व्यक्ति सोचता है कि जो होना है वह अवश्य होगा, जो नहीं होना वह नहीं होगा, इसलिए आराम से बैठे रहें, जो होगा देखा जाएगा। भाग्य के भरोसे बैठे रहना कायरता है। दुर्भाग्य से समाज आज भाग्यवादी बन गया है। बहुत बार हम केवल पंडितों की बातों में आकर भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं कि अभी समय ठीक नहीं चल रहा। याद रखिए समस्या से जूझे बिना कोई हल नहीं निकलेगा। जो जूझने लग गया उसका भाग्य जरूर चमकेगा।
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।
यह ठीक है कि राम ही सबके दाता हैं, मगर यह कहना कि अजगर नौकरी नहीं करता, पंछी काम नहीं करते तो भी उन्हें खाना मिल जाता है। हमें भी काम करने की क्या जरूरत है, जो भाग्य में होगा मिल जाएगा, यह विचार नकारात्मक है। भाग्यवादी नहीं होना चाहिए। बात-बात पर हम हाथ दिखाने बैठ जाते हैं, डराने वाले लोग डराते हैं।
परिणामस्वरूप हम आशंकाओं से घिर जाते हैं। हाथों की लकीरों में गुम होकर अपने जीवन को बरबाद मत करना क्योंकि कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी होते हैं, जिनके हाथ ही नहीं होते लेकिन भाग्य उनका भी होता है और बनता-बिगड़ता भी है। बुद्घि का सही प्रयोग करके कर्म करते रहना चाहिए। आप कर्म नहीं करोगे तो राम भी कृपा नहीं करेंगे। संसार कर्मक्षेत्र हैं, इस कर्मभूमि में सब कर्म करने आए हैं और कर्मठ व्यक्ति ही प्रभु की कृपाएं प्राप्त करता है।
पुरुषार्थ को छोड़िए नहीं, कर्मठ बनें, कर्म से जी चुराकर भाग्यवादी बनकर बैठने से बात नहीं बनेगी, जब कर्म करोगे तब ही सौभाग्यशाली बनोगे। हम काम करना नहीं चाहते, भाग्य के भरोसे बैठकर अपनी कमजोरियों का दोष दूसरे के माथे मढ़ देते हैं कि दूसरों के कारण हम दुःखी हैं। खुद झुकना नहीं चाहते, हम सोचते हैं दूसरा झुके, हमसे तालमेल बैठाकर चले तो सौभाग्य आगे बढ़ता जाएगा।
प्रारब्ध बहुत महत्वपूर्ण है, आप किसी का भाग्य नहीं बदल सकते, उन्हें सुख-सुविधा दे सकते हो मगर भाग्य बदलना आपके हाथ में नहीं। भाग्य हमारे पूर्वकृत कर्मों का फल है और कर्मफल अवश्य भोगना पड़ता है। परम दुर्भाग्य चल रहा हो तो उस समय में मन को कमजोर नहीं होने देना। बहुत बार दुर्भाग्य के समय में व्यक्ति जहां से सौभाग्य का द्वार खुलता है, उस परमेश्वर के प्रति भी पीठ करके खड़ा हो जाता है।
जीवन में कैसी भी विषम परिस्थिति सामने आए लेकिन अपना इष्ट, अपना गुरुमन्त्र कभी नहीं छोड़ना चाहिए। भाग्य अपना कार्य करता है, शास्त्र कहता है कि भाग्य बड़ा प्रबल है, मगर पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को तोड़कर सौभाग्य में बदला जा सकता है। दवा और दुआ दोनों का मेल बिठाएं। अन्दर की ज्योति और बाहर की ज्योति दोनों काम करें तो बात बनती है।
आंख में ज्योति हो, बाहर प्रकाश हो तो आंखें काम करती हैं। बाहर सूर्य निकला हो, मगर आंखों में ज्योति न हो तो अन्धेरा है। फिर भी कहा गया अपनी तरफ से कोई कसर बाकी न रखें। पुरुषार्थ छोड़ें नहीं, पूर्ण पुरुषार्थी होकर कार्य में लगें और साथ में प्रभु से आशीर्वाद भी मांगें ।