सुख की निजी व्याख्या लगभग हर व्यक्ति यह करता है कि जो उसे अच्छा लगे, जो खुद के अनुकूल पड़ता हो, जो उसके मन को रुचे; जो उसे पसन्द आए; वहीं सुख है। यह व्याख्या ठीक नहीं है। प्रायः देखा गया है कि लोग उनके पास जो उपलब्ध है वे उसका सुख नहीं उठा पाते। उल्टे जो उनके पास नहीं है उसके लिए वह दुःखी रहते हैं।
परम पिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त और उपलब्ध चीजों एवं सुविधाओं का लाभ उठाकर उनके सुख का अनुभव करें। किसी भी वस्तु का सुख एक सीमा तक ही हो सकता है। मिष्ठान्न पसंद व्यक्ति भी एक सीमा तक ही किसी मिष्ठान्न के स्वाद का सुख उठा सकता है। गीतों के शौकीन आदमी को एक ही गीत बार – बार सुनाया जाय तो वह बुरी तरह ऊबने लगेगा। जीने का सलीका ठीक करना होगा। जिस दिन हम अपनी कद्र करना सीख जाते हैं, ईश्वर हम पर मेहरबान होने लगता है। बच्चों के लिए पैसा जमा करके छोड़ जाने की बजाय उन्हें धन कमाने की विद्या सिखाएं।
चिन्ता और डर सुखी जीवन के सबसे बड़े अवरोध होते हैं।
हमें अनावश्यक चिंता से बचना चाहिए, चिंता और चिता में कोई अन्तर नहीं। चिता मानव को एक बार जलाती है और चिंता उसे बार – बार जलाती है। कई बार अकारण डर व्यक्ति को असमय मृत्यु के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है। सुखी जीवन के लिए अपने आहार, विहार, दिनचर्या आदि को व्यवस्थित करना पड़ता है। प्राणशक्ति को प्रबल बनाए रखने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया करो। निरोगी काया, घर में संपन्नता, संस्कारी सन्तान, समाज में प्रभाव, अच्छे लोगों के बीच निवास इत्यादि को जरूरी है।
सुखी जीवन के लिए आपको योद्धा बनना होगा। योद्धा संघर्षमय जीवन जीता है। मानव जीवन ही वस्तुतः एक संग्राम है। जीवन संघर्षों से कभी नहीं घबराना चाहिए। अपनों से दो मीठे बोल और तारीफ के शब्दों का महत्व भी समझो भी।
आरोग्यता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, पारिवारिक प्रसन्नता, सामाजिक प्रतिष्ठा के सूत्र भी सुखी जीवन जीने के लिए गुणसूत्र हैं।
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परम पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन एवं अभिनंदन
गुरूवर आप सदा ही अपने संदेशों के माध्यम से हमें जीवन जीने के नाते नये सूत्रों का उल्लेख करते हो । हमारा परम सौभाग्य है आप जैसे गुरु निर्देशन में हम अपने जीवन को ढालने का पूर्ण प्रयास करते हैं । सुखी जीवन जीने के लिए आत्मसंतोष का होना जरूरी है हमारे पास जो भी उसको ईश्वर का प्रसाद मानकर ग्रहण करें और अपने कर्म में प्रयासरत रहें ।
चिंता मनुष्य को दीमक की तरह खोखला कर देती है। वर्तमान में जीते हुए योग, साधना, प्राणायाम को अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दें तभी हम अपने जीवन को आनंदपूर्वक यापन कर सकते हैं ।
कोटि-कोटि नमन एवं हृदय धन्यवाद गुरुदेव जी
Very nice line thanks Jay gurudeo