जगत में हर पल, हर क्षण नवीनता का संचार हो रहा है। भूमि के गर्भ में पड़े बीज के भीतर से नव-अंकुर फूट रहे हैं, पौधों पर नयी कलियाँ बन रही हैं, वे कलियाँ मुस्कुराने लगी हैं, खिलकर फूल बनने लगी हैं। छोटे बच्चे के चेहरे पर मुस्कान तैर रही है, उसके मन में संसार को जानने की उत्कण्ठा है, उसके चेहरे पर नया उत्साह दिखाई दे रहा है। यह नूतनता का सुन्दर रूप है, एक अभिनव रचना हो रही है, नया सृजन हो रहा है। यह सृजन शरीर को रोमांचित करता है, मन एवं आत्मा को सन्तोष से भरता है।
सम्पूर्ण सृष्टि में दो ही स्थितियाँ घट रही हैं- या तो विकास हो रहा है, या विनाश हो रहा है। मार्ग दो ही हैं, या तो हम उत्थान की ओर जाएँ अथवा पतन की ओर। यदि ऊपर की ओर नहीं उठे तो आप जीवन की बाजी हार जायेंगे। इसका मतलब है कि हमारे विचारों की उंगलियाँ हर समय कुछ-न-कुछ नया कराने के लिए तत्पर रहती हैं।
जब हम सोचते हैं कि भविष्य की स्वर्णिम तस्वीर हमारी मुट्ठी में आ जाए, मैं आसमान की बुलंदियों को छू सकूँ, निरन्तर उन्नति व प्रगति के पथ पर चढ़ सकूँ, तब हमें कहीं से एक कल्याणकारी आवाज सुनाई देने लगती है। कानों में कुछ आवाजें गुंजायमान हो उठती हैं कि सफलता के शिखर हमें पुकार रहे हैं, मुझे ऊँचाई की ओर जाना है, कितने भी अवरोध मेरे सामने क्यों न आयें, मुझे अपनी मंजिल अवश्य प्राप्त करनी है। जब आपको ऐसी अनुभूति होने लगे तो समझ लेना कि जीवन में नवक्रान्ति का, नवसृजन का श्रीगणेश हो गया है।
इस सम्बन्ध में मैं आपसे कहना चाहूँगा कि जैसे घुटन भरे वातावरण के बीच ताजी हवा का संचार होता है तो ताजगी आ जाती है, उसी तरह मानव-मस्तिष्क में जब ताजे विचार आते हंै, तभी नवीनता आती है। नये विचार नूतन सृजन करते हैं। जब मन में नयी भावनाओं का जन्म होता है, तब फिर से कर्म में भी नवीनता का संचार होने लगता है। यही सही समय होता है नयी मूर्ति को तराशने का। मन-मस्तिष्क में निरर्थक विचारों और व्यर्थ की बातों को काट-छाँटकर और उन्हें हटा देने पर जिस नयी मूर्ति के दर्शन होंगे, वही आपका असली स्वरूप है, वही वास्तविक जीवन है।
बन्धुओं! आप अपने मन व मस्तिष्क को तरोताजा करने के लिए अध्ययनशील बनें। इससे आपको नए-नए विषयों के बारे में अनेक जानकारियाँ प्राप्त होंगी और आप अपने मस्तिष्क में नवीनता का सृजन आसानी से कर सकेंगे।