आत्मचिंतन के सूत्र: | व्यर्थ इच्छाओं से मुक्ति का रहस्य | Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र: | व्यर्थ इच्छाओं से मुक्ति का रहस्य | Sudhanshu Ji Maharaj

व्यर्थ इच्छाओं से मुक्ति का रहस्य

आत्मचिंतन के सूत्र

आत्मचिंतन के सूत्र: व्यर्थ इच्छाओं से मुक्ति का रहस्य

जब सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति आंतरिक संतुष्टि की स्थिति तक पहुंच जाता है, उस स्थिति को स्थितप्रज्ञा या स्थिर बुद्धि के रूप में जाना जाता है। सभी इच्छाएँ पहले हृदय में समाप्त होती हैं, और उसके बाद व्यक्ति संतोष की स्थिति को प्राप्त करता है। जो अज्ञानी हैं उनमें स्वाभाविक रूप से इच्छाएँ उत्पन्न होंगी। एक अज्ञानी मन बहुत सी इच्छाओं और चाहतों को जन्म देता है।

जब आत्म-साक्षात्कार के समय अज्ञान समाप्त हो जाता है, तब मनुष्य अपनी निःस्वार्थ अवस्था में पहुँच जाता है। यदि इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, तो इसका अर्थ है कि अज्ञान समाप्त हो गया है और ज्ञान का प्रकाश आ गया है। ज्ञान का यह प्रकाश शून्यता और मन की भिखारी स्थिति को दूर करता है।

जितना अधिक हम रिश्तों और प्यार की मांग करते हैं, उतना ही वे हमसे दूर भागते हैं। हम इतनी सारी चीजों की मांग करते रहते हैं और भूल जाते हैं कि आत्मा राजा है जो इस शरीर और आत्मा पर शासन करती है। स्वयं के राजा बनो! हमने अपने शरीर, मन और बुद्धि को अपने ऊपर हावी होने दिया है, और इसलिए, हम अपने शरीर के राजा नहीं हैं; इसके तत्व हम पर शासन कर रहे हैं।

अपने केंद्र से जुड़िये

अपने केंद्र से जुड़िये और यह ध्यान द्वारा संभव है ! जब मनुष्य ध्यान साधना के द्वारा अपनी आत्मा का बोध करने लगता है तो वह अपने केंद्र से यानि परमात्मा से जुड़ता है ! उस स्थिति में व्यर्थ की इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं।

आत्मबोध भी व्यक्ति की व्यर्थ इच्छाओं का नाश करता है! आत्मबोध द्वारा ही साधक को ज्ञात होता है कि वे कौन हैं और उसके जीवन का उदेश्ये संसारी इच्छाओं से ऊपर है!

जैसे-जैसे हम अपने ‘स्व’ से जुड़ते हैं और खुद को ऊपर उठाते हैं, हम शरीर, मन और इंद्रियों से आगे बढ़ने लगते हैं और अपने केंद्र से जुड़ जाते हैं। बस यहीं से इच्छाओं का नाश होता है!

Atmachintan ke sutra

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