हे परमेश्वर सच्चिदानंद स्वरूप हम सब आपके बालक बालिकाएं श्रद्धाभाव से आपको प्रणाम करते हैं।
हे प्रभु! इस पृथ्वीधाम में हमारे शरीर की यात्र का कार्याकाल कितना है हम नहीं जानते, कितना जीवन लेकर हम आये हैं, कितने प्राण, कितने स्वांस, कब तक इस पृथ्वी ग्रह पर विचरण करेंगे यह सब आप ही जानते हैं। हम सभी अपने-अपने कर्म बंधन से बंधे हुए हैं, इसी कारण इस आवागमन के चक्र में बंधे हुए हैं। हे दयालु प्रभु!
आपसे यह निवेदन करना चाहते हैं कि शरीर का अंत होने से पूर्व हम अपनी आत्मा को शुद्ध पवित्र बना लें, अपनी आत्मा को आपसे जोड़ सकें, अपना उद्धार कर सकें, अपना कल्याण कर सकें, संसार के माया जाल में फंसे न रह जाएं। इस जाल से ऊपर उठ सकें और हमारे लिए जो कर्तव्य कर्म है उसे पूरा कर सकें।
हमारी श्रद्धा हमारा विश्वास गुरु चरणों में सदा बना रहे। हम धर्म वाले हों, धैर्य वाले हों, नियम वाले हों, अनुशासन में जी सकें, हमें आशीर्वाद दीजिये इस गंगा तट पर आकर प्रभु हम आपसे जुड़ सकें, हमारा ध्यान गहरा हो,
नए संकल्पो के साथ नया जीवन जी सकें, नया वर्ष, नए विचार, नया मस्तिष्क हर रूप में हम नए हो जाएं, ताजे हों, शुद्ध हों, पवित्र निर्मल हों, विवेकी बन जाएं, समझदार बन जाएं, ध्यानी बन जाएं, योगी बन जाएं। हमें आशीष दीजिये।