ज्ञान क्या है ?
सत्संग में रुचि होना, ज्ञान में, कर्मशीलता में रुचि होना, कर्मयोगी होना, ज्ञान योगी होना ये धन हैं जीवन के। धर्मवीर-ज्ञानवीर शूरवीर- दानवीर होना, यह सब धन हैं। इन धनों को उत्पन्न करने वाली शक्ति का नाम ज्ञान है।
भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं, संसार में यद्यपि सभी उत्तम हैं, परन्तु मेरे लिए सबसे उत्तम मेरा ही रूप है, मेरे स्वरूप के अनुसार जो ज्ञान से युक्त है, उसके अन्तर में मैं ही उतरा हूँ । जो भी श्रद्घा युक्त होकर नाम जपने के लिए समय निकालता है वह उत्तम है परन्तु ज्ञानी मेरा ही स्वरूप है। कृष्ण जगद्गुरु हैं, परमात्मा के लिए समय निकालने वाला, श्रद्घा से भजन करने वाला उत्तम है, लेकिन ज्ञानी तो साक्षात् ब्रह्म का स्वरूप है।
भगवान को पसंद हैं ज्ञानी लोग
भगवान कहते हैं, ज्ञानी मेरे ही स्वरूप वाला हो जाता है। भगवान को ज्ञान वाला व्यक्ति प्रिय है। ज्ञानी व्यक्तियों का जीवन खुशबु की तरह आज भी महक रहा है, यद्यपि उनका शरीर नहीं है दुनिया में, अद्भुत लोग थे वह।
शिक्षक किसी एक देश, जाति, वर्ग के नही हैं, उनको सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। कैद किया तो उनकी सुगन्ध, सुगन्ध नहीं। वह सारी दुनिया की सम्पति हैं, दायरे में बांधने के लिए नहीं है।
दूसरों के दरवाजे को ठकठकाने की आदत मत डालो, खुद परिश्रम करना सीखो। तुम्हारा खजाना तुम्हारे भीतर है। कन्फयूशियस ने कहा, सागर तट पर बिखरी अनेक शिलाओं में एक तुम हो, अपने अन्दर वह चमक पैदा करो। जो हीरे में हुआ करती है। शिक्षकों ने महानपुरूषों के ज्ञान-धन को सुरक्षित रखा और आज वह ज्ञान मानव-मात्र की सम्पत्ति बन गया।
शिक्षक कोई भी हो सकता है
मीरा गाती रही, पुरन्दरदास गाते रहे। पुरन्दरदास ने कहा मिट्टी का घड़ा, मिट्टी का तन, मगर पकने पर वह घड़ा मिट्टी नहीं रह जाता, मिट्टी से बने इन्सान तू भी परमात्मा के प्यार में अपने को पका, फिर तू मिट्टी का नहीं रह जाएगा। उन्होंने परमात्मा की सम्पदा बार-बार लुटाई जो मनुष्य-मात्रा की सम्पत्ति बन गई।
शिक्षक – गुरु ज्ञानी-परमात्मा की बगिया के खिले हुए सुन्दर फूल हैं। दुनिया में ठीकरे इक्ट्ठे करने वाले लोग बहुत हैं परन्तु ज्ञान को संचित एवं प्रसार करने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं। ऐसे संचय एवं प्रसार करने वाले लोग दुनिया में बहुत कम होते हैं, कोई-कोई ही ऐसा साज बनता है। जिसके अन्दर यह संगीत पफटता है, वह कोई विरला ही होता है। इसलिए निवेदन करना चाहता हूँ – चेहरा मत लटकाओ, उत्साह को मार मत दो, कर्मठता को छोड़ मत देना।
शिक्षकों का कर्तव्य है कि खुद भी उठो और दूसरों को भी आगे बढ़ाओ
दूसरों को गिरा कर कोई आगे नहीं बढ़ता, खुद उठो दूसरों को उठाओ। धन-बल से इतने समर्थ बन जाओ कि खुद भी उठो और दूसरों को भी आगे बढ़ाओ। ऐसे लोगों के साथ प्रकृति की शक्तियां भी जुट जाती हैं। लाचार होकर दूसरे की मदद की उम्मीद न करें। कुछ लोग ऐसे हैं जो यहां भी बैठे आनन्द लेते हैं परमात्मा का।
ज्ञानी परमात्मा को पसन्द है और ज्ञानियों के कारण यह धरती शोभायमान है। शिलाओं पर बैठकर मन्त्र लिखे, शिक्षाएं लिखीं। आने वाले समय में कोई भी पढ़ेगा, उसका कल्याण होगा। सम्राट अशोक के समय पत्थर पर कीमती शिक्षाएं लिखी गईं। उनका प्रयास रहा कि ज्ञान के पुष्प अपनी खुशबु के साथ मानव जाति के लिए महकते रहें।
मगर ध्यान रखें समाचार पत्र पढ़ते ही बासी हो जाता है, हम कहते हैं कि यह हम पढ़ चुके हैं। व्यक्ति के हृदय में अपना नाम लिखने की कोशिश कर दीजिए, वह नाम सदा के लिए अमर हो जाएगा। हृदय में लिखने के लिए यह साधरण कलम काम नहीं आती। भगवान कृष्ण ने कहा, जिन्होंने अपने जीवन को ज्ञान की दिशा में लगा दिया वह मेरे बहुत प्यारे हैं। ज्ञानियों को उन्होंने बहुत प्रिय माना। ज्ञानी किसी न किसी ढंग से समाज का कल्याण कर जाते हैं।
शिक्षक की हमेशा रहे ये चाहत
संसार ऐसा विचित्र है कि आंख बन्द होते ही सब पराया हो जाता है। शिक्षक के सामने अपने आपको मिटाकर आओ तो समझ जाओगे कि तुम कौन हो? केंचुल उतारने के बाद सर्प एकदम नया हो जाता है, ऐसे ही जब तक आप अपनी केंचुल उतार कर नहीं फेंकेंगे, जैसी दुनिया दिखाई देनी चाहिए वैसी नहीं दिखाई देगी, धुंधलापन रहेगा। इसलिए गुरु अपने नजदीक रहने वाले शिष्य का नाम बदल देते हैं। एक शिक्षक चाहता है अन्दर से निखार आए और ज्ञान की धरा अन्दर से प्रकट हो और शिष्य में विशेषता आनी शुरू हो जाए।
दुनिया में सबसे बड़ा दान ज्ञान का दान है
दुनिया में सबसे बड़ा दान ज्ञान का दान है लेकिन ज्ञान सही होना चाहिए, रटा हुआ नहीं। करना है तो समाज का कल्याण करो, परमात्मा का नाम याद करो। सुधारक बन कर खड़े हो गए तो समाज के लांछन का जहर पीना पड़ेगा। मूल्यवान चीज को लोग समझ नहीं पाते, उसके लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं।
जीसस को सूली पर चढ़ाया गया। परमात्मा को ज्ञानी पसन्द हैं, ज्ञानी मानवता की शोभा हैं। बच्चों को ज्ञान की दिशा में लेकर जाओ। जो इस दिशा में आएं उनका सम्मान करो। जो मनुष्य को प्रेम में, एकता में बांधे, नफफरत न करे, सबके हित की कामना करना ही ज्ञान है। भगवान कहते हैं, ज्ञानी को मैं अपना ही स्वरूप मानता हूँ ।