रूप अनेक, शक्ति एक | आत्मचिंतन के सूत्र 6 | Sudhanshu ji Maharaj

रूप अनेक, शक्ति एक | आत्मचिंतन के सूत्र 6 | Sudhanshu ji Maharaj

Many forms, power one

रूप अनेक, शक्ति एक



सती जो सत्य द्वारा पाई जाती है। जो शाश्वत शक्ति है।
साध्वी जिसके अंदर सज्जनता है, जो प्रशंसनीय है।
भवप्रिया जो शिवजी की प्रिया है।
भवमोचनी जो संसार दु:खो से छुडाती है।
आर्या जो श्रेष्ठ है ,महान से महान है।
दुर्गा जो दुर्गति से बचाती है। दुर्गा कष्टों से बचाती है।
जया जो जीत है।
आद्या जो शुभप्रारंभ है। जो आदी है।
त्रिनेत्रा – जो तीन नेत्रों वाली है।
शूल धारिणी– जो दुख हरने वाली है- तृष्णा, वासना और अहंता से आने वाले दुख हरती है।
पिनाक धारिणी– जो पिनाक अस्त्र लेकर है।
चित्रा जो अलग-अलग चित्र बनाती है।
चंद्रघंटा जो प्रचंड स्वर से घंटानाद करती है। सर्वत्र इसका घंटानाद फैला है।
महातपा-जो महान- घोर तप करने वाली है।
मन: जो मनन शक्ति है।
बुद्धि – बोध -ज्ञान की अनुभूति जिसके कृपा से प्राप्त होती है।

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