कार्तिक माह की शुक्लपक्ष अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण जी ने गाय चराने की शुरुआत की थी! तब से यह तिथि पवित्रतम गोपाष्टमी नाम से प्रसिद्ध हो गयी! संतान प्राप्ति, घर-परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के निमित्त यह पर्व पूजन का विधान है! गौ एवं गौवंश के विशेष पूजन के साथ यह गोपाष्टमी मनाई जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने ‘गौ’ संस्कृति आधारित जीवन शैली को भी आगे बढ़ाया व भारतवर्ष में गौ पालन सनातन धर्म का आधार माना गया। वर्णन आता है कि श्रीकृष्णजी संदीपन ऋषि के यहां पढ़ने के लिए गये, तो वहां भी उन्हें सर्वप्रथम गौ सेवा व गौशाला का कार्य दिया गया। गौ सेवा श्रीकृष्ण ने बखूबी निभाया, गायों को समय पर चारा, पानी देने, गाय के गोबर को उठाने, गो सेवा करने में इस स्तर तक लीन हो गये, जिससे श्रीकृष्ण को सूक्ष्म अनुभूतियां हुई। उनके अंतःकरण में जन जन की पीड़ा निवारण की प्रेरणा भरने लगी और वे संतों, सज्जन व्यक्तियों के जीवन को सुखी करने और दुष्टों का संहार करके समाज में करुणा-संवेदना स्थापित करने का संकल्प लिया! इस प्रकार वे संसार के लिए भगवान हो गये।
वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण के प्रयास से गौ आधारित भारतीय कृषि संस्कृति के नये अध्याय की शुरूआत हुई होगी। आज जिसे हम ‘प्राकृतिक कृषि संस्कृति’ कहते हैं, सम्भवतः भगवान श्रीकृष्ण द्वारा छेड़ा गया गौ संवर्धन से उपजा ‘कृषि आंदोलन’ ही पूरे आर्यावर्त में फैला हो और इसकी मूलाधार देशी गाय बनी। आज गौ सेवा एवं गौ संस्कृति के बलपर भारत कृषि प्रधान देश होते हुए भी दुनियां को सुखी-समृद्ध, संवेदनशील बनाने में सहायक बना है। भारत कृषि प्रधान देश होने के कारण सम्पूर्ण भारत भर में गौमाता के सहारे देवत्व आराधना, गाय की सेवा से जीवन के दुख-दारिद्रता दूर होने की परम्परा स्थापित हुई। अंततः गाय इस धरती की माँ कहलाने लगी।
वेदों में गौमाता को विश्व माता की उपमा प्राप्त है! ‘गावो विश्वस्य मातरः’ ऋग्वेद ही नहीं स्मृतियां, श्रुतियां, पुराण आदि गाय की प्रतिष्ठा करते नहीं थकते! गौ दुग्ध, गोबर, गौमूत्र से लेकर गौ माता की निकटता से सफल साधना एवं सिद्धियां पाने तक का वर्णन जगह-जगह भरा पड़ा है। हर गौतत्व महान है, श्रुति कहती है ‘आयुर्वेघृतम्’ अर्थात् गाय का घी आयु व बुद्धिवर्धक है। वहीं अग्निपुराण गाय को जनमानस की लोक प्रतिष्ठा, मंगलकारक एवं पवित्रता का आधार बताता है। आज वैज्ञानिक भी गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर आदि पदार्थों एवं गौ उत्पादों में दिव्य पोषकीय, लोकप्रिय व समृद्धि शक्ति को लेकर उत्साहित हैं। विश्व भर में व्याप्त पर्यावरणीय व आहार में पोषक तत्व से जुडे़ संकट का समाधान वैज्ञानिक भी भारतीय गौ आधारित कृषि और गौ आधारित जीवन शैली में खोज रहे हैं।
मानव मन-मस्तिष्क की सात्विकता व संवेदनशीलता जगाकर आध्यात्मिक प्रगति दिलाने में गाय सहायक है। गाय की निकटता शरीर से रोगों को दूर रखने, इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में सहायक है। एक तरफ कृषि प्रक्रिया से गाय व गौवंश के बाहर होने पर धरती बंजर होने लगी, वहीं जीवन शैली में लगातार बढ़ता असंतोष, अस्थिरता के पीछे गौ माता से दूर होना बड़ा कारण माना जा रहा है।
पूज्य सद्गुरु श्रीसुधांशु जी महाराज ने गाय की सामर्थ्य को समझकर ही गौसेवा-गौसाधना का अभियान प्रारम्भ किया। महाराजश्री अपने मिशन द्वारा गाय की उपासना, सेवा, संरक्षण का बीड़ा उठाते हुए गौशालाओं की स्थापनायें की और जन जन को गौसेवा, गौशाला सेवा, गौदान, गौ संस्कृति से जोड़ने में अहर्निश संलग्न हुए हैं। प्रतिवर्ष आनन्दधाम की गौशाला में गौपूजन, गौदान, सत्संग के साथ गोपाष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है। हम सब गाय की महत्ता को समझें! और अपने जीवन में सुख-शांति-समृद्धि को जगाने के लिए गौ माता को स्थान दें! श्रद्धा जगायें और विश्व जागृति मिशन के गौ सेवा अभियान में अपना हाथ बटायें!
गुरु के गौसेवा अभियान में जुड़ने से हमारी गौमाता सम्मान पायेगी! साथ-साथ जीवन शैली में उतरने लगेगी। आनन्दधाम की कामधेनु गौशाला की यह पुकार सुने और जीवन को सुख-समृद्धि से भर लें, ताकि कृष्ण कृपा भी बरस पड़े।
1 Comment
Hi