“परमात्मा” खुशियों के लिए अपनी जिंदगी को डिजाईन करने की जिम्मेदारी सभी की है।
सही मात्रा में, सही समय पर, सही ढंग से किया गया क्रोध दवा होता है! जबकि गलत मात्रा में, गलत समय पर, गलत व्यक्ति पर, गलत तरीके से किया गया क्रोध विष की तरह होता है।
अपनी मुस्कुराहट, शांति, प्रेम, दया, करुणा, विनम्रता, सुशीलता एवं सज्जनता को सुरक्षित रखना सीखें तथा सहालना सीखें।
मंदिर वह प्रयोगशाला है जहां व्यक्तित्व का निर्माण होता है। मंदिर में पहुंचकर खुद को इतना शांत कर लें कि मन अल्फा स्तर तक पहुंच जाए। जितना शांत मस्तिष्क होगा उतना शक्तिशाली मन होगा।
हर दिन पर मात्मा की ओर यात्रा करें। पर मात्मा की शक्ति सर्वोपरि है, उसी के कारण सूर्य चंद्र, पृथ्वी, नक्षत्र, ग्रह मंडल सभी गतिमान है। हवा, जल, अंतरिक्ष और अग्नि सभी में जो शक्ति है वह उसी परमात्मा की है। उसी की शरण लेने से व्यक्ति परम गति को प्राप्त करता है।
जिस नाम एवं विधि से व्यक्ति परमात्मा से जुड़ता है वह विधि गुरु ही देते हैं! सतगुरु परमात्मा के प्रति रिश्ते को याद दिलाकर भक्ति प्रदान करते हैं।
सतगुरु हमें सिखाते हैं जीवन के एक-एक लम्हे का आनंद कैसे लिया जाये! कर्म भी आनंदपूर्वक करें! लोक और परलोक दोनों में सफ़लता के लिए गुरु ही माध्यम बनते हैं। जो व्यक्ति इस संसार में प्रेमपूर्ण, कृतज्ञ, संतुष्ट, प्रसन्न, शांत आनंदित होकर जीता है वही परमात्मा के श्रीचरणों में भी स्थान पाता है इसलिए अपने प्रत्येक कर्म को शुभ कर्म बनाएं और हर दिन को शुभ दिन बनाएं।
सतगुरु द्वारा बताई गयी विधियों को नियम पूर्वक अपने जीवन में बुनने से आप परमात्मा से संयुक्त हो सकते हैं!