सेवा का महत्व यदि हम गुरुदेव के शब्दों से जाने तो – कितना भी दुर्भाग्य चल रहा हो : उससे छुटकारा दिलवाने की शक्ति मात्र सेवा में है! सेवा से सारे बिगड़े काम बनते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है!
सेवा के लिए श्रद्धा का होना परम आवश्यक है, यदि श्रद्धा नहीं होगी तो वह व्यक्ति सेवा कर ही नहीं सकता : श्रद्धा माता पिता के प्रति हो, तो वह समय भी निकलवायेगी और सामर्थ्य भी: वरना माँ बाप की चारपाई की जगह घर मे नहीं दिखाई देती!
सेवा के नौ रूप सदगुरुदेव ने दिए हैं : जिसमे अनेक प्रकल्प गुरु द्वारा सेवा कार्य किये जाते हैं !यह नौ प्रकार की सेवा नवग्रहों की अनुकूलता के लिए सबसे उपयुक्त होती है! यह सभी सेवा का कार्य एक ही स्थान पर सम्भव है वह हैं गुरुधाम यानी आनंदधाम!
सेवा की भावना जब ह्रदय में आ जाये तो व्यक्ति आलस्य का परित्याग करके अपनी पूरी शक्ति उसमें लगता है : भक्ति भी सेवा का ही एक रूप है : भगवान को पाने के लिए पूरी तरह डूब जाए – तभी भक्ति का चरम रूप मिल पाता हूं!
इसी प्रकार गुरु के लिए सेवा भाव आ जाये तो अपने तन से, मन से, धन से, बुद्धि से, जहां भी आपकी कुशलता है:: सब कुछ गुरु को अर्पण कर दो:जिन्हें मान लिया तो उन्ही को समर्पित हो गए: यह अटूट श्रद्धा भी गुरुसेवा का ही एक रूप है!
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Sadar pranam gru ji