तुम योग में रत हो या भोग में, तुम अकेले हो या दुनिया के मेले में, तुम जहाँ भी हो, जिस भी अवस्था में हो; तुम्हारा चित्त परमेश्वर से जुड़ा रहे ! अगर ऐसा कर पाते हो तो तुम्हारे जीवन में आनंद ही आनंद है! इस आनंद को लेने की चेष्टा हर किसी को करनी चाहिए!
जिसका भगवान् में चित रमा हुआ है बस आनंदित तो वही है दुनिया में; बाकी तो सारे दुखी हैं क्योंकि वह लोग संसार का चिंतन करते करते चिंताओं में जीवन जी रहे हैं! इस लिए परमात्मा की ओर चलना शुरू करो और इसके लिए दिए गए हैं यह अनमोल सूत्र!
केंद्रित होना सीखिए! अपने घर में, निज धाम में पहुंचना सीखिए! अपने स्वभाव में स्थिर होने की चेष्टा करो! आपका स्वभाव वह होता है जिस में आपको निरंतर रहना अच्छा लगता है! प्रेम, शांति, मुस्कुराना ही आपका स्वभाव है! आपका वास्तविक स्वभाव आनंद है और परमानन्द ही आपका निज धाम है! इससे जुड़ना ही भक्ति है! शांत अवस्था में जीना सीखो! अशांत रहोगे तो विचलित रहोगे! साथ ही अपनी शांति को सुरक्षित रखो!
नित्य प्राणायाम करो: श्वास अंदर लेते हुए अपने लक्ष्य को, भविष्य को पूरी क्षमता के साथ अपने अंदर स्थिर करो और श्वास बाहर निकालते हुए सारि नकारात्मकता को बाहर फैंको!
पीड़ा देनेवाले भूतकाल को भूलो वर्णा पीछे रह जाओगे, निराशाग्रस्त हो जाओगे! भविष्य को ध्यान में रखो! कीचड का खेल खेलने वालों को कीचड में छोड़ दो! जिसने बहुत आगे जाना है उन्हें अपने लक्ष्य पर ही केंद्रित रहना होगा! ध्यान दो कि आपने अपने जीवन को रुदन का केंद्र बनाना है या आनंद का? आनंदित रहोगे तो सुंदरता में निखार आएगा!
इस चार चीज़ों पर रोज़ ध्यान दो क्योंकि जिसके पास यह हैं वही जीवन में सफल होगा: माथे पे शांति रहे, चेहरे पर मुस्कराहट, वणी में मधुरता, और अंग अंग में कर्म करने का जोश!
संतुलन बनाओ जीवन में! खुश रहो और खुश रखो; ताल मेल बनाओ और बनवाना भी सीखो; झुको भी और झुकाना भी सीखो; मानो भी और मानवओ भी!
उसकी सुरति, उसकी याद को जगाये रखो! कोई भी काम शुरू करने लगे हो तो भगवन को याद करो, जागते, सोते, कार्य करते हुए , कुछ भी करते हुए उसकी सुरति आपके अंदर रहे! उससे जुड़ने से उसकी कृपा मिलती है जरूर!
व्यक्ति को थोड़ा सा पद मिल जाये, धन आ जाये तो अभिमान करने लगता है! इस लिए प्रार्थना करो की भगवान् मुझे ऐसी खुदायी न दे की मुझे अपने सिवा कुछ और दिखाई न दे! भगवान् को अभिमान पसंद नहीं है!