परमेश्वर से विनती करें! ये संसार परीक्षा क्षेत्र है प्रभु ! (सद्गुरु) हर मनुष्य इस संसार में अपनी परीक्षा देने के लिए आता है! परीक्षा होती है क्षमता की योग्यता की, परीक्षा होती है हमारे सामर्थ्य की, हमारी शांति की परीक्षा होती है! हमारे प्रेम की परीक्षा होती है! हमारा धीरज कितना है इसकी परीक्षा होती है।
और यही शाश्वत संपदा जितनी जितनी जीवन में जुड़ती जाती है हम अपने भीतर से समृद्ध होते हैं। और जब हम अपने अंदर की इन शक्तियों को खो बैठते हैं तो भीतर से दरिद्रता आने लगती है! और इस समृद्धि को देने में समर्थ होता है सद्गुरु, और सद्गुरु का हृदय जुड़ा होता है देव शक्तियों से और परमात्मा से। परमात्मा से आता हुआ प्रकाश, देव शक्तियों से आता हुआ प्रकाश, ऋषियों-मुनियों पितरों से जो उनके अनुभव हैं ! उनका भी ज्ञान का प्रकाश गुरु के माध्यम से शिष्य तक उतरता है।
श्रद्धालु शिष्य गुरु के साथ एकनिष्ठ होकर पूर्ण वफादारी एक तरफ करके समस्त कृपाओं को प्राप्त करता है! प्रभु हमें वह योग्यता दो कि सद्गुरु के प्रति हम श्रद्धालु बनें! उनका सांसारिक रूप न देखें क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति संसार में अलग-अलग लोगों के साथ अलग अलग तरह की लीला और व्यवहार करता है।
आंतरिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति अलग है और गुरु तो नर और नारायण का संगम हैं! हम अपनी श्रद्धा के द्वारा गुरु के माध्यम से उनके अंदर से उतरती हुई ज्ञान धारा, भक्ति की धारा, प्रेम की धारा, कर्म की कर्तव्य की धारा उसे अपने जीवन में उतारकर इस जीवन को धन्य करें!
मनुष्य का चोला सबके पास है, कुछ लोग महान आत्मा हो गए उत्कृष्ट आत्मा हो गए! और कुछ दुर्बल आत्मा होकर दुरात्मा तक चले गए।
हम अपना उत्थान कर सकें हमें आशीष दीजिए हमारा कल्याण हो।