मन्त्र का प्रभाव साधक के प्राण, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अन्तःकरण स्नायुतंत्र, सम्पूर्ण षड्चक्रों पर पड़ता है। मानव के स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण तीनों शरीर झंकृत हो उठते हैं, व्यक्तित्व के अतल गहराई में समाये सद्गुणों के जखीरे अपना रहस्य खोलते हैं और साधक सेवा से जुड़कर संतोष पाता है।’’ देवता और मंत्र का गहरा सम्बन्ध है। कहते हैं देवता मंत्रों के अधीन हैं, पर साधक को इस स्तर तक पहुंचने के लिए प्राण, व्यान, अपान, समान, उदान ये पांच प्राणों को वश में करना पड़ता है।
विशेष मंत्र साधना में मंत्र उच्चारण के विशेष विधान, मंत्र साधना के विशेष विज्ञान की आंतरिक समझ और उच्चारण का विशेष आरोह-अवरोह क्रम भी महत्व रखता है। जैसे हारमोनियम आदि वाद्य यंत्रों की साधना में लय क्रम मायने रखता है। वैसे ही मंत्र की बनावट व उसका सही भूमि पर बैठकर, सही गुरु मार्गदर्शन, सही ढंग से उच्चारण सहित अनेक पक्ष हैं, जिससे साधक को अपनी आंतरिक शक्तियों के जागरण तक पहुंचने एवं मंत्रधीनःदेवता साबित करने में सहायक बन पाता है। इसी अवस्था में देव शक्तियों के अनुदान-वरदान मिलने लगते हैं। हम गायत्री मंत्र को ही लें, इसका जप अनेक प्रकार के वरदान उपलब्ध कराने में सफल है। लेकिन मंत्र में समाहित आरोह-अवरोह क्रम, भवना, आसन, गुरु मार्गदर्शन विधि आदि का क्रम अपनाना जरूरी है।
‘‘सविता सर्व भूताना, सर्वभावांश्य सूयते। सवनात्प्रेरणाच्यैव सविता तेन चोच्यते।।’’
अर्थात् हृदय की चैतन्य ज्योति गायत्री-ब्रह्म रूप तक पहुंचने के लिए विशिष्ट विधि से उपासना करने की जरूरत पड़ती है, तब यह करतल अनुदान प्रदान करने में सहायक बनती है। साधक की तीन ग्रंथियों, षटचक्रों-षोडश मातृकाओं, चौबीस उपत्यिकाओं एवं चौरासी नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र का उच्चारण क्रम व सही गुरु, सही स्थान, सही समय, वस्त्र से लेकर प्रयोग विधियां बहुत मायने रखती है। वैसे देवता आदर्श सदगुण ही है। जीवन में इन सद्गुणों का जागरण ही देवत्व का जागरण एवं मंत्र साधना की सफलता है। उच्च देवत्वपूर्ण भावदशा में उतर कर हम मंत्र साधना द्वारा जीवन में देवत्व को सहज आकर्षित कर सकते हैं।
जैसे देवता गुणों की शक्तिधारायें हैं, वैसे ही मनुष्य वास्तव में एक भटका हुआ देवता है। उसके अंतःकरण में अनन्त शक्तियों-सद्गुणों का भण्डार सूक्ष्म रूप में भरा पड़ा है। उन शक्तियों के समुचित जागरण से जीवन का सौभाग्य जागना प्रारम्भ होता है, संत-गुरु सूक्ष्म गहराई से साधक का आभामण्डल देखकर, उसके अनुरूप उसे विशेष मंत्र से जोड़कर उसकी शक्ति धाराओं को जगाते हैं। इस प्रकार साधक को अपनी दीनता, हीनता, निराशा से मुक्ति मिलती है और वह पुनः आशा, उत्साह के साथ उठ खड़ा होता है। वेद से लेकर उपनिषद, दर्शन तक में मंत्रों का महत्व है।
मंत्र अर्थात वह आवाज, ध्वनि, विचार जो साधक की सुशुप्त शक्तियों को संवेदित करती है मन्त्र कहलाते हैं। ‘‘मन्त्र वह परावाक् है, जो सद्चेतना की अतिसूक्ष्म क्षमता से ओतप्रोत है, जिसके उच्चारण का प्रभाव साधक के प्राण, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अन्तःकरण स्नायुतंत्र के साथ-साथ मानव के सम्पूर्ण षड्चक्रों पर पड़ता है। उसके स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण तीनों शरीर झंकृत हो उठते हैं, व्यक्तित्व के अतल गहराई में समाये सद्गुणों के जखीरे अपना रहस्य खोलने लगते हैं।’’ इसीलिए हमारे भारतीय ऋषियों ने मंत्रों पर विशेष जोर दिया है।
अर्थवेद कहता है- ‘‘कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो मे सख्याहितः’’ अर्थात् साधना की दिशा में व्यक्ति मन, बुद्धि, चित्त व चरित्र के साथ पुरुषार्थ करना शुरू करं, तो सफलता मिलेगी ही। ऋग्वेद में ऋषि घोषणा करता है-‘‘अहमिन्द्रो न पराजिग्ये’’ मैं इन्द्र हूं, किसी से पराजित होने वाला नहीं हूं, यह भी मंत्र है। महर्षि पतंजलि कहते हैं जीवन की गहराई से उभरे एक-एक शब्द का भी ठीक ढंग से जीवन व आचरण में प्रयोग किया जा सका, तो वही मंत्र बन जाता है और सुख, शांति, समृद्धि से लेकर मोक्ष, वैराग्य एवं स्वर्ग के द्वार खोल देता है।
मन्त्र साक्षात परमात्मा का ही स्वरूप माना गया है। मननात् मन्त्रः अर्थात् मनन करने से, विचार करने से मन्त्र शक्ति जागृत होती है। विश्व के महान् विचारकों ने दुनिया को कोई न कोई मंत्र दिया और स्वयं भी मंत्र साधना को जीवन लक्ष्य बनाया और उसे सिद्धि स्तर तक पहुंचाया। जैसे महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा दो मंत्र लेकर चले, महात्मा बुद्ध ने संसार को ‘करुणा’ का मंत्र दिया।
महावीर स्वामी ने अहिंसा और शांति को जीवन मंत्र, जीवन का परमधर्म माना। वास्तव में मंत्र स्वयं में ऊर्जा स्त्रोत्र हैं, जो एकाग्र चिंतन के सहारे साधक को भगवत्तापूर्ण उत्थान मार्ग से जोड़ता है। दृष्टि में लाने वाली बात विशेष यह है कि मंत्र जप के साथ-साथ साधक को सद्विचारों के चिंतन-मनन, सत्संग, स्वाध्याय, संत, गुरु स्तर के महापुरुषों की चिंतनधारा की संगत जरूर करनी चाहिए। इससे साधक अन्तरात्मा की गहराई तक मंत्र ऊर्जा को जगा पाता है। इसीलिए मंत्र को विचार का विज्ञान भी कहा गया है।
वास्तव में मंत्र का जागरण जीवन में क्रांति का घटित होने जैसा है, क्योंकि मंत्र का साधक लोकव्यवहार में चुप बैठ नहीं सकता, वह सेवा के बिना रह नहीं सकता। लोक कल्याण में लगे बिना रह नहीं सकता। क्योंकि मंत्र साधक की जड़ताओं को तोड़ता और अंतःकरण की सुप्त शक्तियों को जगाता है, जिससे साधक में करुणा जन्म लेती है और वह सक्रिय होकर सेवा से संतोष पाती है। मंत्र साधना अपनायें, जीवन में संवेदना-करुणा जगायें।