भगवान् शिव की भक्ति से आध्यात्मिक परमानंद का अनुभव होता है ! भगवान शिव का स्वरूप अवर्चनीय है :कपूर की तरह श्वेत ,करूणा के अवतार , गले मे सर्पों की माला -यह स्वरूप बाहर से दिखाई दे तो भगवान शिव का ही है! परंतु यदि हम उनके स्वरूप की व्याख्या में जाये तो बहुत कुछ समझ मे आता है।
भगवान शिव नंदी पर आरूढ़ होकर चलते हैं -नंदी क्या है “धर्म है” अर्थात जो धर्म को जीवन मे धारण करता है वह प्रभु का प्रेम पात्र है ! भगवान इतने सरल स्वभाव है कि उन्हें तो बेलपत्र, धतूरा और जल , यही चढ़ाया जाता है । अर्थात जो जड़ी बूटियां या पत्र किसी भी काम नही आते, भगवान उन्ही को स्वीकार कर लेते है !
गंगा की धारा लगातार भगवान शिव के मस्तक से बह रही है जो दर्शाती है कि भक्ति की धारा लगातार बनाये रखो , भगवान के चरणों मे अर्पित करते रहो ! यदि जल भी न मिले तो अपनी अश्रुधारा से ही भगवान का अभिषेक कर दो-वह स्वीकार कर लेंगे और कृपा होगी !
भगवान शिव के माथे पर अर्धचंद्र विद्यमान है जो शांति का प्रतीक है : धिवभक्त को भी इसी प्रकार माथे पर शीतलता का लेप अवश्य लगाना चाहिए यदि आप प्रभु के प्यारे भक्त बनना चाहते हैं !
दक्षिण के मंदिरों में शिव के मंदिर में प्रवेश करते ही कच्छप के दर्शन होते हैं , वहां प्रवेश द्वार पर कछुए को स्थापित अवश्य किया जाता है -इसका भी अर्थ है -कछुआ ऐसा जीव है जिसे आप किधर भी घुमाकर रख दीजिए वह अपने अंग सिकोड़ लेगा पर थोड़ी देर में फिर उसी दिशा में घूमकर चल पड़ेगा जो उसका गंतव्य था – दर्शाता है कि ए जीव::संसार की रंगिलियो में मत उलझ जाना ,उनसे अपना ध्यान हटाकर इंद्रियों को वश में करो और अपने लक्ष्य पढ़ी अपना ध्यान टिकाए रखो:यह बहुत बड़ा संदेश मिलता है !
भगवांन शिव का स्वरूप अधिकतर ध्यान मुद्रा वाला ही दिखता है कि बाहर की आंखें बंद कर लो और अंदर की आंख खोलो -संसार मे सत्य क्या है उसको जानो! सत्य है भगवान का नाम ,उसी का सिमरन करो !
शिवरात्रि का महान पर्व बहुत ही नज़दीक है : हमे पूर्ण विधि विधान से , जलाभिषेक, रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए , पार्थिव शिवलिंगों का भी पूजन करे और सबसे मुख्य बात कि अपने मन को पवित्र करें,सरल हृदय लेकर जाए और अपने सदगुरु का आशीर्वाद प्राप्त करके भक्ति को चरम तक पहुंचाए !