आज मैं तुम्हें सखाभाव में देख रहा हूँ, क्या तुम्हें मालूम नहीं तुम सब से मेरे अनेक रिश्ते हैं, वास्तव में तो मेरा तुम्हारा रिश्ता सब रिश्तों की सीमा से पार का रिश्ता है। यह रिश्ता बहुत करीब का है अति निकटता का है। यह आत्मीय सम्बन्ध है। पर हमने अपनापन खो दिया है। इसलिए जीवन में नीरसता है। एकछत के नीचे रहने वालों में आत्मीयता न हो तो किसी समझौते के तरह जीवन का निर्वाह तो हो जायेगा, लेकिन जीवन बुझा-बुझा होगा, जगमगाता हुआ नहीं। जहां आत्मीयता है वहां से व्यक्ति कुछ चाहता नहीं। वहां सबकुछ बांट देना चाहता है, सब कुछ बलिदान कर देना चाहता है।
अतः जीवन की जागृति के लिए, अपना स्वरूप जानने के लिए गुरु के साथ एक घरेलू वातावरण चाहिए, जिसमें गहरी आत्मीयता पैदा हो सके। फिर गुरु की अग्नि से अपनी अग्नि उत्पन्न करनी है, अपने आपको प्रकाशित करना है। प्रेम, हर्ष और उमंग से भरपूर हमें अपने आपको पहुचना है इसी प्रकाश में और फिर अपने वास्तविक घर में लौट आना है जहां सच्ची शांति, सच्चा सुख और सच्चा प्रेम है।
मित्रें! क्या आप जानते हैं संसार के स्वामी परमात्मा ने थोड़ी सी खुशिया, छोटे-छोटे सुख, क्षणिक तृप्ति देने वाले स्वाद संसार में बिखेर दिये हैं और सम्पूर्ण सुख, सम्पूर्ण प्रसन्नता और खुशी, सम्पूर्ण आनन्द स्वयं अपने पास रख लिया है। आनन्द का अक्षय भण्डार उसी के लिए रखा है, जो छोटी-छोटी खुशी और संसार की झूठी चमक को ठोकर मारकर उसके पास आने का प्रयास करता है। तुम्हारा शरीर रचते हुए उसने हाथ बनाकर कर्म करने की स्वतंत्रता दी। पग देकर स्वयं अपना रास्ता खोजने का अधिकार दिया, वाणी देकर बोलने की आजादी दी, परन्तु सर्वतंत्र -स्वतंत्र की जिम्मेदारी भरा दायित्व बड़ा भारी होता है।
समस्त प्राणियों में बुद्धि की सौगात परमात्मा ने मनुष्य को ही दी है, अब निर्णय करने का अधिकार तो हमें पूरा-पूरा मिल ही गया है ना। पर अच्छे-बुरे कौन से मार्ग पर चलना है, यह फैसला तो हमें ही करना पड़ेगा। हाँ राह पर चलते-चलते चौराहा आता है, जहां से अनेक रास्ते अलग-अलग लक्ष्य के लिए निकलते हैं, पर उचित व सही रास्ते का निर्णय करेगी बुद्धि। क्योंकि गलत दिशा में बढ़ा हुआ एक-एक कदम मंजिल से दूर ले जायेगा और सही दिशा में उठा कदम तुम्हें मंजिल के करीब कर देगा। निर्णय करने वाली बुद्धि ठीक रहे इसके लिए संसार के स्वामी से प्रार्थना किया करें।
तुम सुनो भी चुनो भी, हाँ तुमने मुझे सुना और मुझे चुना। अब अपनी संगति का चुनाव करो, तब उनकी सुनना। अपने राही-मित्रें का चुनाव करो तब उनकी सुनो। ध्यान रहे जो संगत भ्रम- संशय, निराशा और पतन की ओर तुम्हें खींचे उस संगति के लिए तुम नहीं बने हो। तुम उसके लिए जन्मे हो जो आनन्द, शांति, प्रेम, ज्ञान, विश्वास, श्रद्धा की ओर तुम्हें लेकर जाये। तुम्हारी संगत नरक को स्वर्ग बना सकती है और स्वर्ग को नरक। अब सोचना तुम्हारा काम है। गुरु तुम्हारा परम सखा है, वह तुम्हें तुमसे ही मिलाना चाहता है, वह उस खजाने की चाबी तुम्हें देना चाहता है, जिसके मालिक आप स्वयं हो, पर अपनी अमीरी को भूल कर कंगाली में जी रहे हो।
आओ! परब्रह्म की पगडंडी पर साथ-साथ चलें।
5 Comments
नमन गुरुदेव
शुकराना गुरुदेव सही रहा पर चलाने के लिए।
Sadguru Dev Bhagwan Ko shat shat Naman
Awsome words …guruji u r simply great…gratitude..gratitude…gratitude.
There should be complete readiness in us before we go to our guru. Only then we can gain divine knowledge and wisdom. HariOm Guruji!
Gurudev jee u r great.
Ur words r very beautiful