मध्ययुग के बाद इक्कीसवीं सदी तक के भारत की विकास यात्रा के दौरान देश के हर तंत्र ने विज्ञान के सहारे अच्छी प्रगति की, पर इस दौरान मानवीय जीवन में अनेक दुराव भी आये, जो हमारी ऋषि परम्परा एवं शहीदों के स्वप्नों को कमजोर करते हैं। इस कमी को हमारी आध्यात्मिक विरासत अवश्य पूरी कर देगी, पर हम सबको मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। यही भारतीय राष्ट्रभक्ति है।
विज्ञान के सहारे स्थान से स्थान की दूरियां जरूर कम हुईं, परन्तु व्यक्ति के दिलों की दूरियां कम करना अभी शेष है। चिकित्सा जगत में क्रांति हुई, सर्जरी से लेकर इसकी आधुनिक तकनीक में इजाफा हुआ, लेकिन मनुष्य आज भी समुचित चिकित्सकीय सुविधाओं के बिना जीवन की डोर खो रहा है। धर्म की दृष्टि से शाखा-प्रशाखाओं में काफी वृद्धि हुई, लेकिन मनुष्य व मनुष्य के बीच के मन की दूरी मिटाने में धर्म आज भी बहुत पीछे है। आज भी धर्म मनुष्य के अन्याय, अभाव, अत्याचार, अज्ञान, अंधकार, मूढ़मान्यताओं को दूर नहीं कर पा रहा।
समृद्ध विज्ञान से हम सब स्वर्णिम सुखद भविष्य के लिए आशान्वित करने वाले नेकनियति एवं ईमानदारी से भरे समाज की संरचना कहां कर पा रहे हैं? आज भी भूख से लेकर नशा, अंधविश्वास, कट्टरता, मनुष्य एवं मनुष्यता का येनकेन प्रकारेण दोहन, अपराध पर नियंत्रण, नर-नारी में भेद आदि अनेक मूलभूत समस्याओं पर नियंत्रण एक बड़ी समस्या है। भाषा, भूषा, भोजन, भजन के नाम पर व्यक्ति टूटता, बंटता दिख रहा है। विश्व स्तर पर हिंसक-निर्दयी सत्ताधारियों के क्रूर हाथों में आणविक शक्तियां ताण्डव नाच कर ही रही हैं। इस प्रकार देश को लगभग आठ दशक हो गये आजाद हुए, पर गहराई से विश्लेषण करें तो हम आजादी के पूर्व आंतरिक सोच व मानवीय चेतना की दृष्टि से जहां थे, लगता है वहीं खडे़ हैं।
वास्तव में ‘‘शहीदों का स्वप्न केवल अंग्रेजों को भगाकर सत्ता हासिल करना मात्र नहीं था, अपितु उस सत्ता एवं स्वतंत्रता के सहारे मानवमूल्यों से जन जन को, सम्पूर्ण विश्व को जोड़ना, भारतीय अध्यात्म के मूल्यों को जीवन में स्थापित करना, सात्विक एवं पवित्र राह से देश को समृद्धि से भरना, खुशहाल बनाना आदि लक्ष्यों को पूरा करते हुए गौरवपूर्ण भारत का निर्माण करना शहीदों का स्वप्न था, जिससे भारत को पुनः विश्वगुरु की प्रतिष्ठा दिलाई जा सके।
स्वतंत्रता संघर्ष में योद्धाओं ने हमारे प्राचीन ऋषि परम्परा वाले संकल्प भरे स्वप्नों के साथ अपने प्राणों की आहुतियां दीं। सेवा एवं संघर्ष की जो परम्परा भगवान श्रीराम-श्रीकृष्ण के काल से चली आ रही थी। गांधी, सुभाष, लक्ष्मीबाई, शहीद भगतसिंह, आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल सहित स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों वीरों ने उसी के संकल्प-साहस के साथ देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देश को स्वतंत्र कराया। आज जरूरत है मिलकर शहीदों के सपनों के अनुरूप देश को गढ़ने हेतु कदम बढ़ाने की। जिससे देश में शांति के पथ-प्रदर्शक सच्चे सेवक, लोक सचेतक खड़े हों और देश में सच्ची शांति, आनन्द-प्रेम का मार्ग प्रशस्त हो तथा भारत भूमि पुनः वह प्राचीन गौरव पा सके। इस मानव जीवन की सार्थकता भी तभी सिद्ध हो सकेगी।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस दुनिया का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी रूप में अपना योगदान देकर जीवन को सफल बनाता है। एक छोटी सी चींटी, रेशम के कीड़े से लेकर हाथी जैसा बड़ा प्राणी तक इस दुनिया को कुछ न कुछ अवश्य दे रहा है। सेवा, सहारा भरा योगदान देकर वह एक दृष्टि से समाज-देश का ही भला कर रहा है, भले ही उसे इस बात का पता नहीं है, देखे तो रेशम का कीड़ा रेशम बना रहा है, जिससे न जाने कितने लोगों की लाज ढकती है। छोटी सी मधुमक्ऽी दुनिया को शहद जैसी मिठास दे रही है।
