जीवन मे नियमबद्ध होना परम आवश्यक है : यदि आपके जीवन मे सिद्धांत ही नहीं, कोई नियम नहीं ,कोई अनुशासन नहीं, तो उस जीवन का कोई महत्व नहीं है !
प्रकृति भी हमे नियम सिखाती है -भगवान ने पूरी प्रकृति को नियमो में बांधा हुआ है: सूर्य का समय से उगना और समय से अस्त होना: सभी नक्षत्र अपनी निश्चित धुरी पर घूम रहे हैं: फूल भी कली से बनेगा , फिर उसमें फल आएगा और समय से वह झड़ भी जाएगा ! पूरा का पूरा संतुलन दिखाई देता है प्रकृति में, हमे भी उसी प्रकार अनुशासित होना है!
बिना नियम के जीवन ऐसा बेपेंदी के बर्तन के समान होता है जिसकी कोई अहमियत नहीं, अपने को नियमित कीजिये अपने शरीर के लिए – उचित भोजन, व्यायाम, प्राणायाम, अच्छी नींद : यह सोपान है अच्छे स्वास्थ्य के! शरीर भगवान का दिया रथ है जिस पर बैठकर हमें सौ वर्षों की यात्रा करनी है : इसको स्वस्थ, सक्षम बनाये रखना हमारा कर्तव्य है ! स्वस्थ शरीर से ही सब कुछ पाना सम्भव है, रोगी, कमजोर, अस्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन मे कुछ नही पा सकता!
इसी प्रकार भक्ति का भी अपना नियम बनाओ : निश्चित समय, निश्चित अवधि ओर लगातार का अभ्यास आपको बहुत ऊंचाई पर पहुंचा देगा !
पर हम लोग नियमित हो ही नहीं पाते : लगातार यदि पत्थर पर भी पानी गिराया जाए तो उसमें गड्ढा बन जाता है: इसी प्रकार नियम पूर्वक की गई भक्ति प्रभु के दर्शन अवश्य करा देगी!
मगर यह भी सत्य है कि बिना मार्गर्दशक के हम अनुशासित हो ही नहीं पाते- जीवन मे सदगुरु का आना सबसे आवश्यक है और महत्वपूर्ण भी : क्योकि गुरु ही हमें नियमो से बांधते हैं- खाने का, पीने का, सोना, उठना, बैठना, बोलना – हर चीज में अनुशासन देते हैं यही दीक्षित होने की पहली शर्त है!
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