कर्म सिद्धांत इसी पर आधारित है कि जो कर्म हम करते हैं, वह हमारे खाते में जमा अवश्य होते हैं।
जो कर्म पक जाते हैं वह फल बनकर भाग्य बन जाते हैं , पर जो अभी पके नहीं उन्हें संचित कर्म कहा जाता है , उन्हें जलाया जा सकता है।
इसलिए प्रथम आवश्यक कार्य है ” सदगुरु की शरण”- बिना गुरु की शरण ग्रहण किये हम सफल नही हो पाएंगे।
गुरु के सानिध्य में रहकर जब शिष्य साधना, तपस्या करता है, गुरूकृपा साथ जुड़ जाए तो कर्मबन्धन से छुटकारा मिल सकता है ।
गुरु ही वह गूढ़ विद्या देते है कि जीवन का प्रत्येक कर्म निष्काम भावना और सेवा की दृष्टि से किया जाए तो वह फलित जरूर होता है।
अच्छा कर्म किसी भी तरह करे वह कभी न कभी अपना फल जरूर देगा और न जाने कितने पाप तापों को जलाकर नष्ट कर देगा ।
इसलिए पुण्यों की खेती करो, जन्म जन्मान्तरों को सुधारने का यही उपाय है.
सेवा, साधना, सिमरन करते हुए ,अपने गुरु के निर्देशों का पालन करके अपना कल्याण कर लो।
! हरि ॐ !
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Shri Guru charno mein humara koti koti pranam. Humare Jaise dishaheen bhatak ne wale ko apka Ashirwad mil gaya,is sey humare man se dar nikal gaya,aur bahut Shanti ka anubhav prapt ho raha hai
Bus kawal ek hi ishha hai,aap ka ashirwad sada yun hi milta rahe,aur hum aapke ke bataye hue marg par chalte rahe,man kabhi vichlit na ho.
Phir ek baar apne Guru Charno mein shastang Pranam