तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को | पूर्णिमा विशेष

तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को | पूर्णिमा विशेष

तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को

गुरुदर्शन से मन को एक चैन सा आ जाता है

सन्त चरणदास, जो हरियाणा के मूल निवासी थे और बाद में दिल्ली के चान्दनी चौक इलाके में आकर यहीं बस गये थे। चरणदास सन्त थे, किन्तु साथ ही बहुत बड़े राष्ट्रभक्त थे। 1839 में उन्होंने अंग्रेजों के आक्रमणें और शासन का विरोध किया था। उनकी दो शिष्याएं सहजोबाई और दयाबाई थीं। दोनों ही परम गुरुभक्त थी। सहजोबाई ने तो गुरु को भगवान से भी बड़ा माना है।

वह राम को छोड़ सकती है, किन्तु गुरु को नहीं। सहजो बाई द्वारा गाया गया

राम तजूँ पर गुरु न बिसारूँ, गुरु के सम हरि को न निहारूँ।

हरि ने जन्म दियो जग माहीं, गुरु ने आवागमन छुटाहीं।

हरि ने पांच चोर दिये साथा, गुरु ने लई छुड़ाय अनाथा।

हरि ने कुटुंब जाल में गेरी, गुरु ने काटी ममता बेरी।

हरि ने रोग भोग उरझायो, गुरु जोगी करि सबै छुटायौ।

हरि ने कर्म मर्म भरमायो, गुरु ने आतम रूप लखायौ।

हरि ने मोसो आप छिपायो, गुरु दीपक दै ताहि दिखायो।

फिर हरि बंध मुक्ति गति लाए, गुरु ने सबही भरम मिटाये।

चरणदास पर तन मन वारूँ, गुरु न तजूं हरि को तजि डारूँ। ~

संत सहजोबाई की  भावना को प्रकट करता है। 

आस्था और विश्वास हो शिष्य को अपने गुरु के प्रति

गुरुदेव बिखेरती स्पन्दनयुक्त गुरुदेव जी के विनम्र आत्मीय भाव में जैसे सहजोबाई के मन के भाव उजागर हो रहे थे और सहजोबाई ने भी तो सार-दर-सार सत्य को प्रकट किया था, सहजो कहती है |  गुरु के सम हरि को न निहाऊं, अर्थात जिस मन से, भाव से, आदर से, समर्पण से, श्रद्धा-आस्था से मैं अपने गुरु को देखती हूं, उससे हरि को न देखूं। गुरु के दर्शन करके शिष्य कितना धन्य होता है, उसका मन कितना प्रफुल्लित होता है, उसे तो वही आन और मान सकता है, जिसके अपने भाव भी वैसे ही हो।

तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को

तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को, तेरे दीदार को, बहुत बड़ी कोशिश है तेरी हस्ती में। गुरुदर्शन से मन को एक चैन सा आ जाता है, जैसे कोई बहुत बड़ा अनमोल खजाना पा लिया, अपने हृदय-रूपी मंदिर में सजा लिया। दूर-दूर से, देश-विदेश से सैंकड़ों हजारों भक्त जो आते हैं गुरुदर्शन के लिए, गुरु-आशिष पाने के लिए, हम यह रोजाना — महसूस करते हैं, तो सहजो ने सच ही कहा हरि ने

जन्म  दिया जग मांहि, गुरु ने आवागमन छुड़ाई चौरासी लाख योनियों के चक्कर काटते रहो । जन्म-मृत्यु-जन्म, यह सिलसिला तो खत्म नहीं होती, पर गुरु ने ऐसी सीख सिखाई, ऐसी तरकीब बताई कि आवागमन की बात ही खत्म कर दी।

जिन्दगी में आनन्द राज़ खुशी का

फिर सहजो बाई कहती है, हरि ने कुटुम्ब जाल में गेरी, गुरु ने काटी ममता मेरी। भगवान ने इन्सान को दुनिया में भेजा और रिश्तेदारी का, मोह का ऐसा जाल तैयार कर दिया कि उसमें से निकलना ही दूभर हो गया। इन्सान की सारी उमर कट जाती है, मोह ममता में घरवालों की सेवा करते-करते, रिश्ते निभाते-निभाते, जिस का आप से स्वार्थ पूरा हो, वह तो खुश और जिस को कुछ कहा, बस नाराज, करतेे रहो सेवा सब की, तो आप अच्छे हो, गुरु ने मोह ममता की डोरी ही काट दी, सारा जंगल ही खत्म कर दिया आसान तो नहीं है यह, पर मन पक्का कर लो, गुरु का आदेश मान लो, सच्चाई को जान लो, गुरु की मान लो, तो कल्याण हो जायेगा। गुरुदेव कहते हैं, परिवार से प्रेम करो, पर मोह में मत फंसों। यही तो राज़ है जिन्दगी में खुशी का आनन्द का।

सहजोबाई आगे सन्देश देती है, हरि ने रोग-भोग उलझायो, गुरु जोगी कर सब छूड़ायो भगवान ने तो शरीर दिया, शरीर तो रोगों का घर है, भोगों में लालायित क्षणिक सुख की अनुभूति में शरीर को रोगी बना लेता है । मनुष्य, काम, क्रोध, मोह, लोभ में कितने गलत काम करता है और सारी मुसीबतें अपने लिये स्वयं खरीदता है आदमी और गुरु शिष्य के इन भोगों के प्रति उदासीन बना कर उसे मुक्त कर देता है। और सबसे बड़ा गिला है सहजोबाई को, भगवान से, ईश्वर सारे काम करता है, सर्वशक्तिमान है, सर्वनियन्ता है।

सब कुछ उसी के बस में हैं, सब कुछ करने वाला वो ही है, किन्तु नज़र नहीं आते, स्वयं को छुपा कर रखा हुआ है और गुरु, जिन्होंने ने इतने उपकार किये, उन के साक्षात दर्शन कर लो, सुरा स्वरूप को देख कर धन्य हो जाओ, बात कर लो आशीष ले लो, गुरु की कृपा पा लो, साक्षात दर्शन करो।

गुरु को इतनी कृपाओं से धन्य सहजोबाई अपने सद्गुरु चरणदास पर तन-मन वार कर कहती है, मैं ने सोच-समझकर ठीक फैसला किया कि गुरु न तजूँ, हीर को जत डारुँ। सहजोबाई की तरह दयाबाई ने भी अपने गुरु की बहुत महिमा गाई है। वह भी सन्त चरणदास की शिष्या थी। वह करती हैं, गुरु बिन ध्यान नहीं होवै, गुरु विन चौरासी मग जोवै। गुरु बिन राम भक्ति नहीं जागो गुरु बिना —

कर्म नहीं त्यागै, गुरु ही दीन दयाल , गुरु सरनै जो कोई जांई,

करै काग नूँ हंसा, मन को मेरत है सब संसा।

दयाबाई की बानी में और भी बहुत विचार हैं, जो गुरु की महिमा का बखान करते हैं, जिनसे उसकी गुरु के प्रति, भक्ति के भाव उजागर होते हैं। आप दिल्ली में चांदनी चौक के अन्तिम छोर पर आज भी जायें, तो वहां चरणदास गली का एक बोर्ड लगा हुआ है। ऐसी ही प्रीति हो अपने सद्गुरु से, ऐसी आस्था और विश्वास हो शिष्य को अपने गुरु के प्रति। सहजोबाई और दयाबाई की अपने गुरु के प्रति भक्तिभाव अनन्य है।

1 Comment

  1. Rashmi Poddar says:

    Thank you

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *