सुखी जीवन के लिए कुछ आत्मचिंतन के सूत्र! | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

सुखी जीवन के लिए कुछ आत्मचिंतन के सूत्र! | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

सुखी जीवन के लिए कुछ आत्मचिंतन के सूत्र

सुखी जीवन के लिए कुछ आत्मचिंतन के सूत्र!

 लोगों के दिलों में स्थान अपने कर्म से बनता है। सुखी जीवन- आपका मानसिक स्तर आप का परिचय देता है!

 उम्र हर दिन घट रही है, तृष्णा हर दिन बढ़ रही है, जो हर दिन हर पल घटता -बढ़ता है वह है आपका मन, और जो हर समय एक जैसा रहता है – वह है विधि का विधान, परमात्मा का विधान।

 जहां से सत् का संग और सत् का रंग लग जाए वह सत्संग है। अनेक जन्मों के संस्कारों के कारण आपके मन में सत्संग के लिए रुचि पैदा होती है।
जिसको छोटी उम्र से ही सत्संग का रंग लगे वह सौभाग्यशाली है। आपको यह रूचि किसी भी उम्र में लग सकती है।
अपने कान, मन, दिमाग और भावना से- भावविभोर होकर सत्संग सुने।

भावनात्मक रूप से श्रोता बने

भावनात्मक रूप से श्रोता बने। जो सुना है उसे समझे और वह अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं।  संयम और श्रद्धा को कभी भी डामाडोल नहीं होने देना! यह आपकी अनमोल शक्तियां हैं!

दृढ़ संकल्प मतलब स्वयं को पूरी तरह नियंत्रित करना! जो संकल्पवान है वही आत्मवान है! संत रहदास गाते थे जैसे परमात्मा से लौ लगी है। बहुत जन्म बिछड़े हो माधव, अब यह जन्म तुम्हारे लेखे।

माता पिता पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को सिखाएं- बहन ,बेटी के साथ कैसे व्यवहार करें क्योंकि राक्षस और देवता घर में ही पैदा होते हैं।

सुखी जीवन

मुश्किलों का सामना कैसे करें?

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