शिष्य को  पूर्णिमा के चांद की तरह चमकाता है सद्गुरु  (गुरु पूर्णिमा विशेष )

शिष्य को  पूर्णिमा के चांद की तरह चमकाता है सद्गुरु  (गुरु पूर्णिमा विशेष )

गुरुकृपा कब होती है ?

शिष्य को  पूर्णिमा के चांद की तरह चमकाता है सद्गुरु  (गुरु पूर्णिमा विशेष )

संसार सागर में अंधेरे और उजाले दोनों हैं। यह जरूरी नहीं कि जो आप अपने इन बाहर खुले हुए नेत्रों से देख रहे हैं, जो दृश्य साफ-साफ दिखाई दे रहा है वह सत्य का ही उजाला हो।

उस चमकते हुए उजाले की परत के पीछे छिपा हुआ घना अंधकार भी हो सकता है। इस मानव देह में एक तीसरा ज्ञान चक्षु भी होता है, जिसके द्वारा अंधेरों और उजालों का अन्तर समझ आता है।

गुरुकृपा कब होती है ?

जिसके द्वारा संसार नहीं संसार को बनाने वाला, लाखों-करोड़ों प्रकाशित सूर्य भी जिसकी बराबरी नहीं कर सकते, ऐसा जो ज्योति स्वरूप है, जो कण-कण में बसा हुआ है, सर्वव्यापक है, वह महान करतार दिखाई देता है। लेकिन वह अन्तर्चक्षु तभी खुलता है जब गुरुकृपा होती है।

वैसे तो गुरु सबके ऊपर ही अनवरत अपनी कृपा बरसाते हैं, लेकिन जो गुरु कृपा पाने के योग्य होता है, गुरु महिमा के महत्व को भलीभांति समझता है, उसका ही यह दिव्य नेत्र प्रभावी होता है। क्योंकि इस दिव्य चक्षु के खुलने से शिष्य के जीवन में प्रभात का उदय होता है।

सद्गुरु शिष्य को बाहर से नहीं अन्दर से जोड़ते हैं। क्योंकि अन्दर ही वह उजाला मौजूद है, जिसमें जीवन की चमक है, जीवन की गरिमा है, जिसके लिए हमें यह अनमोल चोला प्राप्त हुआ है। अन्दर के प्रकाश से ही बाहर की वास्तविकता समझ आती है।

नीर और क्षीर

जगत के रिश्ते-नातों की सच्चाई का पता तभी चलता है, जब सद्गुरु के ज्ञान का अमृत मिल जाए। नीर और क्षीर का भेद तभी पता चलता है जब गुरुकृपा से अन्तस जाग जाए। गुरुशरण प्राप्त किए बिना इंसान बहुत सारी चोटों का शिकार हो जाता है। जाने-अनजाने में गुनाहगार बन जाता है।

दर-दर की ठोकरें खाता है, वैसे ठोकरें जीवन में सबक सिखाने के लिए लगती हैं, लेकिन गुरु कृपा के बिना इंसान बार-बार ठोकर खाता है, बार-बार गुनाह करता है, बार-बार धोखे का शिकार होता है। पर जब गुरुकृपा से ज्ञान चक्षु खुल जाता है, तब शिष्य राह में ठोकर बनकर पड़े हुए पत्थर को भी अपनी मंजिल की सीढ़ी बना लेता है।

दुःख और मुसीबतों के अंधेरों में सन्मार्ग दिखाता

क्योंकि जो ईश्वरीय ज्ञानामृत कोष से ध्वल प्रकाश की किरणें लेकर अपने शिष्यों के बीच स्नेह पूर्वक बांटता है, वही सद्गुरु होता है। दुःख और मुसीबतों के अंधेरों में जो सन्मार्ग दिखाता है, वही सद्गुरु होता है। जो संतापों से तपते हुए मनों में शान्ति और शीतलता के मेघ बनकर बरसता है, वही सद्गुरु है। जो सुगन्धित बयार बनकर शिष्य समुदाय के मन को महकाता है, हर्षाता है, सरसाता है वही सद्गुरु है।

सद्गुरु शिष्य के अन्दर कलाएं विकसित करता है। उसकी सुप्त शक्तियों को जागृत करता है। गुरु की कोशिश यही रहती है कि शिष्य पूर्णिमा के चांद की तरह चमकता रहे। जैसे-जैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती जाती हैं, वैसे-वैसे शिष्य का भी उत्साह बढ़ता रहे, जोश बढ़ता रहे, उन्नति के शिखर पर वह अनवरत चढ़ता रहे, यह शुभ चिन्तन शिष्य के विषय में एक सद्गुरु का ही होता है।

2 Comments

  1. Alka jaiswal says:

    Gurudev aap mujhe सर्वश्रेष्ठ दिखते है हम क्या कहे आपको छोड़कर किसी की भी बात मेरे समझ में नहीं आती है मैं क्या कहूं मेरे पास आपके लिए कोई शब्द नहीं है सपने में कई बार आपको अपने घर में देखा है आप एक बार मेरे घर भी आए गुरु देव आप को शत-शत नमन

  2. Tarachand Jangid says:

    परम पूज्य पतित पावन परम वंदनिय सदगुरु देव भगवान के श्री चरणों में कौटी कौटी दणडवत प्रणाम नमन भाग्य शाली महशुस कर रहे हैं शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया सदगुरु देव महाराज जी आपका आपके आर्शीवाद से हमारी जिंदगी बदल रही है आभारी रहेंगे बहुत बहुत आभार ऐसी दया करुणा हम सभी भक्तों पर बनाये रखना औम गुरुवै नम औम नमो भगवते वासुदेवाय नम

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