प्रदर्शन से बचें, ओंकार से जुड़ें | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रदर्शन से बचें, ओंकार से जुड़ें | Sudhanshu Ji Maharaj

Say No to Showoff!

प्रदर्शन से बचें, ओंकार से जुड़ें

             आदतों की तरह ही जीवन में दूसरी तरह के नशे हैं, जिनमें आज हमारी युवा पीढ़ी जकड़ती जा रही है। जैसे फैशन के नाम पर बहुत ही खतरनाक पार्टियां शुरू हो गयी हैं। डांस पार्टियां, नशा पार्टी होती है। बच्चे इन पार्टियों में जाते हैं और उनके मां-बाप घुट-घुटकर रोते हैं। वास्तव में बिगाड़ने वाला एक बार मिल जाये तो जिंदगी तबाह कर देता है। ऐसी बेबसी हमारी खुद की बनाई है, इसे हम खुद ठीक कर सकते हें। आइये नये वर्ष के लिये संकल्प कीजिये कि ऐसी आदतें कभी नहीं पालेंगे। जीवन की नवीनता के लिये, नयापन लाने के लिये। अपने आप को नौजवान बनाने के लिए ही नववर्ष है। नव शब्द ही ऐसा है जो नया का नया ही बना रहता है। इसलिए नवीन प्रेरणा भरने वाले तत्वों से जुड़ें। भगवान का नाम ओंकार भी ऐसा ही है। उसे प्रणव (पर नव) कहते हैं, जो हमेशा एक जैसा ही रहता है। परमात्मा का नाम, परमात्मा की शक्ति, किसी भी काल में न घटती है, न बढ़ती है। इसलिये उसे प्रणव (पर नव) कहा जाता है। हम ओंकार को जीवन में धारण करें और जीवन का काया कल्प करें।

             वैसे जीवन में पात्रता बढ़ाने के अनेक प्रयोग हैं उन्हीं में एक है कि अपने साधक मन के साथ शांत होकर बैठें और सोचें कि मेरी प्रगति में बाधक क्या-क्या चीजें हैं? उसे कैसे दूर करना है? और कैसे अपने उत्साह को और बढ़ाना है? कैसे अच्छी योजनायें बनानी हैं? इस चिंतन के साथ जब हम जीवन में सकारात्मक कदम उठायेंगे, तो जीवन भी सुधरेगा और पात्रता भी बढ़ेगी। जीवन में पात्रता विकसित होती है, तो सबसे पहले रोजमर्रा के जीवन में परिवर्तन दिखता है, जैसे घर में प्रेम, आपस में विश्वास, एकता, बड़ों के प्रति मान भाव बढ़ना, कर्म करने की नवीन शक्तियां आदि विकसित होने लगती हैं। इस प्रकार जीवन में गुरु व परमात्मा की कृपा, संतुष्टि और खुशहाली आती है। हर सुबह की शुरुआत मुस्कुराते हुए होती है। शाम गुनगुनाते हुए समाप्त होती है। थोड़ा पाकर भी खुशी आती है। आगे बढ़कर अवसर का लाभ उठाने के भाव उठते हैं, किस्मत का रोना नहीं रोते।

             तब अनुभव होगा कि लोग पात्रता के बिना सन्साधनों की कदर नहीं समझते। इस प्रकार पात्रता बढ़ेगी, तो शांति की लगन लग जायेगी। फिर व्यक्ति कम संसाधनों में रहकर भी भजन करने वाला बन जायेगा। वह रहेगा तो इसी दुनिया में, लेकिन वह परमात्मा का बनकर रहेगा। गुरु का बनकर रहेगा, भगवान का, समाज का, धर्म का, मर्यादा का, अनुशासन का बनकर रहेगा।

             इसलिये आवश्यक है हम सभी अपनी पात्रता बढ़ाने की प्रार्थना करें। क्योंकि जीवन में उत्थान, आत्म निर्माण, समृद्धि, सुख-शांति के पीछे पात्रता का ही सब  खेल है।

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