हे दयानिधान, कृपानिधान, सर्वशक्तिमान परमेश्वर! शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव! हे अन्तर्यामी! हे अजर-अमर-अभय! अनेक-अनेक नामों से मनुष्य आपका पुकारता है।
हे सर्वव्यापी सत्ता! सब रूप आपके हैं, सब रिश्ते आपसे हैं, सबके भीतर-बाहर आप ही हो, जड़-चेतन जगत को चलाने वाले आप हो, नियमों में बांधने वाले, प्रबंधन को व्यवस्थित करने वाले आप ही हो।
आप ही की दिव्य योजना से संसार चलता है आपका ये कर्म विधान इस दुनिया में प्रत्येक जीव को बांधे हुए है। आपके लाने से ही ये दुनिया में लोग आते हैं, आपके बसाने से ही लोग बसते हैं और आपके वापिस भेजने से जाना भी पड़ता है, सब-कुछ छोड़कर जाना पड़ता है।
सब रास-रंग त्यागने पड़ते हैं, महलों में सोने वाले को जाकर मरघट में जाकर सोना पड़ता है। परमेश्वर आपकी लीला अद्भुत है। जितने श्वांस लेकर, जीतना जीवन लेकर इस पृथ्वी ग्रह पर हम लोग जीवन जीने के लिये आये हैं और अपनी परीक्षा और अपना कर्मक्षेत्र में कर्म करने के लिये आये हैं।
हमारे अंग-संग रहना और हमारी बुद्धि को शुद्ध रखना और प्रभु हमारे जीवन के रथ को हांकने वाले बन जाना। भटक न जायें और कहीं अटक न जायें, कहीं भीड़ में खो न जायें, अपनी पहचान बना सके और इस धरती के लिये कुछ कर सकें।
अपने लिये कर सकें अपनों के लिये कर सकें और परमात्मा अपनों के भी आप हो। आपसे मिले बिना इस दुनिया से न बिझड़े। हमें आशीष दीजिये हमारा कल्याण हो, एक-एक श्वांस का मूल्य समझकर हम आपका कल्याण करें। यही विनती है प्रभु! स्वीकार करना।
ओम् शान्तिः शान्तिः शान्ति ओम्