जीवन यात्रा है और सब से सुन्दर मांगलिक यात्रा है। जिन्दगी भर व्यक्ति भीड़ के पीछे भागता रहता है और एक दिन जीवन यात्रा समाप्त हो जाती है। जरा सोचिए इस जीवन यात्रा में,
भेड़-बकरियों की तरह जीवन न जीएं, जीवन जीने की कला भी सीखें। व्यक्ति का स्वभाव बदला जा सकता है, क्षमताएं विकसित की जा सकती हैं। आयु आपके लिए, आपके कार्य के लिए बाधक नहीं है। जैसे यात्री अपना रास्ता खोजता चला जाता है, आप भी आगे बढ़ते जाओ तो रास्ता दिखाई देता जाएगा। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाएंगे, सीखते जाएंगे आपकी क्षमता बढ़ती जाएगी। व्यक्ति में समस्या से पार जाने की कला स्वतः आती है। सीखने से आप बड़े होते हैं, जीवन में संतुलन आता है।
जिस व्यक्ति का मस्तिष्क सन्तुलित हो वह स्वयं पर नियंत्रण लगा लेता है, ऐसा व्यक्ति दुःख की घडि़यों में भी घबराता नहीं। विपरीत समय में भी दिल पर पत्थर रखकर आगे बढ़ने के बारे में विचार कर सकता है, विचार ही ज्ञान है। ज्ञान जब होश बनता है, उस स्थिति में विचार ही काम करते हैं। विचार आपको करना है कि जीवन क्या है, मैं कौन हूं, मेरी शक्ति क्या है?
स्वयं से बार-बार प्रश्न करो मैं कौन हूं? मेरी शक्ति क्या है? क्या शक्ति लेकर दुनिया में आया हूं? बन्द मुठ्ठी में हमारा भाग्य है, शक्ति है, हौसला है, हिम्मत है। जिन्दगी की यात्रा में विवेक का सहारा ही काम करेगा। यह यात्रा पंछी की उड़ान की तरह है, आसमान में कोई पगडंडी नहीं होती, हर पंछी अपने विवेक से उड़ता है।
अपनी महिमा को जानो, अपनी कद्र करना सीखो। अपनी तस्वीर खुद ही सजाओ, कोई दूसरा आपको संवारेगा ऐसा नहीं। स्वयं को स्वयं प्रशिक्षित करो, अपने व्यक्तित्व का निर्माण करो। तुम परमात्मा के हस्ताक्षर हो, तुम्हारे जैसा परमात्मा ने किसी अन्य को नहीं बनाया। अपने पर मान करो, अपने होने का आनन्द लो।