यदि आप साधना के क्षेत्र में उतरना चाहते हैं तो आपको सबसे पहली सीढ़ी जो चढ़नी होगी वह पवित्रता ही है : शुद्ध तन ,शुद्ध मन और शुद्ध आत्मा! यही सोपान है उसमें आगे बढ़ने के लिए !
पवित्र मन वाला व्यक्ति ही परमात्मा का प्रिये भक्त बन सकता है! भगवान को सबसे अधिक पसंद आता है वही मनुष्य जो पूरी तरह सरल ह्रदय वाला है, सांसारिक दोषों से दूर जिसने अपने मन को अपने नियंत्रण में कर लिया हो !
भक्ति के लिए आपको स्नानादि से शुद्ध होकर , शुद्ध वस्त्र धारण करके और मंदिर को भी शुद्ध करना होता है! मंदिर ऐसा हो जहां ताज़ी हवा आती जाती हो तो वहीँ आपका मन भगवान के चरणों मे टिक सकेगा !
अपने मस्तिष्क को पवित्र करें एकाग्रता द्वारा! जब आप भगवान की भक्ति में बैठे तो सब दुनियादारी की बाते अपने मस्तिष्क से निकाल दीजिए! पूर्णतः आपकी लो परमात्मा से जुड़ सके इसके लिए अपनी एकाग्रता को इतना गहरा बना लो कि आपको अपनी होश ही ना रहे! डूब जाओ उसकी मस्ती में और आनंद लो भक्ति का !
बेहोश और बेसुध होकर भक्ति करने से आपको अमृत रस बरसता हुआ महसूस होगा!
भगवान को ना आपका तन चाहिए , ना धन चाहिए -उसको तो केवल आपका मन चाहिए ! इतना शुद्ध मन जिसमे लोभ, मोह, अहंकार, वासना ,क्रोध कुछ भी कण बाकी ना रहे! ऐसा शुद्ध मन वाला परमात्मा के द्वार तक पहुंचता है !
स्नान से शरीर पवित्र होता है , सात्विक विचारों से मन पवित्र होता है और जाप से वाणी पवित्र होती है -इसलिए जाप का सहारा लो , चलते फिरते , उठते बैठते , सोते जागते : नाम सिमरन चलता रहे क्योकि सिमरन ही आपको शुद्ध करता है !
सुबह उठते ही भगवान का चिंतन , हर कार्य के पहले भगवान का चिंतन सोते समय भी उसी के चरणों मे अपना सर रखकर जैसे सो गए हों : यदि आप यह विधि अपनाते हैं तो आपकी आत्मा में पवित्रता की सुगंध आनी शुरू हो जाएगी और आप प्रभुमय हो जाओगे !
जब आपका मन निर्मल हो जाता है तो भगवान स्वयम आपको दर्शन देने आते हैं ! कबिरा मन निर्मल भयो जैसे गंग का नीर -पीछे पीछे हरि फिरे ,कहत कबीर कबीर – अर्थात शुद्ध पवित्र मन वाले व्यक्ति को भगवान को प्राप्त करने में देर नही लगती !
अर्थ यही की अगर भक्ति के मार्ग में चरम तक पहुंचने की इच्छा है तो धो डालो अपने सारे विकारों को -सरल, निश्छल मन लेकर समर्पित हो जाओ : कृपा अवश्य प्राप्त होगी !