गुरु और शिष्य का रिश्ता सदियों पुराना है। राम स्वयं भगवान, शिष्य बने वशिष्ठ जी के, कृष्ण स्वयं भगवान, गुरु बनाया संदीपनी जी को, सम्राट अशोक के गुरु बुद्ध, चक्रवर्ती बनाया चंद्रगुप्त मौर्च को चाणक्य ने, सुकरात के शिष्य बने प्लेटो और, सिकन्दर के गुरु बने अरस्तु, शिवा जी के गुरु थे समर्थगुरु रामदास, कबीर जी के रामानन्द, मीरा ने गुरु धारण किये। गुरुनानक देव जी व अन्य सिक्ख गुरु। माँ संतान की प्रथम गुरु है। यह एक प्राचीन भारतीय सत्य परम्परा है गुरु-शिष्य के रिश्ते की, हम हैं कलियुग के बड़भागी, हमें मिले सद्गुरुरूप में सर्वसिद्ध, महाज्ञानी, महामना, सर्वगुण संपन्न, आदर्श, सरल, सहज संबुद्ध श्री सुधांशु जी महाराज। निरालम्बोपनिषद में सद्गुरु और शिष्य के परस्पर दैनिक सम्बन्ध के बारे में कहा गया है-
उपास्थ्य इति च सर्व शरीरस्थ चैतन्यब्रह्मप्रायको गुरुरूपास्थः (30)
अर्थात् समस्त शरीरों में स्थित, चैतन्य स्वरूप ब्रह्म को प्राप्त कराने वाला गुरु ही उपास्थ है। और शिष्य कौन और कैसा हो?
शिष्य इति च विद्याध्वस्त प्रपञ्च। वगाहितज्ञान व शिष्टं ब्रह्मैव शिष्यः।।
अर्थात् जिसके हृदय में विद्या द्वारा नष्ट हुए जगत के अवगाहन से उत्पन्न ब्रह्मरूप ज्ञान शेष रहे, वही शेष रहे, वही शिष्य है।
अब देखिये गुरु-शिष्य का यह सम्बन्ध दैविक कैसे है? इस उपनिषद के ट्टषि का स्पष्ट मत है गुरु का काम शिष्य को केवल ब्रह्मरूप का बोध कराना है और शिष्य का अन्तर्मन केवल और केवल ब्रह्म प्राप्ति की ओर ही हो।
लाखों इंसानों को सत्य का बोध करवाने वाले हमारे सद्गुरु की सोच, अप्रोच और शान ही निराली है। साधारण धोती-कुर्ते में असाधारण मुस्कराता व्यक्तित्व, सबका दुःख सुनने वाले, बांटने वाले चैतन्य ब्रह्मरूप हंसते-हंसते ही दुनिया के गूढ़ रहस्य समझा देते हैं। फरमाते हैं केवल ईश्वर ही सत्य है, उसकी अनुभूति उसकी प्राप्ति तुम्हारे अर्थात मानव जीवन का उद्देश्य है। किन्तु शास्त्र यह भी आदेश देता है।
ऐ इंसान, तेरे जीवन का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। क्या अर्थ है इसका? तो शास्त्र के इस आदेश के अनुकूल अपने शिष्यों को लौकिक सुख और पारलौकिक आनन्द की प्राप्ति के लिए सद्गुरु मार्ग बताते हैं। उनका कथन है जीवन में सुख और ऐश्वर्य पाने के लिए अपने प्रत्येक कार्य में
धर्म को अंग संग रखो, नेक कमाई करो, सत्य बोलो, शालीन प्रेमपूर्ण व्यवहार करो, सच्चरित्र बनो। करुणा, दया, सहयोग, सहानुभूति, परोपकार, गरीब की सेवा सहायता, दान आदि सभी सद्गुणों का जीवन में पालन करो। ऐसे उन सभी गुणों को धारण करो, जिन्हें शास्त्रें और श्रेष्ठजनों गुरुओं के द्वारा बताया गया है। जीवन में सुखी रहने के सभी प्रयास करो, किन्तु यह ध्यान रहे कि किसी अन्य की हानि करके या मन दुखाकर अपना सुख मत तलाश करो।
लोक में रहते हुए यह सब कुछ करो, किन्तु अन्तर्दृष्टि केवल और केवल परमात्मा पर बनी रहे। सांसारिक सुख अस्थायी है, एक दिन सब कुछ छोड़ना होगा, इसलिये कोई ममता, मोह, लालच, छल, कपट, धोखाधड़ी नहीं करना। कलियुग में ईश्वर का नाम सिमरन सबसे सुगम और श्रेष्ठ भक्ति है। पांच प्रकार की भक्ति है, मातृ-पितृ भक्ति, गुरु भक्ति, ईश्वर भक्ति और राष्ट्र भक्ति।
