सम्पूर्ण समर्पण भगवान के चरणों मे – यही मुक्ति का द्वार है ! भगवान से इतनी प्रीति लगा लो कि और कुछ नज़र ही न आये , तभी भक्ति की पराकाष्ठा को प्राप्त कर पाओगे।
भक्ति तो हम सभी करते हैं , थोड़ी पूजा पाठ कर ली, आरती भजन कर लिया, भगवान को पुष्प नेवैद्य अर्पित कर दिया – लगता है हमने बहुत भक्ति कर ली परंतु यह भक्ति को प्रमाणित करने के माध्यम तो हो सकते हैं, भक्ति नहीं ।
अपना पूरा ध्यान उस प्रभु के प्रति अर्पित कर सको, संसार के कार्य भी चलते रहें, अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नही हटना ओर साथ ही प्रभु के रंग में रंगे रहो – अपनी लौ उस परमात्मा से लगाकर रखो वही भक्ति परवान चढ़ती है ।
इतना गहरा समर्पण उस प्रभु के प्रति की जैसा वह रखे हम रह जाएं, जो परिस्थितिया सामने हैं, प्रतिकूल को भी अनुकूल मान कर सहर्ष स्वीकार करें – जहां वह ले जाये, जा सकें तभी प्रभु के प्रति प्रेम प्रतिबिम्बित होता है। सदगुरु हमें उस ऊंचाई तक लेकर जाते हैं जिसके बाद कुछ जानना, बूझना बाकी नही रह जाता । उस प्रेम गंगा में डुबकी लगाने के बाद अपनी सारी मैं समाप्त, मैँ कौन, मैं क्या, कुछ भी खबर नहीं तब उसी पारदर्शिता में भगवान के दर्शन होते हैं ।
मीरा जैसा शुद्ध ह्रदय चाहिए, सूरदास जैसी पवित्र भावना – पुकारो उसे वह अवश्य आएगा क्योकि भगवान तो भावना के भूखे होते हैं । मरने के बाद भी उन पवित्र आत्माओं का नाम दुनिया मे रह गया ।
मीरा के न कोई संतान थी न कोई शिष्य, अपनी ही धुन में रहती, अपने प्रभु की भक्ति में विलीन कर दिया स्वयम को आज भी मीरा का नाम आते ही प्रेम की लहर दौड़ जाती है ह्रदय में – ऐसी ही लहर पैदा करो भक्ति की ।
भगवान को पाना कोई कठिन कार्य नहीं है, इसी घर गृहस्थी के बीच रहते हुए भी आप प्रभु को पा सकते हो । बस अपना समय का निर्धारण ठीक करना होगा और स्वयम को अपने निर्देशक, अपने सदगुरु को समर्पित करके उनके निर्देशों का अक्षरशः पालन करना होगा । आपकी भक्ति सफल अवश्य होगी और प्रभु की निकटता प्राप्त होगी ।
जब तक भाव भावना शुद्ध नहीं होगी, मर्यादित नहीं होगी – प्रभु को प्राप्त नही कर सकोगे सदगुरु एक हाथ स्वयम पकड़ेंगे और दूसरा हाथ भगवान को पकड़ा देंगे भवसागर पार कर जाओगे – यही मुक्ति का उपाय भी है और जीवन का लक्ष्य भी !