ध्यान एक माध्यम है अपनी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने का : यह सब तो हम सभी जानते हैं परंतु उसके लिए क्या विधि अपनाए , इससे हम परिचित नही है !
ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे मनुष्य का आमूल परिवर्तन संभव है परंतु इसके लिए हमे अपना मार्गदर्शक यदि नही मिलेगा तो हम उसमे सफल नहीं हो सकते !
यूं तो आजकल ध्यान को लेकर जगह जगह आप विज्ञापन देखेंगे परंतु वास्तविक रूप से उसका मर्म कोई नहीं जानता । कुछ क्षण के लिए वह आपको शांत भी कर देंगे परंतु उससे वह गहराई नहीं प्राप्त हो सकती जिसके लिए ध्यान किया जाता है !
वास्तव में तो ध्यान कोई प्रक्रिया नही है जिसको आप सीख लें और उसका लाभ मिलना आरम्भ हो जाये :: ध्यान तो वह समुद्र है जिसमे जब तक आप पूरी तरह छलांग नहीं लगाएंगे ::वह कीमती मोती हाथ नही आएंगे जिसके लिए आप प्रयत्नशील है !
यह भी अक्षरशः सत्य है कि गुरु की निर्देश और उनकी विधियों के बिना ध्यान में सफलता सम्भव ही नहीं: गुरु की प्रेरणा जब तक आपके ह्रदय में चिंगारी बनकर नहीं चमकेगी तब तक आप उसके मर्म को समझ ही नही पाएंगे !
गुरु मात्र विधि ही नहीं देते परंतु वह अपनी उस रूहानी दौलत को भी अपने शिष्य के अंदर , उसके रोम रोम में बिखेर देते हैं जिसको पाकर शिष्य का जीवन धन्य हो जाता है !
एक तरफ गुरु अपना खज़ाना देते हैं, दूसरी ओर शिष्य लगातार अविरल प्रयत्न करता रहे, साथ ही परमात्मा की अनुकंपा – बस जीवन मे चमत्कार घटित होगा ही होगा !
इसलिए यदि हम चौरासी लाख योनियों को पार करके मनुष्य देह में आये हैं तो इसे सफल बनाना है : अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जाग्रत करो , मंत्र जाप, पूजा पाठ सभी कुछ करते हुए ध्यान में उतर जाओ और उस परम के धाम तक पहुँचने में देर नही लगेगी !
सबसे पहले ध्यान के लिए बैठते ही हमे अपने सदगुरु को प्रणाम करना है और उनके आशीर्वाद लेने हैं : गुरुकृपा से ही वास्तविक ध्यान का आनंद आप ले सकेंगे। शरणागत होकर अपना सर्वस्व उन्हें अर्पित कर दो-वह आपका हाथ पकड़कर परम के धाम अवश्य पहुंचाएंगे !