प्रेम पूर्वक अपनी आंखें बंद कर लें! माथे को ढीला छोड़िए परमात्मा “प्रभु” की करुणा को अनुभव कीजिए! भगवान के संकटमोचक रुप को याद कीजिए!
कब-कब कहां-कहां कैसे सहारा देकर आपको सुरक्षित किया और आप पर अपनी करुणा बरसाई उस रुप को ध्यान में ले आइए! ध्यान में लाइए परमात्मा के पतित पावन रुप को जिस रुप में वो हमारी सारी गलतियों को जानने के बाद भी हमें क्षमा करके गले लगाते हैं! और अपना प्रेम हमारे ऊपर बरसाते हैं!
भगवान के दाता दीन दयाल रुप को याद कीजिए! हम भले ही पात्र न हो तब भी वो हमें देता है! इस रुप में देता है कि हमें देते हुए के हाथ नहीं दिखाई देते पर झोली भरी हुई दिखाई देती है!
उस सब रुप को ध्यान में लाकर मन-मन में भगवान को प्रणाम कीजिए! और उसके प्रति अपने धन्यवाद के भाव में अहो भाव से उसका शुक्राना कीजिए, धन्यवाद कीजिए मैं आभारी हूं भगवान, कृतज्ञ हूं आपकी अनंत-अनंत दयाओं के लिए आपको दंडवत प्रणाम करता हूं!
प्यारे ईश्वर! माता-पिता, बंधु-सखा तू ही है! अपनी कृपा हमेशा अपने बच्चे पर बनाए रखना आपका हाथ मेरे सिर पर हमेशा बना रहे यही विनती है प्रभु