बहुत प्रेम से दोनों हाथ जोड़िए! और आंखें बंद कीजिए। शान्त मन, शान्त मस्तिष्क और प्रभु की कृपा और अनुग्रह को अनुभव करते हुए चेहरे पर आनन्द का भाव पूर्ण रूप से सहज हों, जड़ चेतन में सर्वत्र अपनी कृपा, आशीर्वाद बिखरते हुए सभी ओर शान्ति, प्रेम और आकर्षण को उत्पन्न करने वाले प्यारे प्रभु ! हमारी ओर आपकी कृपाएं प्रवाहित होती हैं, पर हम उन्हें ग्रहणशील बनकर ग्रहण नहीं कर पाते।
आपके ओर मुख न करके आपकी ओर हम पीठ किए रहते हैं। संसार में सुख, शान्ति, आनन्द ढूंढ रहे हैं! जो हमारे भीतर खोई हुई चीज है, हम उसे बाहर ढूंढ रहे हैं। हमें अंतर्मुखी, अंतर्मुख हम हो सकें और वृत्तियां अंतर्मुखी हो सकें।
आपका नाम जिह्वा पर बसे! आपके प्रति हमारा ध्यान लगे, प्रत्येक कार्य को करते हुए हम आपका स्मरण करें! और भोजन ग्रहण करते हुए आपका आशीष लें और अपने भोजन को अमृत प्रसाद बनाएं। अपने चलने-फिरने को एक आपकी ओर चलने वाली परिक्रमा और यात्रा बनाएं।
हमारी नींद भी हमारी समाधि बने! कि नींद नहीं यह आपके चरणों का वंदन है, हमारा बैठना वह भी आपकी गोद में बैठना महसूस हो, कर्म करना भी हमारी पूजा बने और हमारा व्यवहार आपको साक्षी मानकर हो, हम अपनी इच्छाएं नहीं प्रभु आपकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले बनें। स्वयंसेवक बनें, कर्मयोगी बनें, हमें आपका आशीष की आवश्यकता है।
अपना आशीर्वाद प्रदान कीजिए, हम सबका कल्याण हो।