भगवान कृष्ण कहते हैं
*अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।*
*मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।।*
यदि तुम भक्ति योग के विधि विधान का उपयोग नहीं कर सकते, तो तुम मेरे लिए कर्म करो- इससे भी तुम पूर्ण अवस्था- सिद्धि प्राप्त कर सकोगे।
कर्म भगवान के लिए करो। आप नौकरी करते हो – तो मानो मैं उसकी ही नौकरी कर रहा हूं। आपका चलना उसकी परिक्रमा हो, आप बैठे तो उसकी गोद में बैठे, जो भी वाणी से आप बोले वह हरि चर्चा हो। अपना हर एक कर्म परमात्मा के लिए करना शुरू करें।
जीवन यात्रा के लिए जो भी कर्म आप करते हो वही परमात्मा की पूजा बनाओ। जैसे कबीर ने ताना-बाना बुनते राम नाम लिया। राम नाम को ही उसमें बून लिया। ऐसे ही हमारी जीवन यात्रा में हमारा कर्म भगवान से जुड़े। जब आपकी विचारधारा व्याकुलता पैदा करें तो आपकी शांति भंग होती है। जब अंदर तनाव है और बाहर से दबाव आया तो आदमी फट पड़ता है। उसकी शांति भंग होती है। घर में आकर कोई चीखे- चिल्लाए तो समझ लेना कि वह तनाव के गर्म तवे पर बैठा है। आदमी अपना गुस्सा हमेशा कमजोर पर उतारता है। इसी के लिए अपनी विचारधारा बेहतर बनाएं- धीरज, शांति और संतुलन का अभ्यास करें।
खुद पर भी प्रयोग करें। धर्म का सबसे बड़ा लक्षण धृति – धैर्य है। अपना मन कमजोर ना बनाएं। किसी के प्रभाव में ना आए- अपनी चाल हाथी जैसी मस्त रखें।
जीवन में निराशा भी आएगी- जो आपका मनोबल तोड़ेगी। तब खुद को संभाले। दूसरों का सहारा ना ढूंढे। सच्ची खुशी पाने के लिए अपने आनंद में जियो- खुद को नियंत्रित करें।
हर एक व्यक्ति के अंदर अनेक तरह का बचपना है। गुरु हमारी अंदर की गड़बड़ ठीक करता है। गुरु आपको अनुशासन सिखाता है।
हमारी सोच समृद्ध हो, हम अच्छी आदतें जोड़े- फिर आप खुद को ऊंचा उठता देखोगे। खुद को बदले और जिंदगी का आनंद ले।
2 Comments
अभिनन्दनीय संदेश
परम प्रेरक, परमात्मा की आज्ञाएँ मनुष्य को सदैव समृद्धशाली होने का दिव्य अनुदान है |
सबका जीवन मंगलमय हो भगवान ️ हार्दिक शुभकामनाएंँ
️️ सर्वे भवन्तु सुखिनः
परम पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में नमन,वंदन एवं कोटि–कोटि प्रणाम
संसार एक भव सागर है जिसमें हर्ष- शोक, मान -अपमान, चिंता- भय, मोह, मद मत्सर की लहरें हर क्षण, पतिपल हमें डूबोने के लिए तत्पर रहती हैं । यदि हम अपने गुरुदेव के बताए मार्ग पर चलते हुए अपना प्रत्येक कर्म परमेश्वर को समर्पित करते हुए जिंदगी जीते हैं तो निश्चित रुप से हमें गुरुदेव का आशीर्वाद अवश्य मिलता है ।
गुरु ही हमारे कृष्ण हैं जो हमारे अंदर ज्ञान का दीप जलाने का कार्य करते हैं लेकिन यह तभी संभव होगा जब हम गुरु द्वारा बताए मार्ग पर चलते हैं
गुरुदेव आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं कोटिश आभार करती हूं । हमारा परम सौभाग्य है कि आप गुरु रूप में हमें मिले