन का तिल-तिल करके बढ़ना आरम्भ हो जाने से प्रसन्नता व्यक्त करते हुए लोग तिल का दान करते हैं। तिल से बनी मिठाइयां व अन्य भोज्य पदार्थ दान के रूप में भेंट देकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
यह पर्व पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाए जाने की परम्परा है। उत्तर भारत खासकर पंजाब में यह लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वहां एक वृत्तान्त प्रचलित है कि भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस के द्वारा भेजी गई लोहिता नाम की राक्षसी को कृष्ण ने खेल-खेल में इसी दिन मार डाला था। उसी लोहिता के नाम से वहां लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी खेतों मेें हरी-भरी फसलों, सन्तान वृद्धि तथा वैवाहिक सुखों की प्राप्ति का महान पर्व है। लोहड़ी मकर संक्रांति के स्वागत में खुशी का इजहार करने का पर्व भी है।
वहां यह पर्व एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। सिन्धी समाज इसे ‘‘लाल लोही’’ नाम से मनाता है। तमिलनाडु में ‘‘पोंगल’’ के रूप में बहुत बड़े स्तर पर धूम-धाम के साथ मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। वहां का पंचांग पोंगल पर्व से ही वर्ष का आरम्भ करता है। वहां के लोग अपनी मुख्य फसल धान एवं दलहन के पकने पर, कृषि के पकने पर, कृषि के देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके तिल के द्वारा निर्मित व्य×जनों तथा तिल-चावल की खिचड़ी बनाकर पूजा करते हैं।

वस्तुतः यह पर्व समर्थ व धनवान लोगों द्वारा गरीब, कमजोर, विकलांग, दीन-हीन जनों की आर्थिक सहायता करने से सम्बन्ध रखता है। यह समय अनाज एवं पैसे की दृष्टि से अधिक अभाव से ग्रस्त होता है। अतः ‘जियो और जीने दो’ की भावना का उद्गारक पर्व है। परोपकार से पुण्य एवं सद्ज्ञान की प्राप्ति के साथ-साथ आत्म सन्तोष का लाभ मिलता है।

पूज्य सद्गुरु श्रीसुधांशुजी महाराज के आशीर्वाद से विश्व जागृति मिशन द्वारा गरीब, अनाथ, जरूरतमंद लोगों के लिये अनेकानेक सेवा कार्य किय जाते हैं। साथ ही गौमाता की सेवा के लिये गौशालाएं भी संचालित हैं। प्रत्येक पर्व-त्यौहार पर आनंदधाम आश्रम में युगऋषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र द्वारा पूजन-जप-पाठ एवं यज्ञ-अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। इस लोहड़ी और मकर संक्रांति के पर्व पर विशेष पूजा-अनुष्ठान किये जा रहे हैं। आप मिशन से जुड़कर इस उत्तरायण के महान पर्व लोहड़ी और मकर संक्रांति पर दान-सहयोग, पूजन-यज्ञ-अनुष्ठान में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ प्राप्त करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *