सदगुरु के प्रति जब शिष्य का पूर्ण समर्पण भाव उत्पन्न हो जाये , उसी अवस्था को गुरुभक्ति कह सकते हैं
परंतु गुरुभक्ति का मतलब मात्र दीक्षित हो जाना नहीं है, शिष्य के ह्रदय में अत्यंत आदर, प्रेमभाव और स्वयं को मिटा देने की स्थिति आने को ही गुरु के प्रति अटूट भक्ति कहा जायेगा ।
सदगुरु यही कहते हैं कि गुरु को मानो वह तो ठीक है पर उससे ज्यादा “गुरु की” मानो – मतलब स्पष्ट है कि गुरुबचनों का आदर करना एवं गुरु की हर आज्ञा का पालन करने से ही आपकी भक्ति प्रकट होती है ।
गुरु का भी एक प्रोटोकोल होता है : उन सब का भी ध्यान रखना शिष्य का परम कर्तव्य है : गुरु के पास कैसे बैठना है, कैसे विनम्र भाव से उन्हें सम्मान देते हुए प्रणाम करना है- जिसे भगवान कृष्ण ने प्रणिपात करना कहा, उसका भी पालन करना है ।
सदगुरु व्यक्ति नहीं, शक्ति हैं- उनके ओरे से आता हुआ प्रकाश की किरणें हम सभी भक्तों को भी प्रकाश से भर देती हैं- उस संवेदनशीलता को अनुभव करो और तुम्हारा दीपक भी जल उठेगा ।
गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर हम अपनी श्रद्धा और प्रेम का प्रदर्शन इस रूप में करें कि गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप तो अधिक से अधिक करना ही है , उनके द्वारा दी गयी विधियां, साधना के माध्यम से अपने जीवन मे उतार कर अपना कल्याण करना है ।
और सबसे खास बात की गुरु द्वारा चलाये गए सेवा कार्यों में बढ़ चढ़कर सहयोग कीजिये क्योकि यह सेवा दुर्भाग्य की रेखा को भी मिटाने का कार्य करती है और जीवन खुशियों से भर जाता है ।
गुरुपूर्णिमा की सभी को शुभकामनाएं : सदगुरु का आशीष हम सभी भक्तों पर बरसता रहे!
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Koti koti parnam guru dev!!! Aapka ashirwad hamesha bna rhe!!