कहते हैं कि परमात्मा की दो शक्तियां हैं, महाकाल और महाकाली। इसी का रूप है मृत-संजीवनी, महामृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र। यदि व्यक्ति श्रद्धा भाव से इनका पाठ करे तो उसे सुबुद्धि भी मिलती है और सामर्थ्य भी प्राप्त होता है।
भगवान शिव आशुतोष हैं, जगत के कल्याण करने वाले उनके स्वरूप का ध्यान करते हुए महसूस कीजिए कि सिर के ऊपर गंगा की धारा बह रही है और माथे पर चन्द्रमा है। तो हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि जब हमारे सिर पर भक्ति की धारा बहे तो हम अपने मालिक को, अपने रब को लगातार याद करते रहें और माथे पर चन्द्रमा रहे तो शीतलता रहे।
भारत का सिर (ऊपरी भाग) हिमालय है और हिमालय हमेशा ही ठण्डा रहता है और भारत के पांव कन्याकुमारी में हैं और ये गर्म रहने चाहिए। तो हमें इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत की संरचना इस प्रकार हुई है कि उत्तर में, जहां भगवान शिव का वास है, कैलाश पर्वत है। मानो पूरा भारत ही शिव है और शिखर भगवान का सिर है और शिव की अलकें जहां तक हैं, जहां पहुंचकर पर्वत शिखर अपनी अलकों को समाप्त करते हैं वहीं से हरिद्वार शुरू होता है। जैसा भारत का स्वरूप है वैसा ही मनुष्य का रूप भी है। सिर को हमेशा ठण्डा रहना चाहिए और भक्ति की धारा में स्नान करते रहना चाहिए, लेकिन इस बात का ध्यान रखते चलें कि पांव गर्म रहने चाहिए। डाक्टर लोग तथा दूसरे लोग, जो स्वास्थ्य के नियम बतलाते हैं, कहते हैं ‘‘पांव गर्म, पेट नरम, सिर ठण्डा—।
उस मालिक की कृपा बनी रहे, इसलिए भगवान शिव के इस रूप का भी ध्यान रखना कि भगवान हैं नीलकण्ठ, भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुए विष को अपने कण्ठ में धारण किया। उसमें से विष भी निकला था और अमृत भी निकला था। अमृत पीने वाले सब देव कहलाए, किन्तु दूसरी वस्तु यानी विष की कड़वाहट को पीने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। जिस कड़वाहट से पूरी धरती जल सकती है, नष्ट भी हो सकती थी, उस जहर को अपने मुख में लेकर कण्ठ में रखने का काम भगवान शिव ने किया। तो सब देव तो अमृत पीने के बाद सिर्फ देव कहलाये, लेकिन जिन्होंने दूसरों के हिस्से की कड़वाहट को पी लिया, देव नहीं अपितु देवों के भी देव यानी उन्हें ‘महादेव’ कहा गया।
यदि दूसरों की कड़वाहट को पीकर कोई व्यक्ति अपने घर को टूटने से बचाता है तो वह भले ही उम्र में छोटा हो, रिश्ते में छोटा हो, वह छोटा होकर भी छोटा नहीं रहता, वह बड़ा हो जाता है और अगर वह बड़ा है तो और भी बड़ा हो जाता है। इसलिए कड़वाहट पी लें लेकिन घर को जोड़कर रखना, यही भगवान शिव का संदेश है, लेकिन साथ ही भगवान यह भी दर्शाते हैं कि उन्होंने जहर को पी तो लिया और उस जहर से उनका गला नीला हो गया, किन्तु उन्होंने उसे न तो नीचे जाने दिया और न बाहर निकलने दिया। दूसरी ओर दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो कड़वाहट पी तो लेते हैं किन्तु जब उसे बाहर निकालते हैं तब उसे दस गुना बढ़ाकर बाहर निकालते हैं और ये कहते हैं कि कोई एक बोलेगा तो दस सुनेगा भी, किन्तु भगवान शिव ने सारी कड़वाहट को अपने भीतर रखा। साथ ही कमाल यह भी किया कि कड़वाहट केवल गले तक ही रखी, उसे नीचे नहीं जाने दिया। तो कहना यह है कि दुनिया की कड़वाहट पी लेना लेकिन दिल तक मत जाने देना। कड़वाहट गले तक ही रखो तो अच्छा।
ये दुनिया तो बोलेगी ही, बिना बोले रह नहीं सकती। अच्छा करोगे तो भी बोलेगी, बुरा करोगे तो भी बोलेगी। इसलिए इसके बोलने पर ध्यान मत देना, अपने मालिक पर ध्यान देना और अपना काम करते जाना। तो कण्ठ तक ही कड़वाहट को रख लेना, ना अन्दर लेना और ना बाहर छोड़ना। कड़वाहट को पी जाओ लेकिन दिल से मत लगाओ।
