आयु, विद्या, यश और बल ये चारों अनमोल उपहारों को प्राप्त करने के केन्द्र माता-पिता, वृद्धजन एवं गुरुजन हैं। इसलिए भारतीय संस्कारों में अपने बुजुर्गों के प्रति सदैव सेवा-सम्मान बनाये रखने की परम्परा है।
सर्वश्रेष्ठ धर्मों में एक
पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं-‘‘महापुरुषों, संत जनों की सेवा करना श्रेष्ठ है, पर घर में बैठे हुए माता-पिता बुजुर्ग की सेवा, सहायता सम्मान सर्वश्रेष्ठ धर्मों में एक है। जरा सोचिए बचपन में जिन्होंने लाड-प्यार से पालकर आपको बड़ा किया, वे बुढ़ापे में अपना सम्मान पाकर कितना खुश होते होंगे।
आनन्दधाम आश्रम में युवाओं के अंदर यही संस्कार जगाये जाते हैं। देश में अनेक वानप्रस्थ आश्रमों की स्थापना करने के पीछे भी बुजुर्गों के आत्मगौरव एवं सम्मान की प्राचीन परम्परा को जागृत करना और उनके जीवन को आनन्दमय बनाना है, जिससे बिना उपेक्षित वे मानव जीवन के सही उद्देश्य को प्राप्त कर सकें। आनन्दधाम की वानप्रस्थ व्यवस्था को श्रद्धापर्व के संकल्प पर आधारित बुजुर्गों के सामूहिक सम्मान का आदर्श माडल कह सकते हैं। यहां प्रत्येक बुजुर्ग अपने गुरु के चरणों में सत्संग, साधना, ध्यान, जप, गुरुदर्शन, स्वाध्याय आदि परम्परा अनुसार अपने आत्मबल को बढ़ाने में लगे रहते हैं। स्वस्थ शरीर, पवित्र मन के साथ शरीर, प्राण और आत्मा द्वारा वे अपने निज स्वभाव में स्थित होकर शांति, संतोष, सौभाग्यमय जीवन साधना का अभ्यास करते हैं।
आज विश्व स्तर पर सर्वाधिक आवश्यक है घर-परिवार के बीच बुजुर्गों के प्रति प्रेम, स्नेह-सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाना।
‘‘बुजुर्गों के लिए औषधि से अधिक आवश्यक है उनके प्रति स्नेह, सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाना। हमारी भारतीय परम्पराओं में दिये गये सूत्र इसके लिए अधिक कारगर साबित हो रहे हैं। इनके प्रयोग से बुजुगों में ऊर्जा संचरित होती है और वे दीर्घजीवी, आरोग्यपूर्ण जीवन की अभिलाषा से भर उठते हैं। जबकि अपनो द्वारा उपेक्षा से उनका मनोबल गिरता है, बीमारी घेरने लगती है। रोग घेरते हैं।’’
मनु स्मृति में वर्णन है कि-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात् ‘‘तुम अपने बड़ों का आशीर्वाद लो, निश्चित रूप से बड़ों के आशीर्वाद से तुम्हारी आयु बढे़गी। सच यह भी है कि उन बुजुर्गों में इससे आरोग्यता, प्रसन्नता, उल्लास बढ़ता है।’’
अपने घरों में बुजुर्गों को सम्मान देकर उन्हें स्वस्थ-प्रसन्न रखने हेतु प्रस्तुत हैं कुछ व्यावहारिक सूत्र-
- परिवार के सभी सदस्य प्रतिदिन प्रातः काल अपने वृद्ध माता-पिता तथा बड़ों बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर प्रणाम करें। इससे दोनों को आत्म ऊर्जा मिलती है। जिससे पारस्परिक प्रेम एवं अटूट बन्धन के साथ बुजुर्गों में आरोग्यता बढ़ती है।
- प्रतिदिन वृद्ध पुरुषों के साथ कुछ समय व्यतीत करें। उनसे परस्पर वार्तालाप करें, उनका समाचार जानें, हंसी-विनोद की बातें करें। इससे समरसता के साथ-साथ उन्हें संतोष व स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
- प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल सन्ध्या के समय बुजुर्गों के साथ आरती, भजन, संकीर्तन अवश्य करें। प्रतिदिन उनकी सामर्थ्य एवं ऋतु के अनुसार समय पर उन्हें भ्रमण के लिये ले जायें।
आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यों में प्रतिभागी बनाते रहें
- वृद्ध लोगों के सामर्थ्यानुसार उन्हें धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यों में प्रतिभागी बनाते रहें, जिससे वे अपने आपको संसार से अलग व अनुपयोगी न समझें। इससे उनकी प्रसन्नता व आरोग्यता बढ़ेगी।
- बुजुर्गों को उनकी आवश्यकतानुसार श्रीमद्भागवद्गीता, रामायण तथा अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें पढ़ने को दें। पढ़ने में असमर्थ होने पर उन्हें खुद श्रवण करायें। विचारों का यह आदान-प्रदान बुजुर्गों के लिए संजीवनी जैसा काम करता है। अवस्था एवं शक्ति के अनुसार उन्हें समय-समय पर तीर्थदर्शन और किसी धार्मिक स्थल पर अवश्य ले जायें। ऐसे स्थलों पर जाने से उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का विज्ञान काम करता है।
- उन्हें भार स्वरूप न मानें, यथा सम्भव उन्हें नौकर अथवा पड़ोसी के आश्रित न होने दे।
- प्रेम एवं विश्वास बढ़ाने के लिए नन्हें-मुन्नों को बुजुर्गों की गोद में डालते रहें। इससे दोनों ऊर्जा से भरते रहते हैं।
- समय पर औषधि व आहार देकर स्वयं प्रसन्नता का अनुभव करें। अधिक अवस्था आने की स्थिति में स्मरण शक्ति का ह्रास होता है, अतः औषधि लेने का काम बुजुर्गों के भरोसे न छोड़ें।
- खान-पान, वस्त्र आदि में उनकी इच्छा का अवश्य ध्यान रखें। पथ्यापथ्य के पूर्ण विचार के साथ उन्हें भोजन, दूध, नाश्ता नियमित एवं निर्धारित समय पर दें।
- प्रत्येक समय बिना मांगे उनकी समुचित इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करें, इससे वे अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर अंदर से ऊर्जावान अनुभव करते हैं।
- भूलकर भी बुजुर्गों पर कटाक्ष एवं कटुतापूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें, उन्हें दुःखी न करें, शान्त रहें। उन्हें इच्छा अनुसार दान-पुण्य करने की परम्परा से जोड़े रखें।
आइये! इन सद्भाव धाराओं के साथ बुजुर्गों के प्रति किये गये सेवापरक व्यवहार से परिवार के सदस्य पुण्य के भागी बनें। परिवार में अनावश्यक मनमुटाव से बचें तथा अपने बुजुर्गों की प्रसन्नता, आरोग्यता सहज बढ़ायें
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Very good inspiration