ऐसे में हर मानव के समक्ष भी प्रश्न है कि मैं इस देश-दुनिया को क्या दे रहा हूं? अर्थात मनुष्य के अंदर जीव, वनस्पति जगत के साथ-साथ एक-दूसरे का सहारा बनने का भाव जगना ही सबसे बड़ी मनुष्यता है। इस प्रकार हम हर मानव को भी इस दिशा में अपनी समीक्षा करने की जरूरत है।
जब हर मानव अपने समाज के लिए लाभ देने लगे, तभी उसके जीवन की सार्थकता कही जायेगी, तभी उसकी देशभक्ति की सार्थकता भी है। इसी प्रकार देश का धर्म क्षेत्र लोगों में क्रांतिकारी बदलाव लाने लगे, मंत्र जीवन का रूपांतरण करने लगे, कर्मकाण्ड लोगों को भाग्यवादी उलझन व अकर्मण्यता से मुक्त करते दिखे, प्रतिभायें औचित्यपूर्ण दिशा में कार्य करती दिखें, भगवान की भक्ति दुनियां वालों में असहाय, गरीबों, जरूरतमंदों के प्रति सेवाभाव जगाने लगे आदि सभी क्षेत्र अपने अपने औचित्य में लग जायें तो इन सबको राष्ट्रभक्ति ही कही जायेगी। परन्तु यह राष्ट्रभक्ति जीवन में तप की चेतना जगने के बाद ही आती है।
भारत वर्ष की तप चेतना वाली पृष्ठभूमि ही रही है। ऋषि परम्परा के अनुसार तप का अर्थ जीवन में किसी आदर्श की उत्कर्ष अवस्था स्थापित करने के लिए सहे गये कष्ट से है। जिसे अपना लेने पर व्यक्ति मानव से महामानव बन जाता है। देश, समाज और आत्मा की रक्षा के लिए आजीवन कष्ट सहन करना असाधारण आत्माओं के लिए ही सम्भव है। जो इस मार्ग को अपना लेता है, वही महामानव बन जाता है।
अनन्तकाल से भारतीय संस्कृति तप की संस्कृति रही है। यहां के परिवेश में तप के अनन्त अवसर उपलब्ध हैं। जैसे जीवन उत्थान, आत्म उत्थान के लिए तप, सत्य की प्रतिष्ठा के लिए तप, सेवा के लिए तप, समाज में सहयोग, कर्मशीलता, क्षमा-करुणा, उदारता की प्रतिष्ठा के लिए तप, ईश्वर व गुरु आराधना के लिए तप आदि। अर्थात हर श्रम-पुरुषार्थ तप का आधार बने यही मूल भारतीय राष्ट्रभक्ति चिंतना है। तप के अनेक आयामों के अन्तर्गत ‘राष्ट्रनिर्माण के लिए’ तप का विशेष महत्व है। देश की आजादी के लिए असंख्य देशभक्तों-बलिदानियों ने तप ही तो किया था, विशुद्ध राष्ट्रीय तप। वास्तव में यह तप समय-समय पर युगधर्म के रूप में अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आता है। जो लोग इस अवसर को पहचान कर कदम बढ़ा देते हैं, उनका जीवन धन्य हो उठता है। उनकी कीर्ति युगों-युगों तक अमर हो जाती है।
राष्ट्रतप हमारे देश का शाश्वत युगधर्म माना गया है, राम, कृष्ण काल से लेकर वीर शिवाजी आदि ने यही धर्म निभाया। पिछले दो हजार वर्षों से बार-बार यूनानियों, शकों, हूणों, अरबों मुगलों, तुर्कों, फ्रांसीसियों, अंग्रेजों की गुलामी से बाहर निकलकर स्वाभिमानी देश के निर्माण में जिन व्यक्तियों का जो भी योगदान लगा, वह सब राष्ट्रतप ही तो है। राष्ट्रोद्धार के लिए संघर्ष करने वाले उन्हीं बलिदानियों की वीरगाथा से हम सबको प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। कहते हैं राष्ट्रीय तप जाति, धर्म, महजब, ऊंच-नीच, अपने-पराये के स्वार्थ से मुक्त होता है। असीम विश्वास के साथ यह हृदय में ऐसा प्राण जगाता है, जो अंध-रूढि़यों, विसंगतियों का नाश करता है, जो पाखण्ड के पीछे हाथ
