गुरु एक व्यक्ति नहीं, एक शक्ति है जो हमें इस जनम में कल्याण का मार्ग दिखाने आया है! गुरु देने आया है और पायेगा वही जो पूर्ण समर्पण करेगा अपने गुरु के प्रति! उत्तम शिष्य जो बनेगा, वही पायेगा! हर शिष्य की यही इच्छा रहती है कि वह अपने सदगुरु का प्यारा लाडला शिष्य बन सके; गुरु की तमाम कृपाओं का अधिकारी बन सके परंतु इसके लिए कुछ सूत्रों पर चिंतन अवश्ये करें!
गुरु से दीक्षा लेते ही शिष्य के अंदर भी उसकी ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है क्योकि दीक्षा देते समय गुरु अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा शिष्य के सर पर हाथ रखकर प्रवाहित करते है! काफी समय तक वह ऊर्जा शिष्य को अलग ही उत्साह प्रेम व प्रभु भक्ति की ओर ले जाने का कार्य करती है !
परंतु धीरे धीरे श्रद्धाकि अग्नि हल्की पड़ने लगती है -उस पर धुल पड़ने लग जाती है और साधक कहता है कि जो चमत्कार दीक्षा लेने के कुछ समय तक रहे, अब वह बात नही है !
वास्तव में होता यही है कि हमारा उत्साह धीरे कम होने लगता है , नियम छूटने लगते हैं ,श्रद्धा भी हल्की पड़ जाती है गुरु के प्रति : इसलिए यह परिवर्तन दिखाई देता है !
गुरुकृपा निरंतर बानी रहे तो इसके लिए जिस दिन गुरु धारण करते हैं , उसी दिन से गुरुको अपना आपा सौंप दो : कह दो सदगुरु मेरी जीवन की नौका अब आपके हवाले , जिधर चाहे लेकर चलो जैसे मर्ज़ी रखो : मैंने तो अपना पूर्ण समर्पण कर दिया आपके चरणों मे -जब आप इतने आत्मिक भाव से गुरु से जुड़ते हैं तो गुरु भी आपको अपने से दूर नही होने देते !
संसार की धुल हमारी श्रद्धा को डगमगाने के लिए पूरी तरह कोशिश करती है , आपके प्रेम के दिये को बुझाने की कोशिश करती है! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ,इसलिए समाज का बहुत बड़ा प्रभाव उस पर आता अवश्य है ! इस धुल को हटाने के लिए शिष्य को थोड़े थोड़े समय में गुरु दर्शन के लिए जाना चाहिए!
हम अपने को इतना सुदृढ बनाये की दुनिया की हवा हम पर काम न कर सके : गुरु तो अपनी कृपायें शिष्य पर लगातार लुटाते रहते हैं, बस हमे अपनी पात्रता विकसित करनी है और अपने दामन में उस रूहानी दौलत को संजोकर रखना है !
अपना आईना खुद बने, अपनी कमियां ,अवगुण जो भी कुछ है, उसे निकाल फेंके ओर चिंतन करे कि बहुत भाग्य से मनुष्य जीवन मिला ,उसमे प्रबुद्ध सदगुरु से मिलन हुआ – यह साधारण घटना नही है ,हमे प्रत्येक लम्हे का सजग, सतर्क होकर उपयोग करना है !
गुरु-शिष्य का बंधन है अनमोल! दुनिया के सब रिश्तों मे सबसे बड़ा रिश्ता गुरु का रिश्ता है ,बाकी सब रिश्ते स्वार्थ के कारण होते है और समय के साथ छूट जाते हैं परंतु गुरु का रिश्ता तो जन्म जन्मान्तरों का रिश्ता हैं: सदगुरु हमारी इस लोक में भी प्रगति कराता है और परलोक तक भी मोक्ष की प्राप्ति में सहयोग करता है !
इसलिए जन्मों के पुण्यफल से जो अवसर हाथ मे आया है , उसे व्यर्थ ना जाने दें , अपने गुरु से अपना इतना नज़दीकी रिश्ता बनाओ कि हर कदम उन्ही के आदेशानुसार चलना है आपकी श्रद्धा भावना आपको वह सब दिला देगी जिसकी कल्पना भी आपने नही की होगी !
गुरु के सम्मुख प्रणिपात करो , उन्हें अपनी ओर से कुछ भेंट अर्पित करो ,और कह दो मेरे प्यारे सदगुरु तुम मेरे हो और मैं तुम्हारा — सदा सदा के लिए यदि हम नियमित संयमित अनुशासित होकर गुरु की आज्ञा का पालन करेंगे तो जीवन खुशियों से भर उठेगा-सभी को गुरु पूर्णिमा की ढेरों शुभकामनाएं !
2 Comments
Param Poojya Sadguru Maharaj ke paawan charanon me saadar naman
Jai Guruver ️ naman avam vandan aapke Param Vandaniye shubh charanarvind ko