यजुर्वेदीय मंत्रें के साथ श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ

यजुर्वेदीय मंत्रें के साथ श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ

Sri Ganesh-Lakshmi Mahayagya with Yajurvedic mantras.

यजुर्वेदीय मंत्रें के साथ श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ

‘‘सुन्वताम् ऋणं न न नूनं ब्रह्मणामृणं प्रोशूनामस्ति सुन्वताम न सोमाप्नापये’’ अर्थात् यज्ञ करने वाले कभी ऋणी नहीं रहते पर यज्ञ के प्रति समर्पित ब्रह्म परायण मनुष्य ही ऋण मुक्त रहता है। ब्रह्म परायण अर्थात् जो ब्रह्म, परमात्मा व उनके लोकमंगल कार्यों के विस्तार के निमित्त यज्ञ करते हैं, उन्हें परमात्मा ऋणी, किसी के कर्जदार, दुःखी दारिद्रड्ढ में नहीं फंसने देते। उन्हें अपनी शक्ति देकर इन सबसे उभारते हैं। ब्रह्मपरायण वही होता है, जो इंद्रिय जन्य विकारों से मुक्त होकर यज्ञ कर्म सम्पन्न करता हैं। अन्यथा यज्ञ पुरुष खुद क्रोध से यज्ञ करने वाले को अन्धा समझ कर उपेक्षित छोड़ देते हैं। ईर्ष्या से प्रेरित होकर जो यज्ञ करने वाले को बहरा समझ कर उसकी पुकार नहीं सुनते। यश के लिये यज्ञ करने वाले को धूर्त, निकृष्ट, स्वार्थी, कटुभाषियों, और दूसरों का अधिकार मारने वालों को यज्ञ भगवान शाप तक दे बैठते हैं।
इससे स्पष्ट है कि भौतिक और आध्यात्मिक सुख सम्पदायें परमात्मा उन्हीं को देता है, जो श्रद्धा, सच्चे अन्तःकरण, पवित्र चरित्र, शुद्ध परमार्थ दृष्टि से हवन करते हैं। उन्हीं का यज्ञ सफल भी होता है। ट्टषि कहते हैं यज्ञ करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, एक प्रकार से यज्ञ प्राकृतिक ब्रह्माण्ड का आहार माध्यम भी है। यज्ञीय विधि से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पोषण मिलता है। ब्रह्माण्ड का मुख यज्ञ है, इस भाव को मन में धारण करके निष्काम भाव से शास्त्र विधि द्वारा जो यज्ञ किया जाता है, वही सात्विक यज्ञ कहलाता है। ऐसा अग्निहोत्र ही भगवद्कृपा देता है, जिसमें फल की आकांक्षा नहीं होती और कर्त्तव्य भावना से शास्त्र सम्मत विधि से संपन्न किया जाता है।

