श्रद्धाभाव से दोनों हाथ जोड़िए और प्रेम पूर्वक आंखें बंद करें।
माथा शांत करें, चेहरे पर मुस्कान, आंखों की पुतलियां बंद पलकों में स्थिर कर लीजिए।
शांत! दयालु, दयानिधान, कृपानिधान परमेश्वर अपने बच्चों का प्रणाम स्वीकार करो।
अनंत कृपाओं के प्रति आभारी हैं। जीवन के संघर्षों के बीच सदैव संबल बनकर, सहारा बनकर आपने हाथ बढ़ाया।
आपके हाथ नहीं दिखाई दिए लेकिन आपका सहारा दिखाई दिया है।
हमारा मान भी तू, सम्मान भी तू, हमारी आन बान शान सब तू ही तो है। तुझसे ही सारे नाते तुझसे ही सारे रिश्ते हैं प्रभु।
आपके साथ हम सदैव कनेक्ट रहें, संबंधित रहें, आपके प्रेम का प्रभाव हमारे हृदय में बहता रहे और हम अपनी पहचान खुद भी जान सकें, खुद को पहचान सकें और इस दुनिया में हम अपनी पहचान कायम भी कर सकें।
अपनी पहचान छोड़कर भी जा सकें। हम औरों से भी पहचाने जाएं लेकिन आप भी अपने भक्त को स्वीकारें और दुनिया को भी महसूस हो कि हम आपके हैं वैसा ही हमारा व्यवहार भी हो।
वो बुद्धि देना भगवान जो विवेकनी हो, वो हृदय दीजिए जिसमें प्रेम और उदारता हो, मन वह जो शान्त और संतुलित, वाणी ऐसी मधुर भी हो शान्ति देने वाली भी, रिश्ते जोड़ने वाली भी। इन हाथों के द्वारा वह कर्म हो जिस कर्म के द्वारा हम अपना उद्धार करें और दुनिया का भी भला करें। और इन हाथों के द्वारा हांथ जोड़ते हुए जहां आपको प्रणाम करें अपने कर्मों से भी प्रभु हम आपकी अर्चना कर सकें।
और इस संसार से विदा होने का समय आए तो शान्त, संतुष्ट, तृप्त, आनंदित होकर आपके धाम की ओर बढ़ें।
और जब वहां आएं तो आपकी अनंत कृपाओं को पा सकें, संसार से मुक्त हो सकें।
प्रभु हमारी यह भी प्रार्थना है अनेक अनेक भक्त आपके दर से आस लगाकर बैठे हुए हैं हर किसी की कोई न कोई उलझन है कोई ना कोई समस्या है कोई ना कोई दर्द हर किसी के पास है किसी न किसी तरह का अभाव भी हर किसी के पास है।
प्रभु सबकी कामना पूरी करना सबकी आस पूरी हो।
अपना आशीष देना! अपने भक्तों का कल्याण करना! हमारी विनती को स्वीकार कीजिए प्रभु यही प्रार्थना है।
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति: ॐ