जब-जब इस धरा पर संकट छाये हैं, ईश्वर इस धरा को बचाने, सज्जनों को संरक्षित करने एवं दुष्टों के विनाश के लिए महान आत्माओं को अपनी ईश्वरीय शक्तियों के साथ धरा पर भेजता है और वे संकट से धरा को उबारते हैं। मानव और मानवता के लिए ईश्वर की ओर से यह महान आश्वासन आज तक पूर्ण होता आया है। जैसा संकट था, नारायण ने उसी अनुरूप स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधि स्वरूप युग संत, युगपुरुष, युगीन ट्टषियों, सद्गुरुओं को संकट निवारण हेतु धरा पर भेजा है।
परिस्थिति कैसी भी रही हो, मानवता को समाधान मिले हैं और शांति, सौभाग्य का वातावरण स्थापित हुआ। बाराह, कच्छप, नरसिंह, वावन, परसुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण से लेकर अनेक अंशावतार नारायण के संकल्प अनुसार ही अपने जागृत संगी-सहचर आत्माओं के साथ धरा पर स्वर्गीय परिस्थितियों का निर्माण करने आये थे। समर्थ सद्गुरु व संत भी इन्हीं परम्पराओं में आते हैं, कभी संत श्रीरामानुजाचार्य ने आकर भक्ति की विशिष्ट धारा प्रवाहित की। माधवाचार्य जी ने वेदान्त में द्वेतवाद की अवधारणा प्रतिष्ठित की। संत नामदेव, तुकाराम परमात्मा का संदेश घर-घर पहुंचाने के लिए गली-कूंचों में संकीर्तन करते दिखाई दिये। संत रामानन्दाचार्य ने रामकथा को माध्यम बनाया, कबीर ने मानव व मानवता के उत्थान हेतु निर्गुण भक्ति का प्रादुर्भाव किया।
गुरुनानक देव ने सिख धर्म का प्रवर्तन किया, चैतन्यदेव ने भजन-कीर्तन की युगीन शैली से जन जन को जगाया, गोस्वामी तुलसीदास ने सम्पूर्ण विश्व को राममय संस्कृति से ओतप्रोत किया, सूरदास ने कृष्ण भक्ति के सहारे प्रत्येक मां में माता यशोदा बनने की ललक पैदा की। गुरु गोविन्द सिंह ने हिन्दू और सिख धर्म के संरक्षण के लिए खालसा पंथ स्थापित किया। अर्थात हर युग में किसी न किसी रूप में भगवान की युग चेतना ऋषियों, संतों और महापुरुषों के सहारे कार्य करती रही और ईश्वरीय विधान के अनुसार धरा पर स्वर्गीय परिस्थितियां स्थापित होती रहीं।
चेतना जागरण की यह महायात्रा कभी नहीं रुकी। युग संतों के संकल्प को ईश्वरीय कार्य मानकर जिसने अपनी भागीदारी की, उसकी कीर्ति सदा के लिए अमर हो गयी। वे यश-सौभाग्य एवं ईश्वरीय अनुदान के हकदार बन गये। आज फिर से यह विश्व ईश्वर की नवयुगीन चेतना की आवश्यकता अनुभव कर रहा है, जो मानव जीवन में समाई कट्टरता, प्राणगत जड़ता तोड़ सके और मनुष्य को अपने निजस्वभाव में स्थित कर सके। जिससे मानव मात्र के अंतःकरण में मनुष्यता स्थापित हो और हर हृदय में प्राणि मात्र के प्रति दया, करुणा, स्नेह, प्रेम, पवित्रता, शांति, संवेदनशीलता, सत्य, न्याय की हूक जगे। इस अभिनव ईश्वरीय जागरण की शुरुआत हमें मिलकर हर पीड़ित, दुखी, अभावग्रस्त, उपेक्षित की सेवा-सहायता के साथ करने की जरूरत है, इसी से जीवनशैली में देवत्व जगेगा, देवमय समाज का सृजन तभी सम्भव होगा। आइये! युगधर्म का निर्वहन करें, यश-सौभाग्य एवं ईश्वरीय कृपा के हकदार बनें।