अफलाकाघ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाए स सात्विकः।।

वर्तमान में आज स्थितियां बिगड़ने, लोगों का दुश्चिंताग्रन्त होना, विश्व स्तर पर कोरोना जैसी महामारी का संकल्प, युद्धोन्माद, हताशा-निराशा के फैलाव का कारण है सभी पंचतत्वों के अधिष्ठाता का सात्विक आहार से वंचित रहना। आज जल प्रदूषित है, पृथ्वी का वातावरण खराब है, पर्वतों की हरियाली नष्ट होती जा रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ताप बढ़ रहा है, वायु प्रदूषित हो रही है। जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश ब्रह्माण्ड के ये सम्पूर्ण तत्व हमारे देवता ही तो हैं। आज सब अपना मूलत्व खोते जा रहे हैं। सब पर प्रदूषण की मार पड़ रही है। परिणामस्वरूप कहीं समय पर वर्षा नहीं हो रही, तो कहीं अतिवर्षा का प्रकोप है। कब वर्षा हो, कब गर्मी और सर्दी होने लगे कहना मुश्किल है।
इसलिए अतिआवश्यक है कि हम यज्ञकार्य से जुड़कर सम्पूर्ण प्रकृति को सींचे। सात्विक संकल्पभाव से, शुद्ध मंत्र, सात्विक स्थान से, गुरु व ट्टषि निर्धारित यज्ञ से निश्चित श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे।
आयुर्वेद के ऋषि आचार्य चरक ने बहुत पहले कह दिया था कि ब्रह्माण्ड के तत्व शुद्ध पोषित न हुए तो आने वाला युग रोगों का युग होगा। वायु बिगड़ जाएगी, जल बिगड़ जाएगा, ऋतु क्रम बिगड़ जाएंगे। पहाड़ों के सौंदर्य बिगड़ जायेंगे। ऐसी अवस्था में सब प्राणियों के लिए नरक पैदा होगा। वास्तव में जब देवता कुपित होते हैं, तो पूरे समाज को और पूरे युग को दुःख भोगना पड़ता ही है। यज्ञ और सेवा ही इसका समाधान बताया था।
हमारे ऋषियों ने इस बात पर जब अधिक बल दिया कि भूखे को अन्न खिलायें, गऊ के लिए ग्रास निकालें, तड़पते हुए लोगों के बीच जाकर प्रेम और सहानुभूति बांटें, रोगी की सेवा करें, गुरुकुलों में ब्रह्मचारियों का शिक्षण-पोषण करें, वृद्धों की सेवा करें, आस्था के पोषण हेतु जप, ध्यान, अनुष्ठान करें। क्योंकि यह सब भी यज्ञ है।
वास्तव में परोपकार भाव से जो भी कार्य हम करते हैं, वे सब यज्ञ कहलाते हैं। उन यज्ञों को लोकहित में अपने जीवन का आधार बनाना ही चाहिए। विश्व जागृति मिशन पूज्यवर के मार्गदर्शन में आज मानव तथा प्रकृति को सुरक्षित करने के लिए सर्व आयामी यज्ञ अभियान ही तो चला रहा है।

तस्माद् यज्ञात्सर्वहुतः ऋचः सामानिजज्ञिरे। छन्दांसिजज्ञिरे तस्माद् यजुत्तस्वादजयायत।।

यज्ञ से ऋक, सजुः, साम और अथर्व चारों वेद उत्पन्न हुए। ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में वर्णन है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बान्धने वाली वस्तु यज्ञ ही है।
पांच प्रकार के यज्ञवाच्य बताये गये हैं-परमात्मा यज्ञ, यह संसार यज्ञ है, सुसंगठित मानव समुदाय यज्ञ है, मानव जीवन यज्ञ है, मनुष्य का प्रत्येक कल्याणकारी कर्त्तव्य कर्म यज्ञ है। इस प्रकार जब कोई संत, गुरु व सद्गुरु यज्ञ संकल्प लेता है, तो उसमें ये पांचों किये गये कार्यों द्वारा पक्ष सहज समाहित होते हैं। इसीलिये गुरु संकल्प से शिष्यों की कामनायें पूरी होती हैं, उनके घर परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है, आरोग्य मिलता है। गुरु संकल्प से उनका कर्म यज्ञ भी विश्व कल्याण का कारक बन जाता है। प्राचीन काल से हमारे ऋषियों ने अपने आश्रम की दिनचर्या के साथ सेवा, साधना व यज्ञ विधान को जोड़कर इसीलिए रखा था। साथ ही समय-समय पर अपने भक्तों एवं लोककल्याण के लिये आश्रम में द्रव्य यज्ञ आयोजन भी रखते थे। सद्गुरु पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज प्रतिवर्ष लक्ष्मी गणेश महायज्ञ के आनन्दधाम आश्रम में उच्च विद्वानों द्वारा अनुष्ठान सम्पन्न कराते आ रहे हैं। इस वर्ष कोरोना संकट के बावजूद गुरुदेव द्वारा यजुर्वेद यज्ञ का संकल्प किया है।
यजुर्वेद को चारों वेद में दूसरा वेद माना जाता है। पौराणिक व प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि त्रेतायुग में केवल एक ही वेद था यजुर्वेद। उस दौर में हर कार्य की श्रेष्ठ सफलता के लिये यज्ञ व हवन अनुष्ठान का विधान रखा जाता था। यज् का अभिप्राय है समर्पण, हवन भी यजन अर्थात् समर्पण की क्रिया है। यज्ञ-हवन के नियम व विधान जब याजक के भाव, गुरु के सेवा संकल्प से मिलते हैं तो अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय, अग्निहोत्र आदि अनेक यज्ञ प्रकट हो जाते हैं।

