प्राचीन काल से हमारी श्रेष्ठ परम्पराएं हमारी नई पीढ़ियों को हस्तांतरित की गयीं और नयी पीढ़ी ने उसका आदर करके बदले में बुजुर्गों को सेवा, पोषण, संरक्षण देकर, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखकर परस्पर विश्वास बनाये रखा। नयी पीढ़ी द्वारा अपने बुजुर्गों-बड़ों के लिए, धर्म-संस्कृति के लिए, देश के लिए अपना यौवन, सुख सब कुछ छोड़ देने की परम्परा रही है। इसे माता-पिता, बुजुर्गों के प्रति सम्मान वाली संस्कृति का देश भी कह सकते हैं। श्रीराम इसी देश में जन्में, जिन्होंने पिता की आज्ञा पाते ही राज्याभिषेक के अवसर पर राज्य छोड़कर वन चल पडे़। यह दो पीढ़ियों के बीच परस्पर विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। आज इसी विश्वास बहाली जैसे योग की देश को जरूरत है।
बूढ़ी आंखों व बूढ़े हृदय पर जब व्यंग बाण लगते हैं, शरीर काम नहीं करता, नींद आती नहीं, ऐसे में व्यक्ति का जीना कठिन हो जाता है। इन दिनों दुनियां में यही तो बढ़ रहा है। पद्मपुराण कहता है कि
अर्थात जो पुत्र अपने बुजुर्ग माता-पिता का संरक्षण, पोषण नहीं करता, बुजुर्गियत में उनका ख्याल नहीं करता, उसे सहस्र युगों तक कुम्भीपाक नामक नरक में रहना पड़ता है, इसके विपरीत माता-पिता, बुजुर्गों के प्रति कृतज्ञता बरतने, उनकी सेवा, सम्मान करने वाले को असीम सुख-शांति, संतोष, सदगति प्राप्त होती है। मनु स्मृति कहती है-
अर्थात् ‘‘तुम अपने बड़ों का आशीर्वाद लो, निश्चित रूप से बड़ों के आशीर्वाद से तुम्हारी आयु बढे़गी, जबकि सच यह भी है कि उन बुजुर्गों में भी इससे संतोष, शांति व आरोग्यता बढ़ती है।’’
‘‘यदि हम अपने बुजुर्गों के प्रति पारस्परिक शांति-सद्भाव, प्रेम, करुणा, संवेदनापूर्ण व्यवहार रखते हैं, तो परिवार सुखद वातावरण से भर उठता है, समाज के सभ्य बनने में देर नहीं लगती। बुजुर्गों को भी संतोष होता है कि उंगली पकड़कर हमने जिसको चलाया, जिन्हें भाषायी संस्कार दिये, अपना प्रेम, करुणा देकर सर्वस्व लुटाया। वे आज अपने बुजुर्ग माता-पिता, वरिष्ठजनों के प्रति आदर, कृतज्ञता तो प्रकट कर रहे हैं। इन प्रयोगों से बुजुगों में ताजगी भरी ऊर्जा जगती है और वे दीर्घजीवी, आरोग्यपूर्ण जीवन की अभिलाषा से भरते हैं। जबकि उपेक्षा से उनका मनोबल गिरता ही है, बीमारी घेरने लगती है।’’
भारतीय संस्कारों में माता-पिता के लिए मातृदेवो भव, पितृदेवो भव ही हमारी सांस्कृतिक परम्परा है। माता-पिता व बड़ों की उम्र बढ़ने पर संतानों द्वारा बुजुर्गों के सम्मान-श्रद्धापूर्ण स्वस्थ बुढ़ापा का मार्ग प्रशस्त करने को गुरुदेव ‘इक्कीसवीं सदी के युगधर्म निर्वहन’ की संज्ञा देते हैं। विश्व जागृति मिशन ने देश भर में परिवारों के बीच ऐसी परम्परायें चलाने का अभियान चलाया, जिससे नई पीढ़ी को अपने बुजुर्गों के स्वास्थ्य, संरक्षण, पोषण एवं मान-सम्मान में रुचि लेने की प्रेरणा उभरी। इसे परस्पर दो पीढ़ियों के बीच विश्वास बहाली का योग अभियान कह सकते हैं।
अपने बुजुर्ग माता-पिता को लम्बी आयु तक स्वस्थ-संतोष पूर्ण रखने वाले ऋषियों के कुछ प्रयोगों पर आइये विचार करते हैं, जिसके सहारे उन्हें स्वास्थ्य लाभ के साथ प्रसन्नचित्त, संतोषपूर्ण जीवन का लाभ दिलाया जा सकता है। प्रस्तुत हैं जीवन व्यवहार से जुडे़ महत्वपूर्ण सूत्र, जो दोनों पीढियों में परस्पर विश्वास बहाली में कारगर साबित हो सकते हैं, इसके लिए- परिवार के सदस्य प्रतिदिन प्रातः काल अपने वृद्ध माता-पिता तथा बड़ों के चरण स्पर्श अवश्य करें। संस्कृति अनुसार चरण स्पर्श से परस्पर दोनों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। जिससे पारस्परिक प्रेम जगता है और आरोग्यता बढ़ती है।
