शरद पूर्णिमा को अमृत पूर्णिमा की उपमा दी गई है। पूर्णिमा और चांद का आपस में गहरा सम्बन्ध है। शरद की पूर्णिमा को चन्द्रमा की किरणों से अमृत वृष्टि होती है जिससे सभी वनस्पतियों और औषधियों में अमृत रस का संचार हो जाता है। शरदपूर्णिमा के रात में ही परब्रह्म के पूर्ण अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महारास की अमृत वर्षा से ट्टद्धासिक्त गोपियों को अमृत तत्व की प्राप्ति हुई थी।
शिष्य के जीवन में सद्गुरु का आना अमृत तत्व की प्राप्ति है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृर्त्योर्माअमृतं गमय’ के बोधवाक्य का साक्षात् प्रमाण है सद्गुरु। अर्थात् जो शिष्य के अज्ञान, अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश भर दे, जो अकाल मृत्यु को हरण कर शिष्य के जीवन में अमृत का संचार कर दे वह है सद्गुरु। देखा जाय तो प्रत्येक पूर्णिमा में गुरु दर्शन का विशेष महत्व है। पूर्णिम में गुरु कृपा की अमृत वृष्टि से शिष्य का मन-जीनव धन्य हो जाता है, लेकिन जब बात आती है शरद पूर्णिमा की तो फिर कहना ही क्या है। शरद में जहां अम्बर से चांद अमृत वर्षा रहा होता है वहीं गुरु ज्ञान के अमृत से शिष्य का मन मस्तिष्क नवीन हो जाता है, प्रवीन हो जाता है।
शरद पूर्णिमा में जहां प्रकृति अमृत बांट रही होती है, वहीं जब भक्तजन गुरु के सेवाकार्यों में दान-सहयोग करते हैं। तो उनका धन अमृतमय हो जाता है। शरद पूर्णिमा में गुरु घर में दिया गया दान शिष्य के लिए हजारों गुणा फलदायी होता है, ठीक वैसे ही जैसे यज्ञ में दी गई घी और हवनीय सामग्री की सुगंध हजारों गुणा बढ़ जाती है। खेत में बो गए बीज से कई गुना बढ़कर किसान के घर में फसल वापिस आती है। इसी तरह शरद पूर्णिमा में दिया गया दान महाफलदायी होता है। अतः हर भक्त की कोशिश होनी चाहिए कि आज के दिन वह ज्यादा से ज्यादा दान-पुण्य करके अनंत-अनंत फल प्राप्ति का वरदान पावे।