हमे यदि स्वयम को ऊंचा उठाना है और अपना उद्धार करना है तो सबसे पहले आत्मचिंतन को अपना आधार बनाओ। अकेले में बैठकर अपना विश्लेषण कीजिये कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, क्या मार्ग अपना रहा हूं !
सबसे बड़ा सुधार स्वयम से ही सम्भव है कोई यदि हमें कुछ समझाए तो हमे समझ नही आएगा , अपना सामना खुद करो!
इसके लिए आवश्यक है कि हमे अपने अतीत से हुई त्रुटियों पर गहनता से विचार करना चाहिए और उसमें सुधार कैसे संभव है, दृष्टि डालेँ !
आप स्वयम ही अपने मित्र भी हो और स्वयम ही शत्रु भी हो – यदि आप गलत विचारों से अपने को पृथक नही कर पाते तो आपसे बढ़कर आपका शत्रु कोई नहीं !
इसमें सहायक बनते है गुरु के विचार और उनका मार्गदर्शन । अपने सदगुरु की शिक्षाओं को जीवन मे उतारोगे तो भटकाव से बच जाओगे !
सिंघवलोकन करना यानी अपने अतीत पर दृष्टिपात करो, अपनी औकात को इंसान को कभी नही भूलना चाहिए । हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए पर जिस प्रभु की कृपा से सब कुछ पाया उसके धन्यवादी बनो !
आईने पर पड़ी हुई धूल को साफ करोगे तभी आपका असली चेहरा नज़र आएगा – इसी प्रकार जब तक अपने दोष ओर खोट नहीं मंथन करोगे , सुधार असम्भव है । इसलिए आत्मचिंतन ओर आत्मविश्लेषण से ही नवजीवन का निर्माण होगा ओर आप वह सब कुछ पा सकोगे जिसकी आपने कल्पना भी नही की थी !