आनन्दधाम के यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञः

जिस प्रकार श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितर तृप्त और संतुष्ट होते हैं, उसी प्रकार यज्ञ की अग्नि में हवनीय द्रव्य हवन करने से देवत तृप्त और संतुष्ट होते हैं। ‘देवतोद्देशेन अग्नौ हविर्द्रव्यत्यागो यागः’ के अनुसार देवी-देवताओं की प्रसन्नता के उद्देश्य से अग्नि में हविर्द्रव्य का जो त्याग किया जाता है, उसे यज्ञ कहते हैं।
गीता के अठारहवें अध्याय के पांचवे श्लोक में वर्णन है कि यज्ञ, दान और तप मनुष्यों को पावन करता है। यज्ञ से अनंत आध्यात्मिक और दैवीय लाभ मिलते हैं, यज्ञ के वैज्ञानिक लाभ भी हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि यज्ञ से उठने वाले धुएं से वायु में मौजूद 94» हानिकारक जीवाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। साथ ही बीमारियों के फैलने की आशंका कम हो जाती है। यज्ञ का धुंआ वातावरण में 30 दिन तक बना रहता है। यज्ञ का धूम्र मनुष्य के स्वास्थ्य एवं ख्ेाती में लाभकारी है। फसलों के हानिकारक कीटाणु भी यज्ञ धूम्र से नष्ट हो जाते हैं।
यज्ञ में हवनीय पदार्थ के मिश्रण से एक विशेष तरह का गुण तैयार होता है, जो हवन के दौरान वायुमंडल में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है। वेद मंत्रें के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है।

यज्ञीय प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है आनन्दधाम आश्रम के आसपास के खेतों की हरियाली। साधक बताते हैं यहां आज से 20 वर्ष पूर्व बहुत कम फसलें होती थी। वहीं आज हरी-भरी नर्सरियां हैं, खेतों में बहुतायत में अन्न उपजता है। आसपास के गावों के लोग बताते हैं कि पहले यहां कुछ भी नहीं बोया जाता था। जंगल जैसा स्थान था, लेकिन जब से गुरुवर सुधांशु जी महाराज ने यहां आश्रम बनाकर यज्ञ आदि सेवाकार्य, ध्यान-जप करवाना शुरू किया, तब से यहां के क्षेत्र में हरियाली ही हरियाली है। आश्रम में सेवारत सेवादार और कर्मचारी तो यह प्रत्यक्ष तौर पर देख अनुभव करते ही हैं।
आनन्दधाम आश्रम में विगत 20 वर्षों से निर्विघ्न सम्पन्न हो हो रहा महायज्ञ इस वर्ष अति विशेष है। हर वर्ष जहां श्रीगणेश लक्ष्मी यज्ञ का पंचदिवसीय आयोजन किया जाता था, वहीं इस वर्ष यजुर्वेद यज्ञ के साथ श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ का 11 दिवसीय आयोजन रखा जा रहा है। यह 108 कुण्डीय महायज्ञ 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक आयोजित किया जायेगा।

महायज्ञ में 26 से 30 अक्टूबर इन पांच दिन तक यजुर्वेद के मंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन श्रीगणेश-लक्ष्मी के दिव्य अर्चन के साथ कुछ विशेष अन्य आहुतियां भी दी जाएंगी। 31 अक्टूबर से 5 नवम्बर, 2020 मे छः दिन श्रीगणेश-लक्ष्मी के महामंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन कुछ अन्य प्रयोगपरक आहुतियां यजुर्वेद के मंत्रें से भी दी जाएंगी।
महाराज श्री के सान्निध्य में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यह ‘‘यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ’’ भक्तों-श्रद्धालु शिष्यों के लिए स्वास्थ्य-सुख, धन-समृद्धि, नौकरी-व्यापार में उन्नति-प्रगति के साथ हर शुभ मनोकामना पूर्ण करने वाला साबित होगा। इसलिए हर व्यक्ति को इस यज्ञ में यजमान बनकर यज्ञ का लाभ लेना चाहिए। भक्तजन घर बैठे ऑनलाइन यजमान बनकर इस यज्ञ का पुण्यफल सहज प्राप्त करें।

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