आज के गीता अमृत ज्ञान में सद्गुरु ने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है

आज के गीता अमृत ज्ञान में सद्गुरु ने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है

ज्ञान मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है

आज के गीता अमृत ज्ञान में सद्गुरु ने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आत्म साक्षात्कार के बाद, आप मुझ में समस्त प्राणियों को और समस्त प्राणियों में मेरा स्वरूप देखोगे।
यही बात आत्मज्ञान प्राप्त किए हुए मनुष्य के लिए भी कहा गया है। कि वह सब में, समभाव रखते , हुए अपना जीवन यापन करता है।
जब किसी के ,ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। तो पीछे का अज्ञान नहीं रह जाता है। सेवा के कार्य का अद्भुत उदाहरण देते हुए सदगुरु ने कहा, कि ज्ञानियों में श्रेष्ठ ,हनुमान जी जब श्रीलंका गए, अपने स्वामी के कार्य के लिए, तो निर्धारित कार्य से आगे वह कार्य करके वापस आए ।और उनकी हनुमान मुद्रा, सेवा का उच्चतम रूप है इसके लिए अपने गुरु के प्रति निष्ठा, और वफादारी के साथ उसके हो जाएं। तभी आपके अंदर कुछ घटेगा। इसी के साथ जिज्ञासा भी होनी चाहिए ।जिसमें पिप्पलाद ऋषि, तथा विदेशों के प्रतिष्ठित दार्शनिक ,और गुर्जेब का भी जिक्र किया। गुर्जेव ने अद्भुत प्रयोग लोगों पर किए ।जो सामान्य मनुष्य के व्यवहारिक जीवन सेअलग था ।

इसलिए उनके आसपास लोगों की भीड़ नहीं रहती थी केवल चुने हुए लोग थे जिन्होंने दुनिया में आगे जाकर परिवर्तन किया। महाभारत में काम गीता का उदाहरण देते हुए सदगुरु ने कहा कि 2 अक्षरों में बहुत बड़ा राज छुपा हुआ है अगर हम ,मम कहते हैं ।तो मृत्यु है औरअगर हम, न मम कहते हैं तो अमृत है । मतलब जब हम मेरा मेरा कहते हैं तो मृत्यु के नजदीक होते हैं उसे यही डर लगता है कि सांसारिक चीजें मेरे हाथ से छूट ना जाए। लेकिन जब हम गुरु के नजदीक होकर ,आत्म साक्षात्कार की स्थिति में होते हैं। तो ऐसा लगता है ।कि परमात्मा आपके अंदर हैं ।और उसके अंदर पूरी प्रकृति समाहित है। भगवान आगे कहते हैं ।कि पाप के प्रभाव को नष्ट करने के लिए ,गुरु, गीता और समर्पण के साथ ,हमारे हो जाओ। अपने अज्ञान को नष्ट करो। इसके लिए ऊर्जा का केंद्र ,मूलाधार ,स्वाधिष्ठान से होते हुए मणिपुर चक्र की यात्रा पूरी कर लेने पर ,आप उस द्वार पर होते हैं। जहां से एक झटके के साथ आप ऊपर उठ जाते हैं ।

इसमें सबसे बड़ी बात है। कि यहां से जब हम उठते हैं। तो हमारी पशुता समाप्त होती है और आपकी धर्म यात्रा शुरू हो जाती है। जिन सिद्धांतों पर दुनिया चलती है वह आप अपनाने लगते हैं और अपने आत्म स्वरूप के अनुरूप दूसरे की आत्मा को अनुभव करना शुरू करते हैं। इसलिए भगवान आश्वासन देते हैं कि अत्यंत पापी व्यक्ति भी, वर्तमान जीवन में ज्ञान रूपी नौका पर सवार होकर ,पूर्ण तत्व को प्राप्त कर सकता है। हमारा देश भारत, इस परंपरा का बहुत ही धनी है

💐ऊपर कहे गए शब्दों का सार नीचे इन चार लाइनों में

💐सब प्राणियों में भी ना, क्यों तू पाप करता हो बड़ा।
💐यह ज्ञान नौका पार, कर देगी ना हो कितना कड़ा।
💐जग पाप सागर पारकर, उस पार तू हो जाएगा।
💐हे पार्थ आवागमन से, चिर मुक्त तू हो जाएगा।

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