गुरु मंत्र – गुरुदर्शन – गुरु सान्निध्य के वार्षिक चक्र का पूर्णकाल है – गुरुपूर्णिमा | Sudhanshu ji Maharaj

गुरु मंत्र – गुरुदर्शन – गुरु सान्निध्य के वार्षिक चक्र का पूर्णकाल है – गुरुपूर्णिमा | Sudhanshu ji Maharaj

Guru Mantra - Gurudarshan - The full cycle of the annual cycle of Guru Sannidhya - Gurupurnima

कहावत है शिष्य में शिष्यत्व जागरण पर गुरु की समस्त विद्याएं और क्षमताएं शिष्य की हो जाती हैं। शिष्य गुरु से भर उठता है। पर गुरु की कृपा पाने के लिए शिष्य में शिष्यत्व और समर्पण जरूरी है। समर्पण व सरलता ऐसे मनमोहक गुण हैं, जो उन्मुख होते हैं, तो अन्तःकरण में करुणा और वात्सल्य उभरे बिना नहीं रहता। गुरुपूर्णिमा पर्व पर शिष्य अपने अंतःकरण में जगे इन्हीं भावों को गुरु के समक्ष उड़ेलता है अपनी भाव पुष्पांजलि के साथ। शिष्य जिस भाव से गुरुवर पर श्रद्धा उड़ेलता है, उसी स्तर से उसका गुरुमंत्र भी जागृत होता है। गुरुमंत्र के जागरण से शिष्य के जीवन में गुरु का प्रवेश होता है। गुरुमंत्र रूपी अमृत रस चख लेने के बाद शिष्य का कायाकल्प हुए बिना नहीं रहता। ईश कृपा से हर इंसान का जन्म मां की कोख से होता है, लेकिन उसे जीवन की आध्यात्मिक सफलता व उज्ज्वलता गुरु की चरण-शरण से प्राप्त होती है।

गुरुमंत्र – गुरु आशीष:
इस गुरु मंत्र का श्रद्धा, भक्ति और निष्ठा से जप करने से, सद्गुरु की शिक्षाओं को जीवन में अपनाने से, सद्गुरु की मानने से जीवन में पूर्णता आती है और गुरुतत्व पूर्णता पाता है। वास्तव में गुरुमंत्र सद्गुरु का शिष्य के लिए दिव्य आशीष है, गुरुपर्व उस आशीष की अभिव्यक्ति।
यद्यपि शिष्यों को हर महीने पूर्णिमा तिथि पर सोलह कलाओं से युक्त पूर्ण चन्द्रमा के दर्शन होते हैं। पर गुरुपूर्णिमा शिष्य और गुरु के सम्बन्धों की सम्पूर्णता का महापर्व है। इसीलिए गुरु पूर्णिमा पर गुरुदर्शन से शिष्य के सौभाग्य का उदय होता है। इस खास दिन के संदर्भ में संतगण कहते हैं कि शिष्य के वर्तमान और पूर्व जन्म के संस्कारों का पुण्य फल जब सामने आता है, तभी उसे गुरुपूर्णिमा में गुरुदर्शन एवं गुरुपूजन का सौभाग्य मिलता है इसलिए इस पर्व को विशेष माना गया है।

पात्रता व श्रद्धा का चरम दिवसः
कहते हैं जब शिष्य की पात्रता और श्रद्धा अपने चरम पर होती है, तब उसे गुरु का पावन सान्निध्य मिलता है तथा सद्गुरु शिष्य की आत्मा में परमात्मा का प्रकाश जगाते हैं। खुद का खुद से परिचय करा करके उसे ब्रह्मकवच रूपी गुरुमंत्र जैसा महाकचव देते हैं।
गुरु द्वारा दिया मंत्र शिष्य के नई पहचान का कारक बनता है शिष्य के नामकरण की यह परम्परा युगों-युगों से चली आ रही है। यह मंत्र कवच शब्द ब्रह्म का ही कमाल है। इसीलिए शब्द ब्रह्मरूपी गुरुमंत्र जब शिष्य को प्राप्त होता है, तब उसके कल्मष, दुर्गुण, दुर्व्यसन उड़ जाते हैं। इस प्रकार आत्मज्योति को जागृत कर परमात्मा का प्रकाश पाने के लिए आवश्यक है सद्गुरु द्वारा प्रदत्त गुरुमंत्र।
गुरुमंत्र की प्राप्ति से शिष्य को यह ज्ञात होता है कि मेरा जन्म किस लिए हुआ? क्यों हुआ? मुझे क्या करना चाहिए? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं कौन हूं? किस लिए इस धरा पर आया हूं? ये समस्त प्रश्न और सभी के सारगर्भित उत्तर शिष्य को गुरुकृपा से ही मिलते हैं। इस दृष्टि से गुरुपूर्णिमा को इन सबकी समीक्षा एवं गुरु समर्पण का दिन भी कह सकते हैं।
गुरुपूर्णिमा हमें पूर्णता एवं सिद्धि की ओर लेकर जाती है। शिष्य अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, दुःखों से अमृत की ओर अग्रसर होता है। ऋषियों ने शिष्य को मालामाल होने के लिए कुछ एक मासीय आध्यात्मिक प्रयोगों की बात कही है। वह इस प्रकार है कि श्रावणी पूर्णिमा से गुरुपूर्णिमा तक शिष्य यदि गुरु चिंतन, गुरुमंत्र साधना में बिताने के बाद पूर्णिमा पर गुरु का सान्निध्य, उनका प्यार, दुलार, आशीष पाये, उनके अमृत वचन सुने, कृपा पाने के भाव से उनके पादपूजन व वरदहस्त के स्पर्श से मालामाल हो जाने की अनुभूति के साथ गुरुपूर्णिमा पर्व पर गुरुदर्शन करे, तो शिष्य के जीवन में गुरु की अनुपम कृपा बरसती है। शिष्य की आत्मा तृप्त होकर आनंदमग्न हो उठती है। ऐसे शिष्यों का जीवन ऋद्धि-सिद्धि व सुख-समृद्धि से भर उठता है।