धोकर पड़ता है और जब तक उसका नामोनिशान तक न मिट जाए शांत नहीं बैठता। तपशील व्यक्ति जो काम करता है, उसे उत्साह से, उमंग से करता है। तपस्वी युवक सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए धैर्यपूर्वक दृढ़ सकंल्प करता है। वह कठोर परिश्रम व अनुशासन अपनाकर चरित्र से सुसज्जित होता है।
राष्ट्र की मजबूती में हमारे शहीदों का तपःपूर्ण बलिदानी स्वप्न अत्यधिक महत्व रखता है। इसलिए राष्ट्र के हर निर्माण में शहीदों के स्वप्न को समाहित करना, उनके आदर्शों को आत्मसात करने को युगधर्म मानकर कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है। वे युवक जिन्होंने फांसी के फंदों को देखकर मस्ती भरे गीत गाए थे। जिन्होंने राष्ट्रयज्ञ पर अपने तन की समिधा जलाई थी। आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगाई, जिससे कि हम सुखपूर्वक सांस ले सकें। भगतसिंह, रामप्रसाद, चन्द्रशेखर, मदन लाल धींगरा, सुभाष चन्द्र बोस, अशफाक उल्ला हों, चाहे लाला लाजपत राय, विवेकानन्द, रामतीर्थ, गांधी, पटेल, तिलक या गोखले आदि ने यही स्वप्न तो देखे थे।
हमें भी आज की आवश्यकता अनुरूप राष्ट्र (राष्ट्रभक्ति) को गढ़ना होगा। आज जरूरत है हर अंतःकरण में ऋषि-मुनियों द्वारा निर्दिष्ट संस्कृति को स्थापित करने की। भौतिक सुख के साथ आध्यात्मिक आनन्द की संयुक्त धारा प्रवाहित करने की, हम सब इसे पुनः प्रवाहित करें, जिससे देश के युवा वर्ग को भ्रष्टाचार, शोषण, अन्याय, अंधपरम्पराएं, दुराचार, अभाव के दानव से बचा सकें, इस स्तर के राष्ट्र (राष्ट्रभक्ति) सृजेता हमें ही गढ़ने हैं। आइये! संकल्प लें अपने स्वयं के जीवन में सुधार लाने का, अपने चरित्र निर्माण का, इसी से समाज निर्माण और राष्ट्र उत्थान का मार्ग तय होगा।
इतिहास में घटी घटनाओं और उस क्षण के प्रेरक प्रसंगों से हमें युवा वर्ग के जीवन को सजा-संवारकर एक सुनिश्चित राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करना ही होगा। तभी देश का तरुण वर्ग समझ सकेगा कि भारत का भविष्य उसके ही हाथों में है और वह सृजन के लिए हुंकार भरेगा, नये युग का निर्माण तभी सम्भव बनेगा। आज हम देखते हैं कि आदर्श के अभाव में हमारा युवक आत्मग्लानि, तोड़-फोड़ और विध्वंस का शिकार है, नशे और अन्य लतों में डूबता, जीवन की समस्याओं से भागता, जमाने भर से शिकायत करता, कुण्ठाओं से भरा, अनुशासन को भंग करता नजर आ रहा है। उसका मन नकारात्मक भावों से भरा है।
नव राष्ट्र निर्माण की धारा बहायें, नया भारत बनायें ( राष्ट्रभक्ति )।
इसीप्रकार देश का आम नागरिक दोराहे पर खड़ा है, नशा से लेकर अश्लीलता की आग में उनका मन और मस्तिष्क झुलस रहा है, तरह-तरह के दुर्व्यसनों से उसका नैतिक पतन हुआ जा रहा है। ऐसे में देशवासियों में सुप्त पड़ी नैतिकता, संयम, अनुशासन और कर्त्तव्य बोध को जगाने की जरूरत है। देश का हर नागरिक नव निर्माणी, चरित्रवान बलिदानी वीरों की तरह जूझने, अपनी प्यारी मातृभूमि के लिए ‘वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम’ की हुंकार भरने की शक्ति से भरा है, बस उसे हमें सम्हालना भर है। यह सब आध्यात्मिक तप चेतना जन-जन में जगाने से ही सम्भव होगा। आइये! नव राष्ट्र निर्माण की धारा बहायें, नया भारत बनायें।
राष्ट्रभक्ति , नया भारत, नव राष्ट्र निर्माण