ईश्वर कण-कण में समाया हुआ है। जो भी गतिशीलता है इस जगत में ईश्वर के कारण है। संसार को त्याग से भोगो, लालच मत करो। संसार का धन न किसी का है, ना किसी का रहेगा। उपयोग के लिए भगवान हमें कुछ देता है तो हम समझते हैं हम उसके मालिक बन गए, जबकि मालिक संसार में एक है उसी की मलकियत संसार में है। बच्चे कागज के टुकड़ों को हाथ में लेकर बैठते हैं और सोचते हैं उनके पास कोई मूल्यवान पदार्थ है और जब कोई छीन लेता है तो रोते हैं, हठ करते हैं और खेलने के बाद उठाकर रख देते है। बड़े होकर कागज के टुकड़े (नोट) भाई-भाई, रिश्ते-नाते अलग करते हैं। क्योंकि वस्तुओं में मालिकपन का अहं अकड़ पैदा करता है।
सब चीजें-स्वाद सुगंध संगीत मोह स्पर्श सब सुख भोगने के लिए मिले हैं लेकिन इनके लिए बेचैन होना पागल होना ठीक नहीं मनुष्य यह बातें समझ जाए तो उन्नति कर सकता है। इन्सान जहां-जहां बेबस है वहां-वहां वो दुःखी है। दुनिया में जितना उलझते जाओगे दुःखी होते जाओगे।
नौका सागर में रहनी चाहिए क्योंकि उसे पानी में ही चलना है। लेकिन पानी को नौका में नहीं रहना चाहिए। ठीक इसी प्रकार जीवन की नौका संसार के पानी में रहनी चाहिए-संसार के पानी को नौका में नहीं रहना चाहिए।
मन अगर रूप की तरह है तो उसी को देखता है, मन अगर गीत की तरह है तो उसी को सुनना पसन्द करता है, मन ही हमारे मोक्ष का कारण है। मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन को कब्जे में रखना हैµअभ्यास और वैराग्य से। संसार के सागर से तरने के लिए सधा हुआ मन पतवार की भांति महत्वपूर्ण है, इसे सम्भालिए।
एक कहानी के माध्यम से इसे समझाया जा सकता है। एक दिन बादशाह के पास एक व्यक्ति खूब सारी बकरियां लेकर आया। बोला महाराज मैं बहुत दुःखी हूं। सारा दिन ये बकरियां घास चरती हैं पर शाम को जब घर लौटता हूं तो इनको जहां-जहां हरियाली दिखती है वहां-वहां ये रूक जाती हैं। इनको भूख लगती है और फिर खाना शुरू कर देती है। मैं इनका ये पेट भर खाने के बाद भी हरियाली देखकर भूख लगने वाली बात से बहुत परेशान हूं। कोई उपाय बताओ। बादशाह ने कहा कि उनको यहीं रहने दो।
बादशाह ने कई नौकर रखे और कहा कि बकरियों को खिलाओ, इतना खिलाओ कि शाम को जब मेरे पास आएं तो इन्हें भूख न लगे। नौकर उन्हें खूब खिलाते। परीक्षा ली जाती-घास की हरी पत्तियां रखीं जाती, बकरियां शाम को फिर खातीं वैसे ही मन इन बकरियों की तरह है-इन्द्रियों का स्वरूप भर सकता है, मन का पेट नहीं भर सकता। बादशाह का वजीर होशियार था। बकरियों को ले गया और साथ में ले गया एक डंडा। बकरियों को खूंटे से बांधा, हरी घास आगे रखी। जैसे ही बकरियां खाने के लिए मुंह आगे करती, दे डंडा मारता। सारा दिन यही होता रहा। शाम को जब परीक्षा लेने के लिए हरी पत्तियां आगे रखी गई तो बकरियां डंडे की मार को सोचकर हरी पत्तियों से मुंह मोड़ने लगीं। बादशाह बहुत खुश हुआ, वजीर से कारण पूछा तो वजीर बोला, ‘महाराज, डंडे का चमत्कार।’ इंसान का मन बकरी जैसा है।
संसार के भोग विलास दिखाते रहोगे, कहेगा कम है, कम है मन को थोड़ा सा त्याग, तपस्या, साधना का डंडा लगाइए, सम्भल जायेगा। मन को संसार की हरियाली दिखाओ और डंडा लगाओ। महान पुरुषों का मन ही तो ऊंचा उठ गया था। हमें अपने आपको बहुत नियंत्रित करना है। सम्पत्ति इकट्ठा कर लेना बहुत बड़ी बात नहीं। धन कमाओ, चिंता नहीं कमाओ। मिला है तो उपयोग करना है और जब छोड़ना है तो उसके लिए भी तैयार रहना है। संसार में कमल की भांति जीओ, कीचड़ से ऊपर उठकर। व्यवहार भी निभाओं और परमार्थ भी।
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अति सुंदर सदगुरु देव महाराज जी के शब्द रस शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया जय हो सदगुरु देव महाराज भाग्य शाली महशुश कर रहे हैं औम गुरुवै नम