मनोविज्ञान का एक नियम है – यदि आप अपने मस्तिष्क में ऐसी छवि बना लेते हैं जैसा आप बनना चाहते हैं और तत्पश्चात उस छवि को दीर्घकाल तक स्थिर रखते हैं तो निश्चित रूप से आप वैसा ही बन जाएँगे जैसा आपने सोचा था।
वेद में वर्णित इस मंत्र में भी जीवन को श्रेष्ठ बनाने के संदर्भ में बहुत ही सुंदर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है:
‘जायसवंतः’ का अर्थ है – गुरुता अर्थात श्रेष्ठता की और अग्रसर होना। श्रेष्ठ बनने के लिए आवश्यक है – शारीरिक और मानसिक विकास में संतुलन। अर्थात शरीर के साथ-साथ मन का भी उत्त्थान। मन के विकास हेतु चिंतन-मनन के द्वारा दृष्टिकोण को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए। श्रेष्ठता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारा तुच्छ दृष्टिकोण ही उत्पन्न करता है। ‘छोटी सोच और पैर की मोच’ हमें कभी आगे बढ़ने नहीं देती। अतः दृष्टिकोण का विशाल होना आवश्यक है।
श्रेष्ठता की इस यात्रा में हमारी तुच्छ दृष्टि ही नहीं, अपितु कई लोग भी समस्याएँ उत्पन्न करते हैं। हमारे आसपास ऐसे लोग भी होते हैं जिनका एक ही ध्येय होता है – हम आगे बढ़े, न बढ़े, कोई और भी आगे नहीं बढ़ना चाहिए। अभिप्राय यह है कि कुछ लोगों को अपनी अवनति से उतना कष्ट नहीं होता जितना दूसरों की उन्नति से। निष्कर्षस्वरूप आपको स्वयं ही अपनी उन्नति, अपने विकास, अपनी श्रेष्ठता हेतु न केवल संकल्पबद्ध होना होगा अपितु निरंतर प्रयास भी करते रहना होगा। श्रेठ बनने के लिए आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना होगा। आत्मनिर्भरता का यह अर्थ बिलकुल नहीं कि हम दूसरों का सम्मान करना छोड़ दें, उनके महत्व की उपेक्षा करें, उन्हें स्वयं से तुच्छ समझें। आत्मनिर्भरता के साथ प्रायः इस तरह के विचार भी हमारे मस्तिष्क को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिससे सावधान रहना अत्यंत आवश्यक है।
आत्मनिर्भर बनने के लिए यह आवश्यक है कि आप नकारात्मक विचारों से सौ कोस दूर रहें। जैसे कई लोग राशिफल पढ़ते हैं और उसे गंभीरता से भी लेते हैं। यदि राशिफल में कुछ नकारात्मक लिखा होता है तो व्यक्ति पूरा दिन चिंता में व्यतीत कर देता है। उसका मन उस नकारात्मक विचार से खूँटे की तरह बंधकर उसी के चारों ओर घूमता रहता है और इस नकारात्मकता का कुप्रभाव मात्र उस व्यक्ति पर ही नहीं पड़ता अपितु उसके आसपास एवं साथ रहने वाले लोग भी इससे प्रभावित होते हैं।
एक बार मैंने भी निश्चय किया कि मैं एक साल तक अपना राशिफल पढूँगा – इस सत्यता की जाँच हेतु कि उसमें जो लिखा होता है उसमें कितना सत्य होता है। किन्तु इसके लिए यह आवश्यक था कि मैं किसी भी तरह से उसके प्रभाव से दूर रहूँ। मैंने इसकी युक्ति भी निकाल ली। मैंने अपना राशिफल दिन की समाप्ति अर्थात रात्रि में पढ़ना आरंभ किया जिससे मैं राशिफल का उचित मूल्यांकन कर सकूँ। यह प्रयोग मैंने पूरे साल किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि मैं उस राशिफल को प्रातःकाल पढ़ता तो मेरा पूरा दिन ख़राब होना निश्चित था। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि ज्योतिष विद्या गलत है। आपको नकारात्मकता का प्रसार करने वाले विचारों से दूर रहना चाहिए क्योंकि यदि आपका संकल्प बड़ा है, आपका कर्म बड़ा है तो भाग्य पीछे छूट जाता है और आपका सौभाग्य जाग्रत हो जाता है।
आज एक बेहतर जीवन के लिए धन की आवश्यकता होती है, बेहतर स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है, प्रेममय घर की आवश्यकता होती है। किंतु ऐसी कामना करने वाले आप अकेले नहीं है, अपितु बहुत सारे लोग हैं। यह सत्य है कि दुनिया में प्रतिस्पर्धा है किंतु साधन भी कम नहीं हैं। अगर आप चाहे तो कंप्यूटर और मोबाइल से आप घर बैठे-बैठे भी धन अर्जित कर सकते हैं और लोग कर भी रहें हैं।