वृद्ध पुरुषों के साथ नई पीढ़ी को प्रतिदिन कुछ समय व्यतीत करने, परस्पर वार्तालाप करने, हंसी-विनोद की बातें करने में अद्भुत स्वास्थ्य विज्ञान छिपा है। इससे संतोष, समरसता जगती है तथा स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
प्रातः एवं सायंकाल सन्ध्या के समय बुजुर्गों के साथ आरती, भजन, संकीर्तन अवश्य करें। बुजुर्गों की सामर्थ्य एवं ऋतु के अनुसार उन्हें भ्रमण के लिये ले जायें। इससे प्रकृति दर्शन के साथ-साथ शरीर में सक्रियता आती है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी रहता है। उन्हें धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यों में भागीदार बनायें, जिससे वे अपने आपको अनुपयोगी न अनुभव करें, इससे भी प्रसन्नता व आरोग्यता बढ़ेगी। बुजुर्गों को श्रीमद्भागवद्गीता, रामायण तथा अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें पढ़ने को दें। पढ़ने में असमर्थ होने पर उन्हें खुद उनके अनुकूल पढ़कर सुनायें, विचारों का यह आदान-प्रदान बुजुर्गों के लिए संजीवनी जैसा काम करता है, अंतःकरण की पीड़ा मिटती है। अवस्था एवं शक्ति के अनुसार बुजुर्गों को समय-समय किसी धार्मिक स्थल पर अवश्य ले जायें। इससे उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का विज्ञान काम करता है।
बुजुर्गों को नौकर अथवा पड़ोसी के आश्रित न छोड़ें, इससे वे सम्मानित अनुभव करते हैं, अतः साथ रहें। इससे उनका मनोबल बढ़ता है, वे स्वस्थ अनुभव करते हैं। प्रेम एवं विश्वास बढ़ाने के लिए अपने नन्हें-मुन्नों को बुजुर्गों की गोद में अवश्य डालते रहें। इससे दोनों ऊर्जा से भरते रहते हैं।
रुग्णावस्था में उनका यथाशीघ्र, यथा शक्ति, यथा समय उपयुक्त उपचार का प्रबन्ध करते रहें। उन्हें समय पर स्वयं दवा देकर प्रसन्नता अनुभव करें। उन्हें अकेला न छोड़ें, इससे उन्हें सूकून अनुभव होगा। खान-पान, वस्त्र आदि में उनकी इच्छा का ध्यान रखें। पथ्यापथ्य के पूर्ण विचार के साथ उन्हें भोजन, फल, दूध, नाश्ता नियमित एवं निर्धारित समय पर दें। बिना मांगे उनकी आवश्यक इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करें, इससे वे अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करेंगे और अंदर से ऊर्जावान अनुभव करेंगे।
भूलकर भी बुजुर्गों पर कटाक्ष एवं कटुतापूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें, उन्हें दुःखी न करें, शान्त रहें। परिवार के सभी सदस्य उनके साथ धैर्यपूर्वक सामंजस्य बनाकर रखें।
इस प्रकार बुजुर्गों के प्रति किये गये सद्व्यवहार से परिवार के सदस्य अपने बुजुर्गों की प्रसन्नता, आरोग्यता सहज बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार जीवन के अन्तिम भाग तक बुजुर्गों की सेवा, सहायता, सहयोग का ध्यान रखने से नई पीढ़ी उत्तम गुणों की वारिस बनती है। यदि नई पीढ़ी अपने बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेंने, मिलकर रहने, सहयोग करने की सोच अपनाकर घरों के अन्दर प्रेम, सद्भाव जगा सकती है, तो दोनों पीढ़ियों का जीवन सुखमय, संतोषपूर्ण हो सकता है। परिवार विश्लेषक कहते हैं कि ‘‘बूढ़े व्यक्ति के पास स्मृतियां, जवान के पास कल्पनाएं हैं, यदि दोनों का मेल बने, तो कमाल हो जायेगा, धरती पर स्वर्ग अवश्य उतर आयेगा’’