भगवान शिव त्रिनेत्रधारी हैं। उनका तीसरा नेत्र तब खुलता है जब कोई चारा शेष नहीं रहता। दुनिया में बुराई भी थोड़ी सी इसलिए पनपती है कि बुराई करने वाले ज्यादा नहीं है, बुराई को बर्दाश्त करने वाले ज्यादा हैं। शिव कहते हैं भोले-भाले रहो। भोला शब्द ही दर्शाता है कि भोलों के लिए भोले रहो और बाकियों के लिए भाला रहो। इसका मतलब यही हुआ कि शिव कहते हैं कि कड़वाहट पी लो, नीचे नहीं जाने दो। लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि भोले रहो और अन्याय को बर्दाश्त मत करो, भ्रष्टाचार, अत्याचार और बुराई को बर्दाश्त मत करो। जब आप बुराई के खिलाफ खड़े होंगे तो बुराई टिक नहीं सकती और बुरे लोगों के हौंसले मजबूत नहीं हो सकते। जिस देश में बुरे लोग मजबूत होकर खड़े हो जाते हैं उस देश में भले लोग रोया करते हैं। जब भले लोग अपनी ताकत इकट्ठी कर लेते हैं तो बुरे लोग हमेशा कांपा करते हैं। इसलिए भले बनो लेकिन बुराई को बर्दाश्त करने वाले मत बनो। इसलिए शिवरुद्र हैं, रुलाते हैं दुष्टों को और हंसाते हैं सज्जनों को। इसलिए सज्जन वही है जिससे मिलने से प्रसन्नता होती है और अगर दुःख होता है तो उससे बिछुड़ने से ही होता है और दुष्ट वह है जिसका बिछुड़ना आपको हंसाता है।
एक स्थिति और होती है आप बैठे हैं ध्यान में, थोड़ी देर बाद ध्यान हट गया, तो फिर उसके बाद में भाव-यात्रा कैसे? मानसिक रूप से। आप भगवान शिव के ज्योति²लग में पहुंच जाओ, सबसे पहले पहुँचों कैलाश मानसरोवर। बिल्कुल ऐसा महसूस करो कि आप वहां पहुंच गए हैं, चारों ओर बर्फ है और सूरज की रोशनी से शिखर ऐसे चमक रहे हैं जैसे सोने के बने हों और कैलाश की, मानसरोवर की झील के आगे आप परिक्रमा कर रहे हैं, बहुत ठण्डा जल है और आपकी कामना होती है थोड़ा स्नान करें, तो वहां हृदय में अपना मन टिका करके देखें कि साक्षात् शिव और पार्वती सर्वत्र हैं। प्रत्येक नर में शिव है और नारी में जगदम्बा माँ हैं और प्रत्येक मनुष्य में गौरी-शंकर अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं।
शिव हैं, ब्रह्मा हैं और सरस्वती हैं, अर्थात् वाणी उमा माँ बनकर बैठी हैं, विष्णु भगवान ही रुद्र हैं और शक्ति माँ लक्ष्मी हैं, जो श्री बाला रूप में वह पार्वती माँ ही हैं और जो पोषण वाला रूप है वह शिव ही हैं।
महाभारत में एक प्रसंग आता है-अर्जुन ने कृष्ण से पूछा जब आप रथ को हांक रहे थे और मैं बाण चला रहा था तो मैं उस समय एक अग्नि-पुरुष को देख रहा था और वह अग्नि-पुरुष स्वयं अपने असंख्य हाथों में त्रिशूल लेकर फेंकता था और फिर दुष्ट शक्तियां नष्ट होकर धरती पर गिर जाती थीं। मैं समझता था कि मैं नष्ट कर रहा हूँ उन्हें। वे भूमि को नहीं छू रहे थे, आसमान से उड़ते हुए चलते दिखते थे और उसके तेज से उसके अंदर से प्रकाश निकल रहा था और उसके बाद बहुत-बहुत त्रिशूल उत्पन्न होते जा रहे थे। कृष्ण, आप ही बतायें वे कौन थे? कृष्ण ने भगवान शिव के बारे में फिर अर्जुन को समझाया। अर्जुन! जिस समय पाप बहुत बढ़ गया था और अधर्म भयानक रूप में सामने आ खड़ा हुआ। तब तुम सेना को सजाकर और जागृत अवस्था में रथ पर सवार होकर बैठ गए और हाथ से धनुष की टंकार बजानी शुरू की, तब मैं तुम्हें दिशा दे रहा था। लेकिन महाकाल बनकर शिव सामने आ गए थे, उन्होंने अपने त्रिशूल से त्रिशूल पैदा करने शुरू किए तुम्हारा बाण काम नहीं कर रहा था, उनका त्रिशूल काम कर रहा था। अर्जुन! जब भी कोई दुष्टता का सामना करने के लिए खड़ा होता है, शिव उसकी सहायता करने के लिए आ जाया करते हैं और अर्जुन! यह भी याद रख कि जिस समय कोई भोला भाव लेकर सहज जीवन जीता है, तब भी भोले भण्डारी उसकी रक्षा करने आया करते हैं।
भगवान शिव महादेव हैं, हृदय उनका विशाल है, बहुत दया करते हैं, बहुत प्रेम करते हैं, प्रेम के सागर हैं, लेकिन जटाधारी हैं, सब पर शासन करते हैं। मृत्यु उनके वश में हैं। कहते हैं दुनिया में जितने भी प्राणी हैं, जो भी प्राणधारी हैं उड़ने वाले, तैरने वाले या चलने वाले, मौत इन सभी पर शासन करती है और मौत को सबका पता मालूम है। आदमी कहीं भी छिपकर बैठ जाए, किसी और को पता हो या न हो लेकिन मौत को पता है कि छिपा हुआ आदमी कहां बैठा है? वह वहीं पहुंच जाती है। मौत को यह सब कैसे पता लगता है? मौत के मालिक (महादेव) हैं शिव, उनकी नजर में हर कोई है, जब वह बुलाता है तो फौज के पहरे में बैठे हुए आदमी को भी वहां से उठा ले जाता है और जब वह जीवन देता है, तो भले ही दुनिया उसे मारने के लिए तैयार खड़ी हो, उसे कोई मार नहीं सकता।