सभी प्रकार की भक्ति का पालन करो। सोने, उठने, खाने-पीने, पूजा-पाठ, परिवार, रिश्ते, समाज से सम्बन्ध सबके नियम बनाओ और उनके अनुसार अनुशासन में जीवन को व्यतीत करें। सब कुछ भूल जाओ, किन्तु परमदेव ही, करुणा निधान, पतित पावन, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वाधार, योगेश्वर, परमेश्वर, सर्वेश्वर, दीनबन्धु परमात्मा को कभी मत भूलना और विश्व जागृति मिशन से जुड़े भक्तों का सौभाग्य है कि गुरुदेव जी ने 8000 से अधिक प्रवचनों से प्रवाहित अमृतवाणी से उनके भ्रमित मनों का शुद्ध शास्त्रीय उच्च विचारों से प्रक्षालन किया। पिछले 45 वर्षों से अधिक की धर्मयात्र में लाखों लोगों को धर्ममार्ग पर प्रेरित किया।
इस अन्तराल में ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया कि भक्तजन स्वयं भी धर्मकार्यों व जनसेवा से जुड़ते गये। गुरुदेव जी ने उनके मानव चोले को भी अर्थ दे दिया। उनके भाग्य को सौभाग्य बना दिया। गरीब बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा के द्वारा खोल दिये। गुरुकुल, ज्ञानदीप विद्यालय, पब्लिक स्कूल, बालाश्रम, देश के अनेक नगरों-महानगरों नई दिल्ली, फरीदाबाद, कानपुर, सूरत, मुरादाबाद, रांची में धर्मप्रचारक तैयार करने के लिए आनन्दधाम आश्रम में महाविद्यालय, गरीबों, विपन्न वर्गों के लिए उच्चस्तरीय नई दिल्ली और फरीदाबाद में अस्पताल, शिक्षा निःशुल्क, बच्चों को सभी सुविधाएं फ्री।
अस्पताल सेवा के केन्द्र, आंखों के निःशुल्क ऑप्रेशन, दवाईयां, लाखों का फ्री इलाज, सैंकड़ों गौऊओं का पालन-संवर्धन सात गौशालाओं में, वृद्धाश्रम, साधना केन्द्र, सैकड़ों ध्यान शिविरों का अब तक आयोजन, सुखद आवास गृह, आयुर्वैदिक पद्धति से उपचार, युगट्टषि औषधि निर्माण तथा वितरण केन्द्र, सैंकड़ों, यज्ञों-अनुष्ठानों का आयोजन, मानव कल्याण व विचार शुद्धि के लिए आनन्दधाम आश्रम के शिखर पर सायंकालीन प्रार्थना-यज्ञ का प्रतिदिन आयोजन, कितनी योजनाओं का सेवाओं का वर्णन किया जाये। 24 भव्य मंदिर, 25 आश्रम, गिनती कठिन है।
प्राकृतिक व राष्ट्रीय आपदा में निरंतर आर्थिक व सामग्री का सहयोग, युवकों-युवतियों के लिये उत्तम संस्कारों की व्यवस्था, महिला विधवा सहयोग निरन्तर चलता है। माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान हेतु श्रद्धापर्व।
ईश्वर सद्गुरुदेव जी को दीर्घ, स्वस्थ, सुखी जीवन का सर्वदा वरदान देना, एक महापुरुष के जीवन के साथ लाखों जिन्दगियां जुड़ी हुई हैं। सद्गुरु सूर्य का प्रकाश हैं, चंद्रमा की शीतल चांदनी हैं। सुखद समीर हैं सद्गुरु विराट हृदय वाले आकाश हैं। सद्गुरु दुःख-सुख के साथी हैं। पावन जल हैं, ज्ञान के सागर हैं, शिवस्वरूप सद्गुरु हजारों के लिए आशुतोष हैं, चलते-फिरते तीर्थ हैं, जहां चरण पड़ें सद्गुरु के वहीं तीर्थ बन जाये, लाखों हृदयों की ज्योति हैं, मन के मोती हैं, प्रभु रक्षा करना, रक्षा करना, यही प्रार्थना है हमारी, करें स्वीकार कृष्ण मुरारी।
डॉ. अर्चिका दीदी