कर्मो का खेल बड़ा विचित्र है! जो कर्म हम कर रहे होते हैं उनका फल तो अवश्य मिलता है – अच्छा किया तो अच्छा और बुरा किया तो बुरा!गीता में भगवान कृष्ण का संदेश है! अवश्यमेव भुक्तव्यम कृतं कर्म शुभाशुभम – अर्थात अवश्य ही भोगना पड़ेगा कर्मो का फल, इससे बचा नही जा सकता !
भगवान ने कर्म करने की स्वतंत्रता तो हम सभी को दी है! जैसा चाहे करें पर फल देने का कार्य भगवान के हाथ मे है: यहां तक कि अवतार भी धरती पर आए तो कर्मबन्धन से वह भी नही मुक्त हो पाए ,भीष्म पितामह का उदाहरण आपके सामने है कि किस प्रकार कर्म बंधन के कारण उन्हें छह माह तक कांटो की शैया पर लेटना पड़ा -तब जाकर म्रत्यु प्राप्त हुई!
कर्मफल दो प्रकार के है! एक तो संचित कर्म जो हमारे खाते में जमा हो गए जैसे कोई FD जब जमा होती है तो maturity पर ही अपना return देती है, उसी प्रकार जो कर्म हमारे खाते में जुड़ गए वह पकने पर ही अपना फल देंगे और उन्हें दुनिया की कोई ताकत बदल नही सकती!
दूसरे होते हैं क्रियमाण कर्म, जो अभी पके नही, उन्हें साधना, भक्ति, सेवा और कृपा की शक्ति द्वारा जलाया जा सकता है! नष्ट किया जा सकता है! फिर वह फल नही देंगे! जिस प्रकार किसी बीज को भून दें तो वह अंकुरित नही होगा! उसी प्रकार क्रियमाण कर्मको नष्ट किया जा सकता है !
इसी के लिए बहुत विधियां सिखाई जाती है, गुरु हमे वह विद्या देते हैं! जिसके द्वारा हम अपने भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हैं! रही संचित कर्म की बात तो उसमें भी छूट तो मिल सकती है जैसे छाता लगाने पर बारिश का कम असर होता है कुछ भीगोगे, कुछ बचोगे – पर वह भाग्य बनकर सामने आएगा जरूर !
इसलिए हमें सावधान होने की बहुत आवश्यकता है! यदि छोटे से छोटे कर्म करते समय भी सजग रहें! तो हमसे गलत कर्म होगा ही नहीं! सदगुरु की शरण मे रहकर व्यक्ति यही सीखता है कि कैसे हमें अपने कर्मों पर दृष्टि रखनी है!
हर क्षण उस प्रभु का नाम स्मरण करते हुए अपनी दिनचर्या का आरंभ करें प्रार्थना करें! कि हे प्रभु हमे सुबुद्धि दो, सामर्थ्य दो की हम सच्चाई और अच्छाई का मार्ग ही पकड़ें ओर अपने जन्म जन्मान्तरों का सुधार कर सकें!
यह कर्म फल ही है! जो अगले जन्म में क्या योनि प्राप्त हो अच्छे कर्मों के प्रभाव से मनुष्य योनि भी मिलेगी अच्छा संस्कारी परिवार में जन्म होगा सुख समृद्धि भी मिलेगी और गुरु भी स्वतः प्राप्त हो जाएंगे ! जो तुम्हारा हाथ थामकर प्रभु के द्वार तक पहुंचा देंगे! तो क्यो न हम ऐसे ही कर्मो की ओर बढ़कर जीवन को सफल बनायें !