दोष, दुर्गुणों से मुक्ति का पर्व:
सद्गुरु के सान्निध्य, सद्गुरु की शरण और सद्गुरु के द्वारा दिए हुए ज्ञान से शिष्य के जीवन के दोष-दुर्गुण, कष्ट-क्लेश दूर होते जाते हैं। उसके जीवन में सद्गुण और सदाचरण का समावेश होता है। उसकी यश-कीर्ति फैलने लगती है। उसकी गति ऊर्ध्व हो जाती है। अंततः वह साधारण से असाधारण बन जाता है। वह जीवन के झंझावतों, संघर्षों से जूझकर परेशान नहीं होता, अपितु उसे सफलता मिलती है। वह हंसते-मुस्कुराते सभी बाधाओं को पार कर जाता है। इस प्रकार शिष्य को जीवन जीने की सही कला मिल जाती है। इसीलिए गुरुपूर्णिमा को दोष-दुर्गुणों व विकार मुक्त शिष्य के आंतरिक आहलाद के साथ झूमने का दिन कहा गया है।

वार्षिक पूर्णिमा का पूर्णचक्र गुरुपूर्णिमाः
साधारण पूर्णिमा को पार कर गुरुपूर्णिमा पर्व तक इन बारहों माह जो शिष्य श्रद्धा के साथ खाली बरतन लेकर गुरु के दर पर जाता है, उसका बरतन जरूर भरता है। इसीलिए कहा गया है कि शिष्य जब भी गुरु के पास जाए ईर्ष्या-द्वेष, वैर-विरोध, अभिमान-अहंकार को हृदय से निकालकर जाए।
यद्यपि प्रत्येक मास की पूर्णिमायें महत्वपूर्ण हैं, किंतु गुरुपूर्णिमा पर्व पर जब गुरु और शिष्य आमने-सामने होते हैं, तो उस समय गुरु का वरदान कमाल का असर करता है। इसीलिए कहते हैं कि इस दिन शिष्य सात समुंदर पार हो, फिर भी उसे अपने सद्गुरु के दर्शन, पूजन, वंदन के लिए गुरु-चरणों में अवश्य पहुंचना चाहिए। इस पर्व पर गुरु के दर पर किया गया दान-पुण्य, गुरुकार्यों में किसी भी तरह का सहयोग अनंत फलदायी होता है। गुरु कृपा से उसकी झोली सुख-समृद्धि से आजीवन भरी रहती है।

गुरु पर्व पर गुरुपूजनः
गुरु हमारे जीवन का उद्गम स्थान है। वे मन को मनन की सत्ता देते हैं। गुरु बुद्धि को निर्णय की शक्ति देते हैं। गुरु सान्निध्य पाने वाले की सारी पूजाएं सफल हो जाती हैं। उसके सारे कर्म सत्कर्म बन जाते हैं। इसीलिए सद्गुरु सत्यस्वरूप देव कहलाते हैं। सद्गुरुओं, सच्चे संतों का आदर सम्मान, गुरु की पूजा करना किसी व्यक्ति का आदर नहीं, बल्कि वह साक्षात् सच्चिदानन्द परमेश्वर का आदर है। इसलिए इस दिन के एक-एक पल का सदुपयोग करने, अपने कीमती समय में आनन्द, शक्ति, शांति के साथ गुरु संगत में रहने का विधान है। इस दिन लिया गया छोटा सा संकल्प भी जीवन में सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त करता है। आइये! इस बार नये भावों से मनायें गुरुपर्व।

1 Comment

  1. Anil Kumari says:

    गुरु जी ज्ञान, ध्यान और योग से मुझे दीक्षा दे, मोक्ष हो जावे,संसार के सभी बंधनों से मुक्त हो कर भगवान मे ध्यान लगा दे

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