शास्त्र कहता है कि भाग्य बड़ा प्रबल है, मगर पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को को बदला जा सकता है। यानी जरुरत है दवा और दुआ के बीच तालमेल बैठाने की। अन्दर की ज्योति और बाहर की ज्योति दोनों काम करें तो बात बनती है। आँखों में ज्योति हो और बाहर प्रकाश हो तो आंखें काम करती हैं। बाहर सूर्य निकला हो, मगर आंखों में ज्योति न हो तो अन्धेरा रहता है। फिर भी कहा गया अपनी तरफ से कोई कसर बाकी न रखें।
पुरुषार्थ छोड़ें नहीं पूर्ण पुरुषार्थी होकर कार्य में लगें और साथ में प्रभु से आशीर्वाद भी मांगें। मेहनत करें, उसकी रहमत जरूर होगी। व्यक्ति सोचता है कोई अवतार आएगा कल्याण करने के लिए हर समय भाग्य के भरोसे बैठकर जिंदगी की समस्याओं से मुंह मोड़कर बैठ जाता है, परिश्रम करना नहीं चाहता।
किसी के बल पर आप सुखी नहीं रहेंगे अपनी समस्याओं से स्वयं जूझना होगा। अपने भाग्य के निर्माता आप हैं अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करें। जगत् में कोई ऐसा नहीं जो आपका भाग्य बदल पाएगा। आप ही अपने भाग्य विधाता हैं अपने अन्दर के उस दीए को जलाइए जिसकी रोशनी में सारा संसार देवत्व की ओर जाता दिखाई दे।
जो व्यक्ति सदा सीखने को तैयार रहता है, उसके अन्दर सब कुछ हो सकने की संभावना रहती है। इसलिए कुछ न कुछ ऐसा करते रहिए जिससे आपके मन का बगीचा खुशियों से भर जाए और आप भाग्यशाली बनें।
भागवत महापुराण में कहा गया है कि, आप चाहते हैं आपका भाग्य फले, भाग्य सौभाग्य बन जाए तो ये चीजें अपनाएं। इस पवित्र ग्रंथ का यह सन्देश बड़ा ही अद्भुत है इसे अपने जीवन में अपनाएं।
सबसे पहली चीज है, पुरुषार्थ। पुरुषार्थ लगातार कीजिए काम से जी चुराकर मत बैठें। केवल हाथ जोड़ने से ही बात नहीं बनती पुरुषार्थ भी जरूरी है। हाथ जोड़े रहें, सिर झुका रहे, लेकिन हाथ पुरुषार्थ की ओर बढते रहें।
दूसरी चीज है हिम्मत। हिम्मत कभी नहीं छोड़ना, साहस बनाए रखना।
जीवन में समस्याएं तो पग-पग पर हैं, निराश होकर न बैठें, साहस के साथ समस्या का सामना करें। समस्या से जो पार जाएगा वही आगे बढ़कर हर चुनौतियों का सामना कर पाएगा। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा जीवन में जागना है, भागना नहीं। दुःख को प्रसन्नता में, कायरता को वीरता में बदलो। वीर तो एक बार मरकर वीरागति को प्राप्त करता है, कायर तो दिन में हजार बार मरता है।
अन्दर साहस हो तो कोई भी चीज कितनी भी शक्तिशाली हो, आपको दबा नहीं सकती। जो व्यक्ति आलस्य में सोया पड़ा है, उसके लिए कलियुग है, जिसने अंगड़ाई लेनी शुरू की उसके लिए द्वापर युग है, जो उठकर खड़ा हो गया, उसके लिए त्रेतायुग है और जो कार्य में लग गया उसके लिए सत्युग शुरू हो गया और उसका भाग्य सौभाग्य में बदल गया।
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पूर्णतया सही नही है