इन्ही दिनों मैंने एक समाजशास्त्री का लेख पढ़ा। इस लेख में उन्होंने आगामी 50 वर्षों में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों पर अपना मन्तव्य रखा था। उनके अनुसार आने वाले समय में दुनिया के लोग एक-दूसरे के और निकट आ जाएँगे। भाषाओँ की बाधा दूर होती चली जाएगी। एक ऐसी भाषा उभरकर आएगी जिसे दुनिया के अधिकतर लोग अपना लेंगे। इतनी ही नहीं, जाति, बिरादरी इत्यादि 7 नस्लों का भेद भी मिट जाएगा। लोगों के पास साधन अवश्य बढ़ जाएँगे किंतु अशांति भी उसी अनुपात में बढ़ेगी। अंत में उन्होंने कहा कि हम भविष्य में कितनी ही प्रगति क्यों न कर लें किंतु जीवन को सुखमय बनाने के गुण सीखने के लिए मनुष्य को अपने माता-पिता, दादा-दादी अर्थात बड़े-बुजुर्गों की शरण में जाना ही होगा।
अतः इस तथ्य को समझना आवश्यक है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है “स्वास्थ्य” यदि स्वस्थ ही नहीं रहेंगे तो ये साधन किसी काम के नहीं। स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए। समय-समय पर स्वास्थ्य-जाँच भी करवाना चाहिए। धन भी आवश्यक है किंतु उतना, जिससे हमारी आधारभूत आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें। धन से दूसरों की सहायता आवश्य करें किंतु अपने लिए इतना अवश्य बचाकर रखें जिससे वृद्धावस्था में आप लाचार न रहें अर्थात अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किसी पर निर्भर न रहना पड़े अर्थात वृधावस्था अवस्था में भी आप आत्मनिर्भर रहें क्योंकि इस भौतिक युग में विचार और व्यवहार बदलते देर नहीं लगती।
जीवन को सुखमय बनाने के लिए रिश्तों को सँभालना अति आवश्यक है। रिश्तों में विश्वास बनाए रखना चाहिए क्योंकि विश्वास ही रिश्तों का आधार है। यह भी ध्यान में रखें कि
श्रेष्ठ बनने के साथ समझदार होना भी आवश्यक है। समझदारी अर्थात अपने रिश्तों को सँभालने की योग्यता, अपनी उलझनों को सुलझाने का सामर्थ्य। यदि इसका सरलीकरण करें तो जो व्यक्ति विवाद सुलझा दे वह समझदार और जो विवाद बढ़ा दे वह धूर्त। दुनिया में धूर्त लोगों की कमी नहीं है। गिराने वाले हमेशा अवसर की तलाश में ररहते हैं। अतः आपको उठने का साहस जुटाना आना चाहिए। इसके लिए आपको ईश्वर पर विश्वास रखना होगा। ये ईश्वर ही तो हैं जो डाल पर सोए पंछी तक को नीचे गिरने नहीं देता।
इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि किसी भी विकट परिस्थिति में आपको बिखरना नहीं है, टूटना नहीं है, क्योंकि वृक्ष से टूटा पत्ता तक अपना महत्व खो देता है। अतः किसी भी परिस्थिति में अपना विवेक खोना नहीं है। विवेक मात्र अपने अनुभवों से ही नहीं अपितु दूसरों के अनुभव से विकसित होता है, सुदृढ़ होता है।
विवेकवान व्यक्ति अमूल्य होता है। जिस तरह किसी बंजर जमीन में मीठे पानी का एक कुआँ सारी जमीन को हरा-भरा कर देता है ठीक उसी तरह किसी में एक समझदार व्यक्ति, विवेकवान व्यक्ति पूरे कुल का उद्धार कर देता है।
इन सबके अतिरिक्त जीवन में प्रगति हेतु यह भी आवश्यक है कि आप अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर केन्द्रित करें। परिश्रम करें और एकाग्र होकर आगे बढ़ें। यदि आप निश्चित कर लें कि आपको ऐसा बनना है, तो आपको ऐसा बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
एकजुट होना भी अति आवश्यक है। यदि सभी एकजुट होकर प्रयास करेंगे तो तथाकथित असंभव को भी संभव बनाया सकता है। किंतु एकजुटता के लिए एकमत होना अनिवार्य है और एकमत होने के लिए उचित संवाद आवश्यक है। जैसे दुर्गा माता के आठ हाथ हैं किंतु सर एक है अर्थात निर्देश देने वाला एक और उसका पालन करने वाले अनेक। अतः जिस घर में एक विचार से कार्य करने वाले लोग होंगे, अर्थात जहाँ एकजुटता होगी, शक्ति वहीँ होगी। जगदंबा की कृपा वहीँ होगी।
3 Comments
SAMPURNA SAMARPAN
Nice
Great Statment